पिता के सरनेम का उपयोग करने वाले लोगों को आदिवासी प्रमाण पत्र जारी नहीं /h1>
प्रारंभिक परीक्षा - खासी जनजाति, खासी स्वायत्त जिला परिषद मुख्य परीक्षा : सामान्य अध्ययन प्रश्नप्रत्र 1 - भारतीय समाज की मुख्य विशेषताएँ, भारत की विविधता
सन्दर्भ
हाल ही में, मेघालय में एक स्वायत्त जिला परिषद ने सभी पारंपरिक खासी ग्राम प्रधानों को केवल अपनी मां के सरनेम का उपयोग करने वालों को ही आदिवासी प्रमाण पत्र जारी करने के प्रथागत मानदंडों का सख्ती से पालन करने का निर्देश दिया है।
महत्वपूर्ण तथ्य
खासी हिल्स स्वायत्त जिला परिषद (केएचएडीसी) ने कहा कि इस निर्णय का उद्देश्य खासी जनजाति में प्रचलित मातृसत्तात्मक व्यवस्था को मजबूत करना है।
इन मानदंडों के अनुसार, पिता के सरनेम का उपयोग करने वालों को खासी के रूप में पहचाना नहीं जाएगा और पारंपरिक प्रमुखों द्वारा उन्हें आदिवासी प्रमाण पत्र जारी नहीं किया जायेगा।
खासी हिल्स ऑटोनॉमस डिस्ट्रिक्ट खासी सोशल कस्टम ऑफ लाइनेज एक्ट, 1997 की धारा 3 और 12 में कहा गया है कि केवल अपनी मां के सरनेम का उपयोग करने की प्रथा का पालन करने वालों को ही खासी के रूप में पहचाना जाएगा।
स्वायत्त ज़िला परिषद
स्वायत्त जिला परिषदों (ADCs) की स्थापना छठी अनुसूची के अंतर्गत की जाती है।
प्रत्येक स्वायत्त ज़िला परिषद में 30 सदस्य होते हैं, जिनमें से चार सदस्य राज्यपाल द्वारा नामित किए जाते हैं और शेष 26 सदस्य वयस्क मताधिकार के आधार पर चुने जाते हैं।
निर्वाचित सदस्य पाँच साल के कार्यकाल के लिये पद धारण करते हैं और मनोनीत सदस्य राज्यपाल के इच्छानुसार समय तक पद पर बने रहते हैं।
ये भूमि,वन, नहर के जल, स्थानांतरित कृषि, ग्राम प्रशासन, संपत्ति का उत्तराधिकार, विवाह एवं तलाक, सामाजिक रीति-रिवाजों जैसे कुछ निर्दिष्ट मामलों पर कानून बना सकती हैं, लेकिन ऐसे सभी कानूनों के लिये राज्यपाल की सहमति आवश्यक है।
ज़िला परिषदों के पास भू-राजस्व का आकलन एवं संग्रहण करने एवं कुछ निर्दिष्ट कर लगाने का अधिकार भी होता है।
ये ग्राम न्यायालय की स्थापना कर सकती हैं।
स्वायत्त ज़िला परिषदों का न्यायिक क्षेत्राधिकार संबंधित उच्च न्यायालय के क्षेत्राधिकार के अधीन होता है।
संसद तथा राज्य विधानमंडल के कानून या तो स्वायत्त परिषदों पर लागू नहीं होते हैं या संशोधनों और अपवादों के साथ लागू होते हैं।
राज्यपाल को स्वायत्त ज़िलों को गठित करने और पुनर्गठित करने का अधिकार है।
राज्यपाल इनके क्षेत्रों को बढ़ा या घटा सकता है तथा इनका नाम परिवर्तित करने के साथ-साथ सीमाएँ भी निर्धारित कर सकता है।
यदि किसी स्वायत्त ज़िले में अलग-अलग जनजातियाँ हैं, तो राज्यपाल उस ज़िले को कई स्वायत्त क्षेत्रों में विभाजित कर सकता है।
खासी जनजाति
ये भारत के मेघालय, असम तथा बांग्लादेश के कुछ क्षेत्रों में निवास करते हैं।
खासी वंशानुक्रम की एक मातृसत्तात्मक प्रणाली का पालन करते हैं।
खासी समाज में, केवल सबसे छोटी बेटी या "का खद्दूह" ही पैतृक संपत्ति को प्राप्त करने की पात्र होती है।
खासी जनजाति में विवाह होने पर पति ससुराल में रहता है। परंपरानुसार पुरूष की विवाहपूर्व कमाई पर मातृपरिवार का और विवाहोत्तर कमाई पर पत्नी के परिवार का अधिकार होता है।