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अमेरिका-चीन संघर्ष विराम और भारत

प्रारंभिक परीक्षा- QUAD, AUKUS
मुख्य परीक्षा- सामान्य अध्ययन, पेपर-2

संदर्भ-

  • अमेरिका और चीन के नेता द्विपक्षीय संबंधों में लगातार सुधार लाने की कोशिश कर रहें हैं। अतः विश्व के शक्ति संबंधों में हो रहे इन संरचनात्मक बदलावों के परिणामों पर भारत को भी कुछ सोचने की जरुरत है।

मुख्य बिंदु-

  • अमेरिका-चीन संबंधों में उतार-चढ़ाव सभी प्रमुख शक्तियों और क्षेत्रों को प्रभावित करते हैं।
  • सैन फ्रांसिस्को में एशिया-प्रशांत आर्थिक सहयोग के शिखर सम्मेलन से अलग अमेरिकी राष्ट्रपति जो बिडेन और चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग की मुलाकात वैश्विक चर्चा का बिंदु रहा।
  • बैठक में दोनों देशों के बीच किसी भी ठोस मुद्दे का समाधान नहीं निकला, लेकिन दोनों नेताओं ने सौहार्दपूर्ण वातावरण  में बातचीत की।

कृत्रिम बुद्धिमत्ता (AI) पर नजर-

  • भारत को एशिया में 'जी-2' (चीन-अमेरिकी) सहयोग को लेकर हमेशा चिंताएं रहती हैं, किंतु सैन फ्रांसिस्को शिखर सम्मेलन रणनीतिक साझेदारी को बहाल करने के बजाय सदियों के संघर्षपूर्ण रिश्ते में शांति स्थापित करने का प्रयास था।
  • भारत को अमेरिका-चीन के नजदीक आने के कारण कुछ नए क्षेत्रों पर ध्यान देने की ज़रूरत है - जैसे कि कृत्रिम बुद्धिमत्ता (एआई) को विनियमित करना - जिस पर बिडेन और जिनपिंग ने चर्चा की। 
  • यूएस-चीन के पारस्परिक जुड़ाव का एआई पर वैश्विक नियमों के निर्माण में दीर्घावधि में बड़ा प्रभाव पड़ना तय है।
  • निकट भविष्य में भारत सरकार और व्यापारियों को स्थिति के प्रति गंभीर रहना चाहिए क्योंकि चीनी  राष्ट्रपति शी जिनपिंग द्वारा अमेरिकी व्यापारियों को लुभाने का प्रयास किया जा रहा है।
  • भारत को यह नहीं कहना चाहिए कि पश्चिमी व्यपारियों के लिए चीन का विकल्प अब व्यवहार्य नहीं है और भारत को अपने आकर्षक नीतियों के बारे में संतुष्ट नहीं होना चाहिए। पश्चिमी देशों के साथ लाभकारी जुड़ाव भारत के लिए उच्च प्राथमिकता होनी चाहिए।

इंडो-पैसिफिक क्षेत्र-

  • भारत को इंडो-पैसिफिक क्षेत्र में क्षेत्रीय सुरक्षा मुद्दों, मध्य पूर्व में मौजूदा संकट और यूरोप में यूक्रेन युद्ध बातचीत की करने की भी आवश्यकता होगी।
  • इस क्षेत्रीय सुरक्षा वार्ता में किसी बड़ी सफलता का कोई संकेत नहीं मिला, खासकर ताइवान पर, जिसे चीन द्विपक्षीय संबंधों में सबसे संवेदनशील मुद्दा मानता है। 
  • शी जिनपिंग चाहते हैं कि अमेरिका "ताइवान की स्वतंत्रता" का समर्थन करना बंद कर दे, जबकि वाशिंगटन चाहता है कि बीजिंग ताइवान को चीन में पुनर्मिलन के लिए बल का प्रयोग करना बंद कर दे।

कुछ मुद्दों पर चीन का मौन रहना-

  • अमेरिका और चीन के बीच उच्च-स्तरीय राजनीतिक और सैन्य संचार को नवीनीकृत करने का निर्णय, यकीनन चीन के साथ संबंध स्थापित करने में अमेरिका की एक सफलता है।
  • पिछले कुछ वर्षों में अमेरिका से लगातार आर्थिक और सैन्य दबावों और घरेलू स्तर पर आर्थिक मंदी का सामना करने के कारण जिनपिंग चीन के विकास और अमेरिका के साथ संबंधो को सुधारने के लिए अपने हालिया विस्तारवाद को कम कर रहे हैं।
  • जिनपिंग के अनुसार, दोनों देश एक-दूसरे से मुंह मोड़ने का जोखिम नहीं उठा सकते। उन्होंने सैन फ्रांसिस्को में यह भी घोषणा की कि दुनिया "चीन और अमेरिका दोनों के लिए काफी बड़ी है"(  world is “big enough for both China and the US”)
  • जिनपिंग ने बिडेन को आश्वस्त करने की कोशिश की कि चीन का दुनिया में प्रमुख शक्ति के रूप में अमेरिका से आगे निकलने या उसकी जगह लेने का कोई इरादा नहीं है। वह केवल यह चाहता है कि अमेरिका चीन पर अंकुश लगाना बंद कर दे।

अमेरिका को लाभ और चिंताएँ-

  • पिछले तीन वर्षों के दौरान बिडेन प्रशासन ने इस बात पर बल दिया है कि चीन के साथ कड़ी प्रतिस्पर्धा को नियंत्रण से बाहर होने से रोकने के लिए बातचीत की आवश्यकता है। 
  • अमेरिका ने रिश्ते को सुदृढ़ करने के लिए रक्षा स्तर पर बातचीत के लिए दबाव डाला और चीन ने मांग की कि अमेरिका चीन पर आर्थिक और तकनीकी सहयोग पर लगाए गए विभिन्न प्रतिबंधों को हटा दे।
  • बिडेन-शी शिखर सम्मेलन का ध्यान विश्वास बहाली के उपायों पर रहने के बावजूद भी चीन पर अमेरिकी प्रतिबंध यथावत हैं। 
  • बिडेन प्रशासन ने पिछले तीन वर्षों में एशिया में प्रमुख भूराजनीतिक लाभ हासिल किया है। इनमें जापान, कोरिया और ऑस्ट्रेलिया के साथ मजबूत द्विपक्षीय गठबंधन, टोक्यो तथा सियोल के साथ त्रिपक्षीय रणनीतिक ढांचे का निर्माण, फिलीपींस के साथ एक पुनर्जीवित गठबंधन, भारत एवं वियतनाम के साथ नई रणनीतिक साझेदारी शामिल हैं।
  • अमेरिका ने ऑस्ट्रेलिया, भारत और जापान के साथ Quad को शिखर तक पहुचांया है और ऑस्ट्रेलिया तथा यूनाइटेड किंगडम के साथ AUKUS नामक एक नया मंच बनाया है।
  • इसके बाद भी अमेरिका को यूरोप में बड़े संकटों का सामना करना पड़ रहा है, क्योंकि पश्चिमी देश यूक्रेन पर रूसी आक्रमण को रोकने में असफल हो रहे हैं और मध्य पूर्व में इजरायल-फिलिस्तीन युद्ध क्षेत्रीय व्यवस्था को बदलने का प्रयास कर रहा है। 
  • उपर्युक्त क्षेत्रों में चीन को शामिल करना और रिश्ते को यथोचित रूप से स्थिर रखना आने वाले दिनों में अमेरिका के लिए एक प्रमुख उद्देश्य बने रहने की संभावना है।

भारत की सावधानी-

  • भारत को विशेष रूप से अमेरिका, चीन और रूस के बीच शक्ति संबंधों में बदलाव का लगातार आकलन करते रहना चाहिए।
  • भारत का ध्यान रूस के साथ अपने दीर्घकालिक संबंधों को बनाए रखते हुए, अमेरिका के साथ अपने संबंधों को मजबूत करने के लिए नई संभावनाओं की तलाश करने पर होना चाहिए और साथ ही चीन के साथ जटिल संबंधों को भी प्रबंधित करना होगा।
  • अंतर्राष्ट्रीय प्रणाली में भारत के उदय के कारण शक्ति संबंधों में किसी भी अचानक बदलाव के प्रति उसे सजग रहने की आवश्यकता है फ़िलहाल, किंतु सैन फ़्रांसिस्को बैठक से अमेरिका-चीन संबंधों में किसी नाटकीय बदलाव की संभावना बहुत कम है।

QUAD-

  • Quad चार देशों के बीच होने वाली सुरक्षा संवाद का ग्रुप है। 
  • क्वाड का फुल फॉर्म-Quadrilateral Security Dialogue। 
  • इसमें चार सदस्य देश भारत, अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया और जापान है। 
  • ये सभी देश समुद्री सुरक्षा और व्यापार के साझा हितों पर एकजुट हुए हैं। 

क्वाड के बनने की टाइमलाइन-

  • वर्ष 2004 में हिंद महासागर में आई सुनामी के चलते चारों क्वाड देशों की एकजुट होने की शुरुआत। 
  • 2007 में जापान ने क्वाड के गठन का विचार रखा। चीन और रूस ने इसका खूब विरोध किया था।
  • 2017 में ऑस्ट्रेलिया के मानने के बाद क्वाड का गठन हुआ।
  • 2019 में पहली बार क्वाड देशों के विदेश मंत्रियों की न्यूयॉर्क में बैठक हुई।
  • 2020 में जापान के टोक्यो में विदेश मंत्रियों की दूसरी बार बैठक हुई।
  • 2020 में ही चारों देशों की नौसेनाओं ने संयुक्त अभ्यास में भाग लिया।
  • 2021 में पहली बार क्वाड देशों ने वीडियो कॉन्फ्रेंस की। 
  • 2022 में टोक्यो में क्वाड शिखर सम्मेलन आयोजित।
  • 2023 में ऑस्ट्रेलिया में होगा क्वाड शिखर सम्मेलन।

ऑकस (AUKUS)

  • यह ऑस्ट्रेलिया, यूनाइटेड किंगडम और संयुक्त राज्य अमेरिका के बीच एक त्रिपक्षीय सुरक्षा समझौता है, जिसकी घोषणा 15 सितंबर 2021 को भारतीय-प्रशान्त क्षेत्र के लिए की गई थी। 
  • समझौते के अन्तर्गत, अमेरिका और ब्रिटेन ऑस्ट्रेलिया को परमाणु ऊर्जा से चलने वाली पनडुब्बियाँ हासिल करने में मदद करेंगे। 
  • समझौते में "साइबर क्षमताओं, कृत्रिम बुद्धिमत्ता, क्वाण्टम प्रौद्योगिकियों और अतिरिक्त अन्य क्षमताओं" पर सहयोग भी शामिल है। 
  • यह समझौता सैन्य क्षमता पर ध्यान केन्द्रित करेगा और इसे फाईव आइज इण्टेलिजेंस-शेयरिंग गठबन्धन से अलग करेगा, जिसमें न्यूज़ीलैण्ड और कनाडा भी शामिल हैं।

प्रारंभिक परीक्षा के लिए प्रश्न-

प्रश्न- क्वाड के बारे में निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिए।

  1. क्वाड चार देशों के बीच होने वाली सुरक्षा संवाद का ग्रुप है। 
  2. इसमें चार सदस्य देश भारत, जर्मनी, दक्षिण कोरिया और फ़्रांस है। 
  3. ये सभी देश समुद्री सुरक्षा और व्यापार के साझा हितों पर एकजुट हुए हैं। 

उपर्युक्त में से कितना/कितनें कथन सही है/हैं?

(a) केवल एक

(b) केवल दो

(c) सभी तीनों

(d) कोई नहीं

उत्तर- (b)

मुख्य परीक्षा के लिए प्रश्न-

प्रश्न- भारत को वर्तमान भू-राजनितिक एवं बड़ी शक्तियों के मध्य शक्ति संबंधों में हो रहे बदलाव का लगातार आकलन करते रहना चाहिए और उसी के अनुसार अपनी नीतियों का निर्माण करना चाहिए। विवेचना कीजिए।

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