हाल ही में, सी.एस.आई.आर. की प्रयोगशाला इंस्टीट्यूट ऑफ हिमालयन बायोरिसोर्स टेक्नोलॉजी, पालमपुर द्वारा हींग की खेती के लिये बीज और कृषि-तकनीक विकसित की गई है, इसका उपयोग हिमाचल प्रदेश की लाहौल घाटी में बंजर ज़मीन पर हींग की खेती करने के उद्देश्य से किया जा रहा है।
कच्ची हींग को फेरुला की मांसल जड़ों से ओलियो गम राल के रूप में निकाला जाता है, इसकी पैदावार में लगभग 5 वर्ष का समय लगता है। ध्यातव्य है कि इस पौधे की वृद्धि के लिये ठंडी और शुष्क परिस्थितियाँ आवश्यक हैं अतः भारतीय हिमालय के ठंडे रेगिस्तानी क्षेत्र हींग की खेती के लिये उपयुक्त हैं।
विश्व में फेरुला की लगभग 130 प्रजातियाँ पाई जाती हैं, लेकिन हींग के उत्पादन के लिये फेरुला अस्सा-फेटिडिस आर्थिक रूप से महत्त्वपूर्ण प्रजाति है। परंतु भारत में इसकी अन्य प्रजातियाँ- फेरुला जेस्सेकेना (चंबा) और फेरुला नार्थेक्स (कश्मीर एवं लद्दाख) पाई जाती हैं, जिनसे, हींग पैदा नहीं होती। उल्लेखनीय है कि अफगानिस्तान, ईरान और उज़्बेकिस्तान से भारत कच्ची हींग का आयात करता है।
राज्य में हींग की खेती के उद्देश्य से सी.एस.आई.आर- आई.एच.बी.टी. और राज्य कृषि विभाग के मध्य समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर किया गया है। ध्यातव्य है कि 15 अक्तूबर, 2020 को क्वारिंग गाँव में हींग के पहले पौधे की रोपाई की गई है।