सरीसृप विज्ञानियों के एक दल ने पश्चिमी घाट में 'सिन्सिडे' (Scincidae) कुल की एक 'एशियन ग्रेसाइल स्किंक' (छिपकली) की खोज की है। यह पूर्वी घाट में पाई गई 'सब्डोलूसेप्स पृथि' (Subdoluseps pruthi) से काफी मिलती-जुलती है।
यह नई प्रजाति शुष्क पर्णपाती वनस्पति वाले क्षेत्र में मिली है। इससे स्पष्ट होता है कि हमारे देश के शुष्क क्षेत्रों में भी स्किंक की ऐसी कई प्रजातियाँ रहती हैं, जिनकी अब तक खोज ही नहीं की गई। इस नई प्रजाति को 'सब्डोलूसेप्स नीलगिरिन्सिस' ((Subdoluseps nilgiriensis) नाम दिया गया है।
अधिकांश स्किंक्स दिनचर होते हैं और छिपकर रहते हैं। साथ ही, अधिकांशतः पकड़ में न आने के कारण इनके प्राकृतिक एवं उद्विकासीय इतिहास के बारे में कोई विशेष जानकारी नहीं है। पिछली सहस्राब्दी में भारत की मुख्य भूमि पर खोजी गई यह स्किंक की तीसरी प्रजाति है।
स्किंक ज़हरीली नहीं होती हैं। छिपे हुए लिंब तथा ज़मीन पर चलने के ढंग की वजह से ये साँप जैसी दिखती हैं, इसी भ्रम में लोग इस जीव को मार देते हैं।
अभी तक 'सब्डोलूसेप्स नीलगिरिन्सिस' की प्रजनन एवं भोजन संबंधी आदतों के बारे में अध्ययन नहीं किया गया है। फिलहाल इसे संकटग्रस्त प्रजाति (Vulnerable species) माना गया है क्योंकि इस क्षेत्र में होने वाली मौसमी दावानल की घटनाओं, गृह निर्माण कार्य तथा ईंट-भट्टों के कारण इसके अस्तित्व पर खतरा उत्पन्न हो गया है।