ईरानी मूल की ‘रोगन चित्रकला’ का लगभग 300 वर्ष पूर्व भारत के कच्छ क्षेत्र (गुजरात) में आगमन हुआ था। फारसी भाषा में ‘रोगन’ शब्द का अर्थ ‘तेल’ होता है।
यह चित्रकारी सिर्फ सूती व रेशमी वस्त्रों पर की जाती है। इसके लिये सामग्री के रूप में कच्छ क्षेत्र में पाई जाने वाली एक वनस्पति, अरंडी के तेल (Castor Oil) का प्रयोग किया जाता है। इस तेल में चमकीले प्राकृतिक रंगों को मिलाकर एक पेस्ट तैयार किया जाता है तथा चित्रकार धातु की कलम (Metal Stylus) द्वारा वस्त्र पर चित्रकारी करता है।
इसके अंतर्गत, वस्त्रों पर फूल-पत्तियों तथा मोर, हाथी जैसे जानवरों के ज्यामितीय चित्र अंकित किये जाते हैं। ट्री ऑफ लाइफ (Tree of Life) की संरचना इस चित्रकला का सबसे प्रसिद्ध रूपांकन है। यह चित्रकला पूर्णतः चित्रकार की कल्पना पर आधारित होती है।
वर्तमान में कच्छ क्षेत्र के ‘निरोना गाँव’ का निवासी एक सिंधी-मुस्लिम-खत्री परिवार इस कला का एकमात्र संरक्षक है। इसलिये यह कला निरोना रोगन चित्रकला के नाम से भी जानी जाती है। अब्दुल गफ्फूर दाऊद खत्री, जब्बर अरब खत्री आदि प्रसिद्ध रोगन चित्रकार हैं। इन चित्रकारों को पद्म पुरस्कारों सहित विभिन्न राष्ट्रीय व राजकीय पुरस्कारों से नवाजा जा चुका है।
उल्लेखनीय है कि हाथों से कपड़ों पर की जाने वाली इस चित्रकला के नायक कोविड-19 महामारी के चलते आर्थिक तंगी के शिकार हैं। साथ ही, इस दौरान प्रयुक्त होने वाले फेस मास्क पर भी रोगन चित्रकला के उदहारण देखने को मिले हैं।