अल्ट्रावायलेट-सी कीटाणुशोधन प्रौद्योगिकी (Ultraviolet-C Disinfection Technology)/h1>
सार्स-कोव-2 (SARS-COV-2) के वायु संचरण को कम करने के लिये संसद में जल्द ही अल्ट्रावायलेट-सी कीटाणुशोधन प्रौद्योगिकी स्थापित की जाएगी। इसे केंद्रीय विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी मंत्रालय के अंतर्गत ‘वैज्ञानिक एवं औद्योगिक अनुसंधान परिषद्’ के केंद्रीय वैज्ञानिक उपकरण संगठन द्वारा विकसित किया गया है।
इस प्रणाली को इस प्रकार डिज़ाइन किया गया है कि इसे मौजूद किसी भी प्रकार की वायु-वाहिकाओं में फिट किया जा सकता है। इसे वायु प्रसरण (वेंटिलेशन) उपायों, सुरक्षा एवं उपयोगकर्ता दिशानिर्देश तथा परीक्षण किये गए जैव-सुरक्षा मानकों आदि के साथ-साथ एरोसोल में निहित सार्स-कोव-2 वायरस को निष्क्रिय करने की आवश्यकताओं के अनुरूप विकसित किया गया है।
यू.वी.-सी. 254 एन.एम. अल्ट्रा वायलेट प्रकाश की उपयुक्त मात्रा के साथ जैव- एरोसॉल का उपयोग करके वायरस, बैक्टीरिया, कवक तथा अन्य सूक्ष्म जीवाणुओं को निष्क्रिय करने में सक्षम है। यू.वी.-सी. प्रकाश के कैलिब्रेटेड स्तरों द्वारा किसी भी एरोसॉल कणों में वायरस को निष्क्रिय कर दिया जाता है। इसका उपयोग ऑडिटोरियम, मॉल, शैक्षणिक संस्थानों, ए.सी. बसों तथा रेलवे आदि में किया जा सकता है।
यू.वी. विकिरण एक्स-रे तथा दृश्य प्रकाश के मध्य विद्युत चुम्बकीय स्पेक्ट्रम का भाग है। अल्ट्रावायलेट विकिरण का सबसे सामान्य रूप सूर्य का प्रकाश है, जो मुख्य रूप से तीन प्रकार की यू.वी. किरणें उत्पन्न करता है- अल्ट्रावायलेट-ए, अल्ट्रावायलेट-बी तथा अल्ट्रावायलेट-सी। यू.वी.ए. किरणों की तरंग दैर्ध्य सबसे लंबी होती है, जिसके बाद यू.वी.बी. तथा यू.वी.सी. किरणों की तरंग दैर्ध्य सबसे छोटी होती है।