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आर्थिक विकास के समक्ष चुनौतियाँ और समाधान

(प्रारंभिक परीक्षा- आर्थिक और सामाजिक विकास)
(मुख्य परीक्षा, सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र- 3 : भारतीय अर्थव्यवस्था तथा योजना, संसाधनों को जुटाने, प्रगति, विकास तथा रोज़गार से संबंधित विषय, सरकारी बजट)

संदर्भ

 आर्थिक सर्वेक्षण 2020-21 के अनुसार बीते वर्ष कोरोना काल में अर्थव्यवस्था का अत्यधिक संकुचन हुआ है। ऐसे में समस्त आर्थिक पहलुओं पर विचार करते हुए पुनः उच्च विकास दर को प्राप्त करना एक चुनौती है।

सरकार पर आपत्तियाँ

  • कोरोना से पूर्व भी जी.डी.पी. वृद्धि दर कम थी, अत: अर्थव्यवस्था के संकुचन के लिये केवल महामारी को उत्तरदाई नहीं ठहराया जा सकता है।
  • सरकार पर यह आरोप भी है कि लॉकडाउन के कारण असंगठित क्षेत्र में कार्यरत लोगों पर पड़ने वाले प्रभाव को कम करने और उनको सामाजिक सुरक्षा देने में वह असमर्थ रही है।
  • निजी अस्पताल कोरोना काल में भी सामान्य दिनों की ही तरह इलाज के लिये लोगों से अधिक धन वसूल रहे थे।
  • इसके अलावा, निजी क्षेत्र में कार्यरत संगठित क्षेत्र के लोगों को भी रोज़गार गँवाना पड़ा। साथ ही, सरकार द्वारा सार्वजनिक व्यय कम किये जाने के कारण भी वस्तुओं के मूल्य स्तर पर प्रभाव देखने को मिला।

सरकार का पक्ष

  • वर्तमान आर्थिक सर्वेक्षण में सरकार ने आगामी वित्तीय वर्ष में अर्थव्यवस्था से जुड़ी नई संभावनाओ को सामने रखा है। आई.एम.एफ. के हालिया अनुमान के अनुसार वित्त वर्ष 2021-22 में भारत की अर्थव्यवस्था में 5% की दर से बढ़ सकती है। हालाँकि टीकाकरण के बाद स्थिति काफी तेज़ी से बदल सकती है, फिर भी  अर्थव्यवस्था को कोविड -19 महामारी से पूर्व की गति पकड़ने में लगभग दो वर्षों का समय  लग सकता है।
  • लॉकडाउन की वजह से संक्रमण के प्रसार को नियंत्रित करने और लोगों की जान बचाने में भी सहायता मिली। इसके अलावा, संक्रमण की दृष्टि से संवेदनशील लोंगों तक भोजन पहुँचाने के साथ-साथ अन्य आवश्यकताएँ पूरी करने के लिये नकद हस्तांतरण भी किया गया। साथ ही सरकारी व्यय के माध्यम से आपूर्ति की कमी से होने वाली स्फीति को भी नियंत्रित रखा गया।
  • सार्वजनिक खर्च के माध्यम से निजी निवेशकों के जोखिम को भी कम किया गया, जिससे विकास को गति मिलती रही। इन्हीं कारणों से भारत अपने कर्ज़ को नियंत्रित रखते हुए विकास को सतत रख पाने में सफल हुआ।

अर्थव्यवस्था में मज़बूती के उपाय

  • वर्ष 2008 में आई वैश्विक आर्थिक मंदी से तरलता में काफी कमी आ गई थी। उस समय सरकार द्वारा किये गए उपायों को वर्तमान में अपनाकर अर्थव्यवस्था को काफी संभाला जा सकता है। इसमें आवासीय घरों को आकर्षक मूल्यों पर दिये जाने की योजना बनाई जा सकती है, जिसके माध्यम से  निवेशकों को आकर्षित किया जा सकेगा।
  • यद्यपि यह भी देखा गया कि उस समय कई जगहों (जैसे मुंबई, बंगलुरु) पर  आवासीय घरों की कीमतों में काफी बढ़ोत्तरी हुई, जो 20-25% तक थी, इसे देखते हुए रिअल स्टेट विनियमन प्राधिकरण का गठन किया जाना।
  • बाज़ार में माँग और खपत को बढ़ाकर तथा सूक्ष्म उद्योगों को आर्थिक सहायता देकर कर वित्तीय गतिविधियों को बढ़ाया जा सकता है। साथ ही, कर की दरों को घटाकर निवेश में वृद्धि की जा सकती  है।
  • इसके अतिरिक्त, ग्रामीण क्षेत्रों में मनरेगा के माध्यम से रोज़गार प्रदान करके  आर्थिक आधार को मज़बूती दी जा सकेगी। इसी प्रकार का प्रयास शहरों में भी रोज़गार प्रदान करने के लिये किया जा सकता है।
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