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चीन शॉक 2.0

(सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र –3; उदारीकरण का अर्थव्यवस्था पर प्रभाव, औद्योगिक नीति में परिवर्तन तथा औद्योगिक विकास पर इनका प्रभाव।) 

संदर्भ

महामारी के बाद से चीन के बढ़ते व्यापार अधिशेष और अमेरिकी के बढ़ते व्यापार घाटे ने वैश्विक आर्थिक असंतुलन को उजागर किया है। चीन का व्यपार अधिशेष कमजोर घरेलू मांग के बीच निर्यात को बढ़ावा देने के उद्देश्य से निर्मित औद्योगिक नीतियों का परिणाम है। 

क्या है चीन शॉक 2.0

  • चीन शॉक 2.0 एक ऐसे आर्थिक परिदृश्य को संदर्भित करता है जहाँ चीन के सस्ते उत्पादों के वैश्विक बाज़ार में प्रवेश से अन्य देशों के निर्यात में कमी आने के साथ ही उद्योगों पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है। 
  • कोविड-19 महामारी की शुरुआत में चिकित्सा उपकरणों के निर्यात में वृद्धि से चीन के व्यापार अधिशेष में उल्लेखनीय वृद्धि देखी गई। 
  • वर्तमान में चीन सोलर एनर्जी, इलेक्ट्रिक व्हीकल, सेमीकंडक्टर आदि में अपना प्रभाव दूसरे देशों में बढ़ाना चाहता है। 
  • चीन ने भारत समेत कई देशों में इन उत्पाद की खपत बढ़ा दी है। इस खपत में निरंतर वृद्धि से इन अर्थव्यवस्थाओं की चीन पर निर्भरता बढ़ेगी तथा उनकी उत्पादन शृंखला पर चीन का नियंत्रण होगा। इस परिघटना को ही चीन शॉक 2.0 कहा जा रहा है।
  • इससे पूर्व वर्ष 2000 में विश्व व्यापार संगठन (WTO) में शामिल होने बाद से चीन ने वैश्विक बाज़ार में अपने सस्ते उत्पादों को भारी मात्रा पहुँचाया था।
    • इससे दुनियाभर की अर्थव्यवस्थाओं पर प्रभाव पड़ा था। साथ ही विनिर्माण क्षेत्र में भारत समेत दूसरे देशों में रोज़गार संकट की स्थिति उत्पन्न हो गई थी। इसे चीन शॉक 1.0 कहा जाता है।

वैश्विक बाज़ार में चीन का बढ़ता वर्चस्व

  • चीन से भारत का आयात शेष विश्व की तुलना में कहीं ज़्यादा तेज़ी से बढ़ा है। चीन से माल का आयात वर्ष 2005-06 में 10.87 बिलियन डॉलर से बढ़कर वर्ष 2023-24 में रिकॉर्ड 100 बिलियन डॉलर को पार कर गया।
  • कोविड-19 महामारी के पूर्व की तुलना में  बाद की अवधि में चीन के निर्यात में काफ़ी वृद्धि हुई है। 
    • अंतर्राष्ट्रीय मौद्रिक संगठन (IMF) की गणना के अनुसार इस दौरान वैश्विक निर्यात में चीन की हिस्सेदारी में 1.5 % अंकों की वृद्धि जबकि अमेरिका, जापान और यूनाइटेड किंगडम की हिस्सेदारी में 0.5 % अंकों से अधिक की गिरावट दर्ज की गई। 
  • अंतर्राष्ट्रीय ऊर्जा एजेंसी के अनुसार वर्तमान में अधिकांश सौर ऊर्जा विनिर्माण आपूर्ति शृंखला पर चीन का नियंत्रण है।

चीन शॉक 2.0 के कारण

  • चीन में संपत्ति संकट
  •  कमज़ोर ऋण 
  • कम उपभोक्ता मांग
  • अधिशेष उत्पादन 

भारत पर प्रभाव 

  • वर्तमान में भारत नवीकरणीय ऊर्जा ,इलेक्ट्रिक व्हीकल, सेमीकंडक्टर आदि क्षेत्र में वृद्धि के अवसर तलाश रहा है। 
  • हाल ही में गुजरात में ग्‍लोबल रिन्‍यूएबल एनर्जी इन्वेस्टर्स मीट में भारत में नवीकरणीय ऊर्जा क्षेत्र के विस्तार की संभावनाओं पर चर्चा की गई। 
  • नोएडा में आयोजित सेमीकॉन इंडिया-2024 सम्मेलन के दौरान  नोएडा में देश के पहले पहला सेमीकंडक्टर पार्क के स्थापना की मंजूरी मिली है। 
  • इस परिदृश्य यदि चीन अपने सस्ते सोलर पैनल, बैटरी, सेमीकंडक्टर आदि भारत समेत पश्चिमी देशों में बड़ी मात्रा में बेचता है तो इससे भारत में इन क्षेत्रों में अवसरों में कमी आएगी।
    • जो कंपनियां भारत में विनिर्माण इकाइयों की स्थापना करेगी उन्हें लाभ न होने पर वे अपनी उत्पादन इकाइयों को बंद कर सकती हैं।
    • ऐसे में भारत में बेराजगारी दर में और वृद्धि हो सकती है।
  • भारत समेत पश्चिमी देशों की विनिर्माण क्षमता कम होने के साथ ही उद्योग बंद हो सकते हैं। 

प्रभावित देशों की प्रतिक्रियाएँ

  • अमेरिका द्वारा चीन से आयातित वस्तुओं पर टैरिफ में भारी वृद्धि की गई है जिसमें इलेक्ट्रिक वाहनों पर 100 % आयात शुल्क भी शामिल है। 
    • अमेरिकी टैरिफ बढ़ोतरी में सौर सेल पर 50 % तथा स्टील, एल्युमीनियम, ईवी बैटरी और कुछ खनिजों पर 25 % आयात शुल्क आरोपित किया गया है।
  • भारत  सहित कई अन्य देशों ने चीन के खिलाफ सब्सिडी विरोधी उपायों की एक नई शृंखला लागू की है। 
  • वर्ष 2024 में ही भारत ने चीन के खिलाफ 30 से अधिक एंटी-डंपिंग जाँच की है। इस जाँच के दायरे में आने वाले उत्पादों में प्लास्टिक प्रसंस्करण मशीनें, वैक्यूम-इंसुलेटेड फ्लास्क, वेल्डेड स्टेनलेस स्टील पाइप और ट्यूब, सॉफ्ट फेराइट कोर और औद्योगिक लेजर मशीन जैसे उत्पाद शामिल हैं।
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