(प्रारंभिक परीक्षा: समसामयिक घटनाक्रम) |
संदर्भ
शोधकर्ताओं ने पहली बार प्राचीन मिस्र के एक व्यक्ति के पूर्ण जीनोम का अनुक्रमण (Genome Sequencing) किया है।
हालिया जीनोम अनुक्रमण के बारे में
- हालिया शोध में प्राचीन मिस्र के एक व्यक्ति के संपूर्ण जीनोम का अनुक्रमण किया गया है जो लगभग 4,500 से 4,800 वर्ष पहले मिस्र के ओल्ड किंगडम (प्राचीन साम्राज्य) का निवासी था।
- यह अध्ययन प्राचीन मिस्र के जीनोम का अब तक का सबसे पुराना एवं सबसे पूर्ण अनुक्रमण है।
शोध के प्रमुख निष्कर्ष
अस्थि परीक्षण एवं जीनोम डाटा
- मृतक पुरुष के बारे में जानकारी प्राप्त हुई कि वह 157.4-160.5 सेमी. लंबा था और 44-64 वर्ष की आयु में उसकी मौत हुई थी।
- जीनोम से यह निष्कर्ष सामने आया कि वह आनुवंशिक रूप से पुरुष था और उसके बाल भूरें, आँखें भूरी और त्वचा का रंग गहरे से काले तक हो सकता था।
- स्वास्थ्य संबंधी स्थितियाँ, जैसे- घिसे हुए दांत एवं आर्थराइटिस उसकी उम्र के साथ जुड़ी हुई थीं।
मृतक की सामाजिक स्थिति
- मृतक का शव (Mummy) नुवीरात (Nuwayrat) गाँव में एक बड़े मटका में दफनाया गया था, जो काहिरा से 265 किमी. दूर स्थित एक गाँव है।
- इस प्रकार के दफन प्रणाली से पता चलता है कि वह व्यक्ति सामाजिक रूप से समृद्ध था किंतु साथ ही उसे कठोर श्रम भी करना पड़ा था।

आनुवंशिकी एवं पूर्वजों का विश्लेषण
- इस व्यक्ति के जीनोम के 78% हिस्से की उत्पत्ति प्राचीन उत्तर अफ्रीका से हुई थी, विशेषकर मोरक्को के नवपाषाणकालीन समूहों से।
- सबसे रोचक बात यह है कि इसके 22% जीनोम का मेल मेसोपोटामिया (मौजूदा इराक, ईरान, सीरिया एवं तुर्की) के प्रारंभिक किसानों से था। यह दर्शाता है कि मिस्र एवं मेसोपोटामिया के लोग केवल वस्तु व्यापार नहीं कर रहे थे, बल्कि वहाँ से मूल जनसंख्या के लोग मिस्र में प्रवासित हो चुके थे।
- पशु पालन एवं मूल्यवान वस्तुओं का व्यापार (जैसे- सांस्कृतिक आदान-प्रदान) दोनों क्षेत्रों के बीच हजारों वर्षों से होता आ रहा था।
वैज्ञानिक दृष्टिकोण
- इस अध्ययन के प्रमुख लेखक डॉ. अडेलिन मोरेज़ जैकब्स के अनुसार, मेसोपोटामिया एवं मिस्र के बीच सांस्कृतिक आदान-प्रदान ने न केवल व्यापार को प्रभावित किया है बल्कि लिपि प्रणाली के विकास में भी योगदान दिया।
- इसके अलावा आनुवंशिक डाटा से यह सिद्ध हुआ है कि प्राचीन मिस्र की जनसंख्या न केवल स्थानीय परंपराओं से प्रभावित थी बल्कि दूर-दराज के संपर्कों एवं प्रवास से भी प्रेरित थी।
DNA संरक्षित होने का कारण
- इस व्यक्ति के दांतों से DNA का सफलतापूर्वक अनुक्रमण किया गया।
- दफन प्रणाली में मटका एवं चट्टान में उत्खनन की गई कब्र शामिल थी, जिसने DNA के दीर्घकाल तक संरक्षित रहने में मदद की।
- विशेष रूप से, दांतों की जड़ के टिप से DNA निकालने से इसकी अच्छी तरह से संरचना बनी रही क्योंकि दांत की जड़ शरीर के निचले जबड़े में स्थिर रहती है और DNA को संरक्षित करने के लिए आदर्श होती है।
अन्य महत्वपूर्ण निष्कर्ष
- अब तक इस क्षेत्र एवं समय अवधि से किसी भी पूर्ण जीनोम का अनुक्रमण नहीं किया गया था और यह पहली बार है कि मिस्र से 4,500 वर्ष पुराना जीनोम सफलतापूर्वक प्राप्त हुआ है।
- प्राचीन DNA का अधिकांश विश्लेषण ठंडी जगहों, जैसे- यूरोप एवं साइबेरिया से किया गया था, जहाँ DNA के संरक्षित होने की संभावना अधिक होती है किंतु मिस्र जैसे गर्म देशों से ऐसे विश्लेषण बहुत कम होते हैं।
शोध का महत्त्व
- यह अध्ययन न केवल प्राचीन मिस्र की जनसंख्या के बारे में जानकारी प्रदान करता है बल्कि यह दिखाता है कि विभिन्न क्षेत्रों के बीच सांस्कृतिक एवं आनुवंशिक संपर्क सदियों पहले भी होते थे।
- DNA के संरक्षित होने के कारण इस तरह के अध्ययन ने प्राचीन मानवता के इतिहास को समझने में महत्वपूर्ण योगदान दिया है।
भारत में प्राचीन DNA अनुसंधान
- भारत में प्राचीन DNA अनुसंधान अभी तक अपेक्षाकृत नया है और भारत में राखीगढ़ी (हड़प्पा स्थल) से प्राप्त DNA के नमूने लगभग 4,000 वर्ष प्राचीन हैं।
- मिस्र के इस अध्ययन से यह संभव है कि प्राचीन DNA अनुसंधान भारत में भी जल्द ही महत्वपूर्ण दिशा में बढ़ सकता है।