(मुख्य परीक्षा, सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र- 3: विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी- विकास व अनुप्रयोग और रोज़मर्रा के जीवन पर इसका प्रभाव) |
चर्चा में क्यों
भारतीय वैज्ञानिकों ने चावल की पिसाई के दौरान अनाज की टूटन को कम करने वाले एक जीन की पहचान की है। यह खोज द प्लांट सेल जर्नल में प्रकाशित हुई है।
मुख्य निष्कर्ष
- पहचाना गया जीन अनाज की चाक जैसी बनावट (अनाज के अंदर सफेद अपारदर्शी क्षेत्र) को नियंत्रित करता है।
- चाक जैसी बनावट चावल के दानों को कमजोर बनाती है, जिससे पिसाई के दौरान उनके टूटने की संभावना बढ़ जाती है।
- वैज्ञानिकों ने जीन की पहचान और सत्यापन के लिए जीनोमिक विश्लेषण एवं प्रजनन तकनीकों का उपयोग किया।
महत्त्व
- कटाई के बाद होने वाले नुकसान में कमी: अनाज के टूटने के कारण भारत में चावल की उपज का मूल्य सालाना लगभग 10-20% कम हो जाता है।
- साबुत चावल के दानों को बेहतर बाजार मूल्य मिलता है जिसके परिणामस्वरूप किसानों की आय में वृद्धि होती है।
- अनाज की बेहतर गुणवत्ता से उपभोक्ताओं को लाभ होगा।
- दुनिया के दूसरे सबसे बड़े चावल उत्पादक देश में चावल की आपूर्ति शृंखला की दक्षता को मजबूत करने के साथ ही खाद्य सुरक्षा को मजबूती प्रदान करता है।
व्यापक निहितार्थ
- यह अंतर्राष्ट्रीय बाजरा वर्ष (2023) के अंतर्गत भारत के प्रयासों को बढ़ावा देगा और फसल अनुसंधान की क्षमता को प्रदर्शित करेगा।
- यह प्रयास खाद्यान्न की बर्बादी को कम करके सतत विकास लक्ष्य (SDG-2) (भूख से मुक्ति) को बढ़ावा देगा।
- उपज, लचीलापन एवं अनाज की गुणवत्ता में वृद्धि कर जलवायु-अनुकूल चावल उतपादन को बढ़ाने में सक्षम होंगे।
आगे की राह
- प्रजनन कार्यक्रमों के माध्यम से उच्च उपज देने वाली चावल की किस्मों में जीन का एकीकरण
- बड़े पैमाने पर प्रसार के लिए ICAR और अंतर्राष्ट्रीय चावल अनुसंधान संस्थानों के साथ सहयोग
- राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा मिशन (NFSM) जैसी योजनाओं के तहत अपनाने के लिए नीतिगत प्रोत्साहन