(प्रारंभिक परीक्षा: सामाजिक एवं आर्थिक विकास) (मुख्य परीक्षा, सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र- 2: केंद्र एवं राज्यों द्वारा जनसंख्या के अति संवेदनशील वर्गों के लिये कल्याणकारी योजनाएँ और इन योजनाओं का कार्य-निष्पादन; इन अति संवेदनशील वर्गों की रक्षा एवं बेहतरी के लिये गठित तंत्र, विधि, संस्थान एवं निकाय) |
भूमिका
शिक्षा के माध्यम से दृष्टिबाधित व्यक्तियों को सशक्त बनाना एक परिवर्तनकारी प्रक्रिया है जिसके लिए कानूनी, संस्थागत एवं सामाजिक प्रतिबद्धता की आवश्यकता होती है। शिक्षा तक समान पहुंच सुनिश्चित करने से गरिमा, स्वतंत्रता एवं समान अवसर मिलते हैं जिससे भारत समावेशी विकास की ओर बढ़ रहा है।
शिक्षा के माध्यम से सशक्तिकरण
- सशक्तिकरण तब शुरू होता है जब व्यक्ति अपनी क्षमता को पहचानते हैं और अपने भविष्य को आकार देने में सक्रिय रूप से भाग लेते हैं। दिव्यांग व्यक्तियों के लिए, शिक्षा सशक्तिकरण की नींव है जो स्वतंत्रता, आत्म-समर्थन एवं नागरिक भागीदारी को बढ़ावा देती है। यह निर्भरता के चक्र को तोड़ती है, रोजगार क्षमता बढ़ाती है और सामाजिक समावेश को बढ़ावा देती है।
- भारत की राष्ट्रीय शिक्षा नीति (NEP) 2020 और दिव्यांग व्यक्ति अधिकार (RPwD) अधिनियम, 2016 इस दृष्टिकोण की आधारशिला हैं। दोनों समावेशी, बाधा-मुक्त शिक्षा पर जोर देते हैं और संवैधानिक एवं मानवाधिकार प्रतिबद्धताओं के अनुरूप हैं।
कानूनी एवं नीतिगत ढांचा
- RPwD अधिनियम, 2016: यह समावेशी शिक्षा, पहुंच और उचित समायोजन को अनिवार्य करता है। धारा 16-17 के तहत स्कूलों को पाठ्यक्रम को अनुकूलित करने, शिक्षकों को प्रशिक्षित करने और सहायक प्रौद्योगिकियां प्रदान करने की आवश्यकता है।
- NEP 2020: दृष्टिबाधित छात्रों का समर्थन करने के लिए बाधा-मुक्त पहुंच, पाठ्यक्रम समायोजन और व्यापक शिक्षक प्रशिक्षण का आह्वान करता है।
- भारतीय पुनर्वास परिषद (RCI) अधिनियम, 1992: विशेष शिक्षकों के प्रशिक्षण और प्रमाणन को नियंत्रित करता है जिससे दृष्टिबाधित शिक्षार्थियों के लिए व्यावसायिक सहायता सुनिश्चित होती है।
प्रमुख सरकारी योजनाएँ
- समग्र शिक्षा अभियान: विशेष आवश्यकता वाले बच्चों (CWSN) के लिए मूल्यांकन, सहायता प्रदान करने और विशेष शिक्षकों के माध्यम से प्री-प्राइमरी से कक्षा XII तक समावेशी शिक्षा को बढ़ावा देता है।
- RPwD अधिनियम कार्यान्वयन योजना (SIPDA): राज्यों और संस्थानों को बाधा-मुक्त बुनियादी ढांचे, कौशल प्रशिक्षण और सहायक प्रौद्योगिकियों के लिए वित्तीय सहायता प्रदान करती है।
- दीनदयाल दिव्यांग पुनर्वास योजना (DDRS): दृष्टिबाधित व्यक्तियों के समुदाय-आधारित पुनर्वास के लिए गैर-सरकारी संगठनों और विशेष स्कूलों को धन देती है।
- दिव्यांग व्यक्तियों के लिए राष्ट्रीय छात्रवृत्तियां: वित्तीय बाधाओं को कम करने के लिए पोस्ट-मैट्रिक और व्यावसायिक शिक्षा का समर्थन करती हैं।
- दिव्यांग व्यक्ति सहायता एवं उपकरण खरीद/फिटिंग सहायता (ADIP) योजना: वर्ष 1981 से सक्रिय और 2024 में संशोधित यह योजना स्वतंत्रता बढ़ाने के लिए ब्रेल किट, स्मार्ट केन, सुलभ मोबाइल फोन और गतिशीलता सहायता प्रदान करती है।
- दिव्यांग व्यक्ति कौशल विकास राष्ट्रीय कार्य योजना (NAP-SDP): कौशल विकास एवं उद्यमिता मंत्रालय के सहयोग से प्रशिक्षण, मेंटरशिप एवं प्लेसमेंट समर्थन के साथ 2.5 मिलियन दिव्यांग व्यक्तियों को कुशल बनाने का लक्ष्य है।
संस्थागत सहायता
- नेशनल इंस्टीट्यूट फॉर द एम्पावरमेंट ऑफ पर्सन्स विद विजुअल डिसेबिलिटीज (NIEPVD), देहरादून: यह अकादमिक एवं व्यावसायिक प्रशिक्षण देता है, ब्रेल सामग्री बनाता है और अनुसंधान करता है। इसने 2024 में दृष्टिबाधित छात्रों के लिए विज्ञान के पाठ्यक्रम प्रारंभ किए, जिससे STEM क्षेत्रों में समावेशन को बढ़ावा मिला।
- NCERT की पहल: दीक्षा (DIKSHA) एवं पीएम ई-विद्या (PM e-Vidya) के ज़रिए एन.सी.ई.आर.टी. DAISY-फॉर्मेट की पाठ्यपुस्तकें, ऑडियोबुक, टैक्टाइल विज़ुअल व शिक्षक प्रशिक्षण संसाधन प्रदान करता है। बरखा रीडिंग सीरीज़ और सुलभ ई-कंटेंट यूनिवर्सल डिज़ाइन फॉर लर्निंग का उदाहरण हैं।
समावेशी शिक्षा के लिए मुख्य समर्थन
- सुलभ शिक्षण सामग्री : स्टैंडर्ड प्रिंट फॉर्मेट दृष्टिबाधित सीखने वालों को शामिल नहीं करते हैं। इस कमी को पूरा करने के लिए सरकार DALM प्रोजेक्ट (डेवलपमेंट ऑफ एक्सेसिबल लर्निंग मटेरियल) के तहत ब्रेल, टैक्टाइल, ऑडियो और डिजिटल फॉर्मेट प्रदान करती है जो SIPDA के तहत 2014-15 की ब्रेल बुक्स योजना का एक विकसित रूप है।
- 2015-16 से: 115 करोड़ से ज़्यादा ब्रेल पेज बनाए गए, जिससे देश भर में 25 लागूकर्ता एजेंसियों के माध्यम से 1.58 लाख छात्रों को फायदा हुआ।
- सहायक तकनीक : सहायक तकनीक विज़ुअल डेटा को टैक्टाइल, श्रवण योग्य या बड़े फॉर्मेट में बदल देती हैं जिससे पढ़ना, लिखना व संवाद करना संभव होता है। उपकरणों में ब्रेल डिस्प्ले, OCR टूल, मैग्निफायर, AI-संचालित रीडिंग एड्स एवं स्मार्ट केन शामिल हैं। ADIP योजना (2024 में संशोधित) के तहत आधुनिक उपकरण प्रमाणित एजेंसियों के माध्यम से वितरित किए जाते हैं जिससे पुनर्वास और रोज़गार की क्षमता बढ़ती है।
- योग्य शिक्षक : RPwD अधिनियम की धारा 17(c) में ब्रेल और मल्टीसेंसरी निर्देश में प्रशिक्षित शिक्षकों को अनिवार्य किया गया है। रिहैबिलिटेशन काउंसिल ऑफ इंडिया (RCI) पाठ्यक्रम विकसित करता है, प्रशिक्षण संस्थानों को मान्यता देता है और योग्य पेशेवरों के लिए सेंट्रल रिहैबिलिटेशन रजिस्टर (CRR) बनाए रखता है।
- बाधा-मुक्त बुनियादी ढांचा : समावेशी परिसरों में रैंप, हैंडरेल, टैक्टाइल पेविंग, ऑडियो संकेत एवं ब्रेल साइनेज होने चाहिए। सुगम्य भारत अभियान (एक्सेसिबल इंडिया कैंपेन) शैक्षिक स्थानों और सार्वजनिक बुनियादी ढांचे में सार्वभौमिक पहुंच को बढ़ावा देता है।
- अमूर्त समर्थन : सामाजिक एवं भावनात्मक समर्थन सहानुभूति-आधारित कक्षाएं, साथियों के साथ बातचीत एवं परामर्श अलगाव व कलंक का मुकाबला करते हैं। DEPwD द्वारा जागरूकता सृजन और प्रचार (AGP) योजना संवेदीकरण व समावेशन को बढ़ावा देती है जिससे छात्रों में आत्मविश्वास तथा अपनेपन की भावना बढ़ती है।
- कानूनी एवं संस्थागत निगरानी : दिव्यांग व्यक्तियों के लिए मुख्य आयुक्त का कार्यालय (CCPD) RPwD अधिनियम का पालन सुनिश्चित करता है और पूरे भारत में समावेशी शिक्षा के कार्यान्वयन की निगरानी करता है। यह एक्सेसिबिलिटी से संबंधित मुद्दों के लिए शिकायत निवारण प्राधिकरण के रूप में भी कार्य करता है।
हाल के घटनाक्रम
- RPwD अधिनियम, 2016 लागू किया गया, जो कानूनी रूप से समावेशी शिक्षा को अनिवार्य बनाता है।
- डिजिटल समावेशन के लिए DEPwD द्वारा यूनिकोड-मैप्ड ब्रेल कोड लॉन्च किए गए।
- DALM प्रोजेक्ट (2023 अपडेट) का विस्तार किया गया जिसमें टॉकिंग बुक्स, ई-पब एवं बड़े-प्रिंट फॉर्मेट शामिल हैं।
- NIEPVD के मॉडल स्कूल में विज्ञान स्ट्रीम की शिक्षा शुरू की गई (2024)।
- RCI द्वारा ओरिएंटेशन और मोबिलिटी (O&M) प्रशिक्षण को मजबूत किया गया।
- संशोधित कौशल विकास पाठ्यक्रम और नए व्यावसायिक पाठ्यक्रमों की शुरुआत।
- उच्च शिक्षा और रोजगार के लिए नि:शुल्क कोचिंग योजनाओं का शुभारंभ।
- दृष्टिबाधित छात्रों के लिए लचीले मूल्यांकन दिशानिर्देश प्रस्तुत किए गए।
आगे की चुनौतियाँ
- प्रगतिशील कानूनों और नीतियों के बावजूद इन क्षेत्रों में समन्वय की कमियाँ
- बुनियादी ढाँचे और शिक्षकों की उपलब्धता में क्षेत्रीय असमानताएँ
- शिक्षकों और साथियों के बीच सीमित जागरूकता
- ग्रामीण क्षेत्रों में आधुनिक सहायक प्रौद्योगिकियों तक अपर्याप्त पहुँच
- सामाजिक कलंक और भावनात्मक अलगाव
- इन कमियों को पाटने के लिए निरंतर निवेश, तकनीकी नवाचार और सामाजिक संवेदीकरण की आवश्यकता है।