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भारत में पैलिएटिव केयर की आवश्यकता व चुनौतियाँ

(प्रारंभिक परीक्षा: समसामयिक घटनाक्रम)
(मुख्य परीक्षा, सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र- 2: स्वास्थ्य, शिक्षा, मानव संसाधनों से संबंधित सामाजिक क्षेत्र/सेवाओं के विकास और प्रबंधन से संबंधित विषय)

संदर्भ 

पैलिएटिव केयर (Palliative Care) भारत में स्वास्थ्य देखभाल का एक महत्वपूर्ण किंतु उपेक्षित क्षेत्र है। विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) के अनुसार, वैश्विक स्तर पर प्रतिवर्ष 4 करोड़ लोगों को पैलिएटिव केयर की आवश्यकता होती है, जिनमें से 78% निम्न एवं मध्यम आय वाले देशों में रहते हैं। भारत में अनुमानत: 70-100 लाख लोगों को प्रतिवर्ष इसकी आवश्यकता होती है किंतु केवल 1-2% को ही यह सुविधा उपलब्ध है।

पैलिएटिव केयर के बारे में 

  • परिभाषा : यह एक विशेष प्रकार की देखभाल है जो गंभीर बीमारियों से पीड़ित व्यक्तियों के शारीरिक, मानसिक, सामाजिक एवं आध्यात्मिक आवश्यकताओं को पूरा करती है।
  • उद्देश्य : इसका उद्देश्य दर्द को कम करना, पीड़ा को घटाना और जीवन की गुणवत्ता को बढ़ाना है, जबकि सामान्य उपचार बीमारियों को समाप्त करने पर ध्यान केंद्रित करते हैं।

भारत में पैलिएटिव केयर की स्थिति 

  • भारत में पैलिएटिव देखभाल की आवश्यकता अत्यधिक बढ़ रही है किंतु इसका उपयोग एवं वित्त पोषण बहुत सीमित है।
  • केरल एक ऐसा राज्य है जहाँ पैलिएटिव केयर की पहुँच अधिक (60%) है। केरल सरकार ने पैलिएटिव केयर को बढ़ावा देने के लिए कई पहल की हैं। 
  • वैश्विक स्तर पर 14% लोगों को विशेषज्ञ पैलिएटिव केयर उपलब्ध है जबकि भारत में यह संख्या 1-2% से भी कम है। 

बढ़ती मांग

  • कारण : गैर-संचारी रोगों (कैंसर, मधुमेह, पुरानी श्वसन स्थिति) में वैश्विक वृद्धि
  • प्रभाव : पहले से दबावग्रस्त स्वास्थ्य प्रणाली पर बोझ
  • लाभ
    • अनावश्यक रूप से अस्पताल में भर्ती में कमी लाना 
    • परिवारों पर भावनात्मक एवं वित्तीय बोझ कम करना 

भारत में पैलिएटिव केयर संबंधी चुनौतियाँ

  • डॉक्टरों की कमी : भारत का डॉक्टर-जनसंख्या अनुपात 1:834 (WHO मानक 1:1000 से बेहतर) किंतु पैलिएटिव केयर विशेषज्ञों की भारी कमी है।
  • सीमित प्रशिक्षण : कई डॉक्टरों को दर्द प्रबंधन एवं अंतिम-चरण देखभाल में विशेष प्रशिक्षण नहीं होता है।
  • अपर्याप्त वित्तपोषण एवं बुनियादी ढांचा : प्राथमिक स्वास्थ्य क्षेत्र में पैलिएटिव केयर शामिल है किंतु तृतीयक देखभाल में एकीकरण अपूर्ण है और ग्रामीण क्षेत्रों एवं आर्थिक रूप से कमजोर वर्गों में पहुँच सीमित है।
  • गलत धारणाएँ : पैलिएटिव केयर को केवल अंतिम-चरण देखभाल समझा जाता है।
  • वास्तविकता : गंभीर बीमारी के किसी भी चरण में दर्द प्रबंधन एवं जीवन की गुणवत्ता में सुधार होता है।

नीतिगत प्रगति एवं प्रयास

  • राष्ट्रीय स्वास्थ्य नीति, 2017: पैलिएटिव केयर को शामिल करना एक महत्वपूर्ण 
  • क्षमता निर्माण : सामुदायिक जागरूकता एवं वैश्विक संगठनों के साथ सहयोग
  • ICMR एवं AIIMS की पहल : दर्द व पैलिएटिव केयर संबंधी परियोजनाएँ

इसे भी जानिए!

भारत का डॉक्टर-जनसंख्या अनुपात वर्तमान में 1:834 है। इसमें एलोपैथिक एवं आयुष चिकित्सक दोनों शामिल हैं। देश में 13,08,009 पंजीकृत एलोपैथिक डॉक्टर और 5.65 लाख आयुष डॉक्टर हैं। स्वास्थ्य सेवा कार्यबल में 34.33 लाख पंजीकृत नर्सिंग कर्मी एवं 13 लाख संबद्ध स्वास्थ्य सेवा पेशेवर भी हैं।

पैलिएटिव केयर को मजबूत करने के उपाय

  • MBBS पाठ्यक्रम में पैलिएटिव केयर को शामिल करना
  • 34.33 लाख पंजीकृत नर्सिंग कर्मी और 13 लाख संबद्ध स्वास्थ्य पेशेवरों को प्रशिक्षण
  • ग्रामीण और कम सेवा वाले क्षेत्रों में समग्र देखभाल सुनिश्चित करना
  • पैलिएटिव केयर के लिए समर्पित सरकारी फंडिंग
  • सार्वजनिक और निजी स्वास्थ्य सुविधाओं में बुनियादी ढांचा विकास
  • आयुष्मान भारत जैसी योजनाओं में पैलिएटिव केयर शामिल करना
  • रोगियों और परिवारों के लिए वित्तीय पहुंच बढ़ाना
  • गैर-सरकारी संगठनों (NGO) और निजी क्षेत्र के साथ साझेदारी

अंतर्राष्ट्रीय दृष्टिकोण एवं सीख

  • अमेरिका में एक मजबूत पैलिएटिव देखभाल प्रणाली है, जो वित्तीय तंत्र, बीमा कवरेज और हॉस्पिस देखभाल मॉडल द्वारा समर्थित है।
  • भारत को अमेरिकी मॉडल से सीखकर भारतीय संदर्भ में लागू करते हुए संतुलन बनाए रखना चाहिए।

निष्कर्ष

पैलिएटिव केयर का एकीकरण भारत के स्वास्थ्य देखभाल ढांचे में अब आवश्यक हो चुका है। लाखों भारतीयों को जरूरी समय पर यह देखभाल मिलना सुनिश्चित करने के लिए सरकार एवं स्वास्थ्य क्षेत्र के नीति-निर्माताओं को सामूहिक रूप से इस दिशा में काम करना होगा।

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