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राज्यपाल की विधायी भूमिका

(प्रारंभिक परीक्षा: भारतीय राजव्यवस्था)
(मुख्य परीक्षा, सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र- 2 : राज्य विधायिका- संरचना, कार्य, कार्य-संचालन, शक्तियाँ एवं विशेषाधिकार और इनसे उत्पन्न होने वाले विषय)

संदर्भ 

राज्य विधानसभाओं द्वारा पारित विधेयकों पर विभिन्न राज्यों जैसे- पंजाब के मामले में सर्वोच्च न्यायालय द्वारा हस्तक्षेप और तमिलनाडु, तेलंगाना एवं पश्चिमी बंगाल में राज्यपालों की निष्क्रियता के कारण राज्यपाल की भूमिका पर सवाल उठे हैं।

राज्यपाल की विधायी भूमिका

संविधान के अनुच्छेद 200 के अनुसार

  • जब राज्यपाल के समक्ष अनुमति के लिए कोई विधेयक (धन विधेयक के अलावा) लाया जाता है, तो वह : 
    • अपनी स्वीकृति देता है या अनुमति रोक लेता है। 
    • विधेयक को राष्ट्रपति के विचार के लिए आरक्षित रखता है। 
    • विधेयक को पुनर्विचार के लिए सदनों को लौटा देता है।  
  • यदि राज्य विधानमंडल द्वारा संशोधन के साथ या बिना संशोधन के कानून को फिर से अधिनियमित किया जाता है, तो उसे या तो अपनी सहमति देनी होगी या राष्ट्रपति के विचार के लिए विधेयक को सुरक्षित रखना होगा।

अनुच्छेद 201 के अनुसार

जब कोई विधेयक राज्यपाल द्वारा राष्ट्रपति के विचार के लिए आरक्षित रख लिया जाता है तब यह राष्ट्रपति पर निभर है कि वह विधेयक पर अनुमति दे या अनुमति रोक ले।

विवाद के कारण 

  • राज्यपालों ने उन विधेयकों को राष्ट्रपति के पास विचार के लिए भेजने की रणनीति अपनाई है, जिन्हें वे अस्वीकार करते हैं। 
  • जब राष्ट्रपति केंद्र सरकार की सलाह के आधार पर राज्य विधेयकों को मंजूरी देने से इनकार कर देते हैं, तो राज्य विधानसभाओं के पास कोई विकल्प नहीं बचता।
  • ऐसे में यह संभावना व्यक्त की जाती है कि राष्ट्रपति के विचार के लिए कुछ विधेयकों को आरक्षित करने के प्रावधान का दुरुपयोग संघवाद को नष्ट करने के लिए किया जा रहा है। 
  • मूल रूप से विवाद इस सवाल से संबंधित है कि क्या संविधान राज्यों के विधायी क्षेत्र में इस तरह के अप्रत्यक्ष केंद्रीय हस्तक्षेप की अनुमति देता है?

इस मुद्दे पर सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय

पंजाब 

  • पंजाब राज्य के  मामले में उच्चतम न्यायालय ने निर्णय दिया था कि “राज्यपालों को विधेयकों पर वीटो का अधिकार नहीं है। 
  • जब भी वे अपनी सहमति वापस लेते हैं, तो उन्हें विधेयक विधानसभा को वापस भेजना होता है। 
    • यदि विधानसभा संशोधनों के साथ या बिना संशोधनों के विधेयकों को पुन: पारित करती है, तो उन्हें सहमति देना अनिवार्य है। 

तेलंगाना

तेलंगाना के मामले में उच्चतमन्यायालय ने निर्णय दिया कि “राज्यपालों से अपेक्षा की जाती है कि वे विधेयकों पर जितनी जल्दी हो सके कार्रवाई करें क्योंकि विधेयकों के मामले में महत्वपूर्ण संवैधानिक तत्व होते हैं जिन्हें संवैधानिक पदाधिकारियों को ध्यान में रखना होगा।

केरल 

केरल द्वारा उच्चतम न्यायालय के समक्ष रिट याचिका में राज्यपाल द्वारा विधेयकों को राष्ट्रपति के पास भेजने और राष्ट्रपति द्वारा उन्हें मंजूरी देने से इन्कार करने की कार्रवाई को चुनौती दी गई है। यह मामला अभी विचारधीन है।

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