कौन हैं : असम एवं पूर्वोत्तर भारत में निवास करने वाला एक तिब्बती-बर्मी समुदाय
प्रसार : मुख्यत: ग्वालपाड़ा, कामरूप एवं दरंग जिलों में के साथ-साथ मेघालय, पश्चिम बंगाल व बांग्लादेश से सटे इलाकों में
प्रमुख निवास :मुख्यत: निचले असम व दोआर के मैदानों में और कुछ गारो पहाड़ियों में
दोआर के ज़्यादातर राभा स्वयं को ‘राभा’ कहते हैं लेकिन उनमें से कुछ प्राय: खुद को ‘कोचा (Kocha)’ कहते हैं।
राभा किसी भी अन्य बोरो (Boro) समूह की तुलना में गारो के साथ अधिक संबद्ध हो गए हैं।
मिश्रित संस्कृति :अपनी एक समृद्ध, बहुआयामी एवं विशिष्ट संस्कृति
राभा की कृषि पद्धतियाँ, खान-पान की आदतें और विश्वास प्रणालियाँ आर्य एवं मंगोल दोनों संस्कृतियों की विशेषताओं का मिश्रण दर्शाती हैं।
सामाजिक विशेषता :मातृसत्तात्मक समाज
पुरुष व महिलाएँ दोनों खेतों में काम करते हैं। महिलाएँ रंगीन कपड़े पहनना पसंद करती हैं जिन्हें वे खुद बुनती हैं और वे बहुत सारे मोतियों व चाँदी के गहने पहनती हैं।
अर्थव्यवस्था :कृषि पर आधारित
आहार : मांसाहारी और मुख्य भोजन चावल
राभा की उप-जनजातियां : रंगदानी (Rangdani), पाटी (Pati), मैतोरी (Maitori), तोतला (Totla), बितालिया (Bitalia) एवं संघा (Sangha)
आस्था प्रणाली :मुख्य रूप से सर्वात्मवादी (Animistic) प्रकृति की
वे दुष्ट एवं दयालु (परोपकारी) दोनों तरह की आत्माओं में विश्वास करते हैं।