(प्रारंभिक परीक्षा : सामाजिक एवं आर्थिक विकास) (मुख्य परीक्षा, सामान्य अध्ययन प्रश्न पत्र-2 : स्वास्थ्य, शिक्षा, मानव संसाधनों से संबंधित सामाजिक क्षेत्र/सेवाओं के विकास और प्रबंधन से संबंधित विषय) |
संदर्भ
12 मई को अंतर्राष्ट्रीय नर्स दिवस के अवसर पर फ्लोरेंस नाइटिंगेल की स्मृति में नर्सों के योगदान को सम्मानित किया जाता है। नर्सें भारत की स्वास्थ्य सेवा प्रणाली की रीढ़ हैं जो देखभाल, करुणा एवं नेतृत्व के माध्यम से समाज सेवा करती हैं।
भारत में स्वास्थ्य क्षेत्र में नर्सों की भूमिका
- भारत में नर्सें स्वास्थ्य कार्यबल का लगभग 47% हिस्सा हैं। वे रोगियों की देखभाल, उपचार एवं स्वास्थ्य शिक्षा में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं। हालांकि, उन्हें प्राय: डॉक्टरों के सहायक के रूप में देखा जाता है जिससे उनकी क्षमता सीमित होती है।
- स्वतंत्र एवं उन्नत देखभाल प्रदाता के रूप में नर्स प्रैक्टिशनर्स (NP) की अवधारणा भारत में स्वास्थ्य देखभाल की पहुंच को बढ़ाने के लिए आवश्यक है।
नर्सिंग क्षेत्र के सशक्तिकरण के लिए सरकारी प्रयास
- राष्ट्रीय स्वास्थ्य नीति, 2017: एन.पी. को प्राथमिक देखभाल के लिए महत्वपूर्ण माना गया।
- भारतीय नर्सिंग काउंसिल (INC): नर्स प्रैक्टिशनर इन क्रिटिकल केयर (NPCC) और प्राइमरी हेल्थ केयर (NPPHC) जैसे कार्यक्रम शुरू किए।
- राष्ट्रीय नर्सिंग एवं मिडवाइफरी आयोग अधिनियम, 2023: नर्सिंग शिक्षा व विनियमन में सुधार का लक्ष्य।
- प्रशिक्षण एवं विशेषज्ञता : पश्चिम बंगाल में मिडवाइफरी एन.पी. कार्यक्रम और अन्य संस्थानों में विशिष्ट प्रशिक्षण शुरू किए गए।
अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर नर्सों के लिए प्रमुख संगठन एवं पहल
- विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) : नर्सिंग कार्यबल को सशक्त बनाने के लिए निवेश एवं नीतिगत सुधारों की वकालत करता है।
- अंतर्राष्ट्रीय नर्स परिषद (ICN) : नर्सों के अधिकारों, शिक्षा एवं नेतृत्व को बढ़ावा देता है।
- नर्स प्रैक्टिशनर मॉडल : ऑस्ट्रेलिया, अमेरिका, ब्राजील व दक्षिण अफ्रीका जैसे देशों में एन.पी. स्वतंत्र देखभाल प्रदाता के रूप में मान्यता प्राप्त हैं। ऑस्ट्रेलिया में नर्स-नेतृत्व वाले वॉक-इन सेंटर इसका उदाहरण हैं।
- ग्लोबल नर्सिंग पहल : नर्सों की शिक्षा, लाइसेंसिंग एवं कैरियर प्रगति के लिए वैश्विक मानक स्थापित किए गए।
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नर्सों के समक्ष चुनौतियाँ
- सीमित स्वायत्तता : नर्सों को डॉक्टरों के सहायक के रूप में देखा जाता है जिससे उनकी नेतृत्व एवं नैदानिक क्षमता सीमित होती है।
- कानूनी अस्पष्टता : एन.पी. के लिए प्रिस्क्रिप्शन अधिकार एवं अभ्यास के दायरे को परिभाषित करने वाला स्पष्ट कानूनी ढांचा नहीं है।
- सांस्कृतिक और लैंगिक पूर्वाग्रह : नर्सिंग को मुख्य रूप से महिलाओं का पेशा मानकर अधीनस्थ माना जाता है।
- शिक्षा एवं विनियमन की कमी : निम्न-गुणवत्ता वाले नर्सिंग कॉलेज, संकाय की कमी एवं भ्रष्टाचार।
- कैरियर प्रगति का अभाव : अस्पष्ट लाइसेंसिंग, निम्न वेतन एवं उन्नति के सीमित अवसर।
- नीतिगत भागीदारी की कमी : नर्सिंग आंदोलनों की अनुपस्थिति के कारण नीति निर्माण में उनकी भागीदारी कमजोर है।
आगे की राह
- कानूनी मान्यता : एन.पी. के लिए स्पष्ट लाइसेंसिंग, प्रिस्क्रिप्शन अधिकार और अभ्यास के दायरे को परिभाषित करने वाला कानून लागू हो।
- शिक्षा सुधार : निम्न-गुणवत्ता वाले कॉलेज बंद करना, संकाय प्रशिक्षण बढ़ाना और नैतिकता, नेतृत्व व नीतिगत जुड़ाव को पाठ्यक्रम में शामिल करना।
- सांस्कृतिक बदलाव : नर्सिंग के लिंग-आधारित अवमूल्यन को चुनौती देने के लिए जागरूकता अभियान चलाना।
- कैरियर ढांचा : स्पष्ट कैरियर मार्ग, उचित वेतन एवं उन्नति के अवसर सुनिश्चित करना।
- नर्सिंग आंदोलन : जमीनी स्तर पर नर्सिंग संगठनों को मजबूत करना, जो नीति संवादों में भाग लें और चिकित्सा पदानुक्रम को चुनौती दें।
- सहयोगी मॉडल : चिकित्सकों व नर्सों के बीच टीम-आधारित देखभाल को बढ़ावा देना।
- ऑस्ट्रेलिया जैसे देशों से प्रेरणा लेते हुए, नर्स-नेतृत्व वाले मॉडल जैसे सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र स्थापित किए जा सकते हैं।