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भारत के सौर ऊर्जा लक्ष्य के समक्ष चुनौतियाँ 

(मुख्य परीक्षा, सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र- 3 : बुनियादी ढाँचाः ऊर्जा)

संदर्भ  

भारत सरकार ने वर्ष 2030 तक 500 गीगावॉट नवीकरणीय ऊर्जा का लक्ष्य निर्धारित किया है। इसमें से लगभग 280 गीगावॉट ऊर्जा सौर फोटोवोल्टिक प्रणाली से उत्पन्न होना अपेक्षित है। इस लक्ष्य की प्राप्ति के लिये भारत को वर्ष 2030 तक प्रत्येक वर्ष 30 गीगावॉट सौर क्षमता की तैनाती की आवश्यकता है।

वर्तमान स्थिति 

  • सौर फोटोवोल्टिक (PV) ने भारत को स्वच्छ ऊर्जा उत्पादन प्रौद्योगिकियों को अपनाने की दिशा में प्रेरित किया है। वर्ष 2010 में सौर फोटोवोल्टिक से ऊर्जा निर्माण क्षमता 10 मेगावॉट से कम थी जो वर्ष 2022 तक बढकर 50 गीगावॉट से अधिक हो गई है।
  • हालाँकि, अभी भी भारतीय सौर ऊर्जा उपकरण निर्माता एवं संस्थापक कंपनियां मुख्यत: आयात पर निर्भर है और इनके पास पर्याप्त मॉड्यूल तथा सेल (Cell) निर्माण क्षमता नहीं है।

सौर फोटोवोल्टिक (Solar Photovoltaic)

  • फोटोवोल्टिक पद दो शब्दों- फोटो और वोल्टिक से मिलकर बना है। फोटो (Photo) का अर्थ है प्रकाश और वोल्टिक (Voltic) का अर्थ है विद्युत्। इस प्रकार, इसे सूर्य के प्रकाश को विद्युत् में परिवर्तित करने की प्रक्रिया के लिये उपयोग किया जाता है।
  • विशिष्ट सौर फोटोवोल्टिक श्रृंखला में सर्वप्रथम पॉलीसिलिकॉन पट्टियां बनाई जाती हैं और इन्हें फोटोवोल्टिक मिनी मॉड्यूल के निर्माण के लिये पतले सी वेफर्स (Si Wafers) के रूप में परिवर्तित किया जाता है ।
  • फिर मिनी मॉड्यूल को स्थापित करने लायक मॉड्यूल में परिवर्तित कर दिया जाता है, जिन्हें सौर ऊर्जा उत्पादन प्रकिया में उपयोग किया जाता है।

विनिर्माण क्षमता 

  • भारत की तत्कालीन सौर मॉड्यूल विनिर्माण क्षमता लगभग 15 गीगावाट प्रतिवर्ष है। इसमें से केवल 3-4 गीगावाट मॉड्यूल ही तकनीकी रूप से प्रतिस्पर्धी तथा ग्रिड-आधारित परियोजनाओं में स्थापित करने योग्य हैं।
  • मूल्य श्रृंखला में आगे बढ़ने के साथ-साथ माँग एवं आपूर्ति का अंतर बढ़ता जा रहा है। उदाहरणस्वरुप भारत वर्तमान में केवल लगभग 3.5 गीगावाट सेल का उत्पादन करता है और लगभग 80% सेल का आयात करता है। 
  • भारत में सौर वेफर्स तथा पॉलीसिलिकॉन पट्टियों के निर्माण की कोई क्षमता मौजूद नहीं है और इसका 100% आयात किया जाता है।

सरकारी नीतियां  

  • सरकार ने इस अंतर को पहचानाते हुए मॉड्यूल आयात पर 40% तथा सेल आयात पर 25% शुल्क लगाया है। साथ ही, इसके विनिर्माण को समर्थन देने के लिये पी.एल.आई. (PLI) योजना क्रियान्वित की जा रही है।
  • राज्य या केंद्र सरकार के ग्रिड से जुडी परियोजनाओं के लिये केवल अनुमोदित निर्माता सूची से मॉड्यूल खरीदना अनिवार्य कर दिया गया है। इसके लिये केवल भारत में कार्यरत निर्माताओं को ही अनुमति दी गई है। यह भारतीय उद्योगों को प्रेरित करने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है।

आकार और तकनीक की समस्या

  • तत्कालीन भारतीय उद्योग मुख्यत: आकार और प्रौद्योगिकी की समस्या से जूझ रहा है। अधिकांश भारतीय उद्योग केवल M2 आकार के वेफर को संभालने में सक्षम है जबकि
    वैश्विक उद्योग M10 और M12 आकार के वेफर की ओर बढ़ चुके है।
  • बड़े आकार के वेफर निर्माण प्रक्रिया में सिलिकॉन लागत कम होने के साथ-साथ प्रसंस्करण के दौरान कम नुकसान होता है।
  • आकार की समस्या के साथ-साथ देश में सेल निर्माण प्रौद्योगिकी की समस्या भी विद्यमान है। आज भी भारतीय विनिर्माण उद्योग ए.एल.-बी.एस.एफ. (Aluminum Back Surface Field : Al-BSF) तकनीक का प्रयोग कर रहे है जो सेल स्तर पर मात्र 18-19% और मॉड्यूल स्तर पर 16-17% की ही दक्षता दे सकता है। विश्व स्तर पर यह दक्षता कम-से-कम 21% की हो गई है।
  • सौर ऊर्जा परियोजनाओं में सबसे महंगा घटक भूमि है। भारत में भूमि की समस्या अत्यधिक जटिल है अत: भारतीय उद्योग जगत के पास नई और उन्नत तकनीक की ओर अग्रसर होने के अतिरिक्त अन्य विकल्प मौजूद नहीं है। 

कच्चे माल की स्थिति 

  • सौर ऊर्जा प्रणाली में प्रयुक्त सबसे महंगे कच्चे माल ‘सिलिकॉन वेफर’ का उत्पादन भारत में नहीं किया जाता है । 
  • विश्व के 90% सौर वेफर का उत्पादन चीन में किया जाता है इसलिये भारत को यह तकनीक प्राप्त करने में विशेष समस्याओं का सामना करना पड़ सकता है।
  • एल्युमिनियम जैसे अन्य प्रमुख कच्चे माल का भी मुख्यत: आयात ही किया जाता है। वस्तुत: भारत विनिर्माण हब की जगह असेंबली हब (Assembly Hub) की भूमिका अदा कर रहा है।

आगे की राह 

  • सौर ऊर्जा प्रणाली में प्रयुक्त अधिकांश सामग्री के उत्पादन के लिये भारत में विनिर्माण प्रणाली के विकास की आवश्यकता है, जिससे आत्मनिर्भरता प्राप्ति के साथ-साथ लागत नियंत्रण भी संभव हो सकेगा।
  • भारत सरकार को उद्योग और शिक्षा क्षेत्र के विशेषज्ञों के संयोजन से भावी सौर ऊर्जा रणनीतियों का निर्धारण करना चाहिये।
  • भारत को आयात सामाग्री पर शुल्क प्रतिबंधों के अतिरिक्त कई अन्य महत्त्वपूर्ण कदम उठाने की आवश्यकता है, जिससे ऊर्जा सुरक्षा और पर्यावरणीय प्रतिबद्धताओं की पूर्ति की जा सके।
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