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कॉप-27 : उपलब्धियाँ एवं भावी संभावनाएँ

(प्रारंभिक परीक्षा- राष्ट्रीय महत्त्व की सामयिक घटनाएँ, पर्यावरणीय पारिस्थितिकी, जैव-विविधता और जलवायु परिवर्तन संबंधी सामान्य मुद्दे)
(मुख्य परीक्षा, सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र-3 : संरक्षण, पर्यावरण प्रदूषण और क्षरण, पर्यावरण प्रभाव का आकलन)

संदर्भ 

मिस्र के शर्म अल शेख में 6 से 20 नवंबर के मध्य संयुक्त राष्ट्र जलवायु परिवर्तन फ्रेमवर्क सम्मलेन (UNFCCC) के कॉप-27 (CoP-27) का आयोजन किया गया। इस सम्मेलन की सबसे बड़ी सफलता ‘हानि एवं क्षति कोष’ (Loss and Damages Fund) की स्थापना के लिये विश्व समुदाय द्वारा आपसी सहमति व्यक्त किया जाना है। 

प्रमुख बिंदु

  • संयुक्त राष्ट्र द्वारा जलवायु शिखर सम्मेलन का आयोजन प्रत्येक वर्ष किया जाता है, ताकि विश्व के सभी देश सामूहिक रूप से वैश्विक तापमान वृद्धि को सीमित करने के प्रयासों पर सहमत हो सकें।
  • इस सम्मेलन में 197 देशों के प्रतिनिधि पर्यावरणीय क्षरण को कम करने और जलवायु आपदा को रोकने के तरीकों पर चर्चा करने के लिये एकत्रित हुए।
  • इसके पक्षकारों की पहली बैठक (कॉप-1) वर्ष 1995 में जर्मनी के बर्लिन में जबकि कॉप-26 की बैठक विगत वर्ष ग्लासगो (ग्रेट ब्रिटेन) में आयोजित की गई। वर्ष 2023 में कॉप-28 का आयोजन दुबई, संयुक्त अरब अमीरात में किया जाएगा।

कॉप-27  के लक्ष्य और विजन

शमन (Mitigation)

  • शमन का उद्देश्य वैश्विक तापमान को कम-से-कम 2°C की सीमा से नीचे रखना है। जबकि 1990 और 2020 के बीच वैश्विक ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन में 14 गीगाटन कार्बन डाइऑक्साइड समतुल्य (GtCO2e) की वृद्धि हुई है। 
  • अगर कार्बन उत्सर्जन की दर को नियंत्रित नहीं किया गया तो वर्ष 2100 तक वैश्विक तापमान में 2.7°C की वृद्धि हो जाएगी, जो पेरिस समझौते के लक्ष्य से बहुत दूर है।   

अनुकूलन (Adaptation)

  • जर्मनवॉच द्वारा प्रकाशित वैश्विक जलवायु जोखिम सूचकांक के अनुसार, मोज़ाम्बिक, दक्षिण सूडान और भारत वर्ष 2019 में चरम मौसम की घटनाओं से सर्वाधिक प्रभावित देश थे। सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरनमेंट की एक रिपोर्ट के अनुसार, भारत ने इस वर्ष के पहले नौ महीनों में 88% दिनों में चरम मौसम की घटनाओं का सामना किया है। 
    • हालाँकि, ये देश कार्बन उत्सर्जन में बहुत कम भागीदार हैं। एक अनुमान के अनुसार मोज़ाम्बिक वैश्विक उत्सर्जन में केवल 0.06% का योगदान देता है।
  • वर्ष 2001 में विकासशील देशों में ठोस अनुकूलन परियोजनाओं और कार्यक्रमों के वित्तपोषण के लिये अनुकूलन कोष की स्थापना की गई। ये देश जलवायु परिवर्तन के प्रतिकूल प्रभावों के प्रति अत्यधिक संवेदनशील हैं। इस कोष में कॉप-26 के दौरान 350 मिलियन डॉलर से अधिक के योगदान का वचन दिया गया था। कॉप-27 में इन प्रयासों को समर्थन प्रदान करने के लिये वैश्विक देशों पर जोर दिये जाने का लक्ष्य रखा गया है। 

वित्त (Finance)

  • वर्ष 2009 में कॉप-15 शिखर सम्मेलन में विकसित राष्ट्रों ने सामूहिक रूप से वर्ष 2020 तक प्रति वर्ष 100 बिलियन डॉलर की सहायता प्रदान करने की प्रतिबद्धता प्रकट की थी, ताकि विकासशील देशों को जलवायु परिवर्तन का प्रबंधन करने में सहायता मिल सके। इसे पेरिस में कॉप-21 के दौरान वर्ष 2025 तक बढ़ा दिया गया था। 
  • किंतु अब तक इस लक्ष्य को प्राप्त नहीं किया जा सका है। वर्ष 2018 में विकसित देशों ने विकासशील देशों के लिये 78 अरब डॉलर की धनराशि जुटाई। वर्ष 2019 में यह धनराशि 80 बिलियन डॉलर थी।

सहयोग (Collaboration)

  • विदित है कि वर्ष 2021 में गैर-ओईसीडी (Non-OCED) देशों की कोयले की खपत में 6.3% की वृद्धि हुई। भारत में भी कोयले की खपत में वृद्धि देखी गई है जो वर्तमान में विश्व का तीसरा सबसे बड़ा कार्बन उत्सर्जक है। 
  • वर्ष 2070 तक भारत द्वारा शुद्ध शून्य उत्सर्जन का लक्ष्य रखा गया है। साथ ही, राष्ट्रीय स्तर पर निर्धारित योगदान (Nationally Determined Contribution : NDC) के तहत वर्ष 2030 तक 1 बिलियन टन कार्बन उत्सर्जन में कटौती करने और सकल घरेलू उत्पाद की उत्सर्जन तीव्रता को 45% तक कम करने का लक्ष्य रखा गया है।
  • इन लक्ष्यों की प्राप्ति के लिये विश्व स्तर पर सरकारों, नागरिक समाजों और निजी क्षेत्रों को साथ में मिलकर कार्य करना होगा।

कॉप-27 की उपलब्धियाँ

हानि और क्षति कोष

  • कॉप-27 में जलवायु से जुड़ी आपदाओं से होने वाले क्षति के लिये सर्वाधिक सुभेद्य देशों (Vulnerable Countries) को वित्त पोषण प्रदान करने हेतु ‘हानि और क्षति’ कोष स्थापित करने पर सहमति प्रकट की गई है।

cop-27

  • चरम मौसम के कारण नुकसान उठाने वाले देशों के भौतिक एवं सामाजिक बुनियादी ढांचे को बचाने तथा पुनर्निर्माण के लिये इस कोष से आवश्यक धन आवंटित किया जाएगा।
  • इस वित्तीय सुविधा के वित्त पोषण स्रोत एवं मापदंड तथा इसकी संचालन प्रक्रियाओं  का निर्धारण एक संक्रमणकालीन समिति (Transitional Committee) द्वारा किया जाएगा जो अगले वर्ष कॉप-28  में अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत करेंगे।  

1.5 0C लक्ष्य प्राप्ति हेतु प्रयास  

  • वर्ष 2015 के पेरिस में आयोजित कॉप-21 समझौते में दो तापमान लक्ष्य निर्धारित किये गए थे- तापमान वृद्धि को पूर्व औद्योगिक स्तरों से 2°C से नीचे रखना तथा तापमान वृद्धि को 1.5°C तक सीमित रखने के लिये विशेष प्रयास करना।
  • जलवायु परिवर्तन की गंभीरता को देखते हुए विगत वर्ष ग्लासगो में आयोजित कॉप-26 में वैश्विक स्तर पर तापमान वृद्धि को 1.5 °C तक बनाए रखने के लिये सहमति प्रकट की गई। 
  • कॉप-27 के दौरान प्रस्तुत कार्यान्वयन योजना में तापमान वृद्धि को 1.5°C तक सीमित करने के प्रयासों को आगे बढ़ाने की अपनी अधिक स्पष्ट प्रतिबद्धता को प्रस्तुत किया गया है। यह स्वीकार किया गया है कि इस तरह के लक्ष्य के लिये वैश्विक ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन तीव्रता में निरंतर कमी की आवश्यकता होगी। हालाँकि, कार्यान्वयन योजना यह नहीं बताती है कि इस महत्वाकांक्षी लक्ष्य को कैसे प्राप्त किया जाना है।
  • इस लक्ष्य की प्राप्ति के लिये भारत ने कॉप-27 में सभी जीवाश्म ईंधनों को चरणबद्ध तरीके से समाप्त करने की आवश्यकता का विचार प्रस्तुत किया। हालाँकि, इसे स्वीकार नहीं किया गया। 

कॉप-27 के कुछ अन्य प्रमुख परिणाम

  • कॉप-27 में विकासशील देशों में जलवायु प्रौद्योगिकी समाधानों को बढ़ावा देने के लिये एक नए पंचवर्षीय कार्यक्रम की शुरुआत की गई।
  • वर्ष 2030 तक शमन महत्वाकांक्षा एवं कार्यान्वयन को बढ़ावा देने के उद्देश्य से शमन कार्य योजना (Mitigation Work Programme) शुरू की गयी। देशों से यह भी अनुरोध किया गया कि वे वर्ष 2023 के अंत तक अपनी राष्ट्रीय जलवायु योजनाओं में वर्ष 2030 के लक्ष्यों पर पुनः विचार करें और उन्हें मजबूत करें। साथ ही, कोयले आधारित ऊर्जा को चरणबद्ध तरीके से कम करने (Phase Down) और जीवाश्म ईंधन सब्सिडी को समाप्त करने (Phase Out) के प्रयासों में तेजी लाएं।
  • कॉप-27 में प्रतिनिधियों ने पहले वैश्विक स्टॉकटेक की दूसरी तकनीकी वार्ता का आयोजन किया। अगले वर्ष कॉप-28 में स्टॉकटेक के समापन से पूर्व वर्ष 2023 में 'जलवायु महत्वाकांक्षा शिखर सम्मेलन' (Climate Ambition Summit) का भी आयोजन किया जाएगा।
    • विदित है कि वैश्विक स्टॉकटेक पेरिस समझौते के उद्देश्य और इसके दीर्घकालिक लक्ष्यों को प्राप्त करने की दिशा में दुनिया की सामूहिक प्रगति का आकलन करने की एक प्रक्रिया है।

सम्मेलन में की गई घोषणाएं

  • प्रारंभिक चेतावनी प्रणाली : संयुक्त राष्ट्र महासचिव एंटोनियो गुटेरेस ने अगले पाँच वर्षों के भीतर विश्व की प्रत्येक आबादी को प्रारंभिक चेतावनी प्रणाली द्वारा सुरक्षित किये जाने के उद्देश्य से 3.1 अरब डॉलर की योजना की घोषणा की है।
  • जलवायु जोखिमों के विरुद्ध ग्लोबल शील्ड : जी-7 और वी-20 (Vulnerable Twenty) ने 200 मिलियन अमरीकी डॉलर के साथ ‘जलवायु जोखिमों के विरुद्ध ग्लोबल शील्ड’ (Global Shield Against Climate Risks) को लॉन्च किया है।
  • इस पहल का उद्देश्य सुभेद्य देशों में रहने वाले लोगों के लिये जलवायु संबंधी आपदा जोखिमों के विरुद्ध वित्तीय सुरक्षा में सुधार करना है।
  • फ़ॉरेस्ट एंड क्लाइमेट लीडर्स पार्टनरशिप : वर्ष 2030 तक वन हानि एवं भूमि क्षरण रोकथाम के लिये सरकारों, व्यवसायों एवं सामुदायिक नेताओं की कार्रवाई को एकजुट करने के उद्देश्य से फ़ॉरेस्ट एंड क्लाइमेट लीडर्स पार्टनरशिप को लॉन्च किया गया।
  • मैंग्रोव एलायंस फॉर क्लाइमेट : वैश्विक स्तर पर मैंग्रोव वनों के संरक्षण और बहाली को बढ़ाने तथा जलवायु परिवर्तन शमन एवं अनुकूलन के लिये इन पारिस्थितिकी तंत्रों के महत्त्व को रेखांकित करने के उद्देश्य से मैंग्रोव एलायंस फॉर क्लाइमेट को लॉन्च किया गया।
  • अंतर्राष्ट्रीय सूखा लचीलापन गठबंधन : सूखे की स्थिति से बेहतर तरीके से निपटने में सदस्य देशों को सहायता प्रदान करने के उद्देश्य से अंतर्राष्ट्रीय सूखा लचीलापन गठबंधन (International Drought Resilience Alliance) की शुरुआत की गई है।
  • बुनियादी ढाँचा लचीलापन त्वरक कोष : आपदा रोधी अवसंरचना गठबंधन (CDRI) ने आपदा-लचीला बुनियादी ढाँचा प्रणाली के वित्तीयन के लिये 50 मिलियन डॉलर (लगभग 400 करोड़ रुपए) के बुनियादी ढाँचा लचीलापन त्वरक कोष (Infrastructure Resilience Accelerator Fund) की घोषणा की है।
  • मीथेन अलर्ट एंड रिस्पांस सिस्टम : मीथेन उत्सर्जन का पता लगाने और उससे निपटने के लिये ‘मीथेन अलर्ट एंड रिस्पांस सिस्टम’ (MARS) को लॉन्च किया गया।  

भावी संभावनाएँ

सभी जीवाश्म ईंधनों को चरणबद्ध तरीके से समाप्त करना

  • इस वर्ष कॉप-27 में भारत के नेतृत्व में कुछ देशों ने सभी जीवाश्म ईंधनों को चरणबद्ध तरीके से समाप्त करने (फेज आउट) की प्रतिबद्धता को शामिल करने का आह्वान किया। लेकिन इस प्रस्ताव पर वैश्विक स्तर पर आम सहमति नहीं बन सकी।
  • विदित है कि पिछले वर्ष ग्लासगो में कोयले के इस्तेमाल को चरणबद्ध तरीके से कम करने (फेज डाउन) की प्रतिबद्धता पर सहमति बनी थी।

carbon

जलवायु वित्त 

  • जलवायु वित्त लंबे समय से जलवायु वार्ताओं में एक प्रमुख मुद्दा रहा है। वर्ष 2020 तक प्रति वर्ष 100 बिलियन डॉलर प्रदान करने की विकसित देशों की प्रतिबद्धता को अभी तक पूरा नहीं किया जा सका है। 
  • कॉप-27 में विकासशील देशों की जरूरतों और प्राथमिकताओं को ध्यान में रखते हुए वर्ष 2024 में 'जलवायु वित्त पर नया सामूहिक मात्रात्मक लक्ष्य' (New Collective Quantified Goal On Climate Finance) स्थापित करने पर विचार-विमर्श किया गया। 
  • गौरतलब है कि वर्ष 2030 तक अक्षय ऊर्जा में लगभग 4 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर के निवेश की आवश्यकता है ताकि वर्ष 2050 तक शुद्ध शून्य उत्सर्जन के लक्ष्य तक पहुँचा जा सके। इसके अलावा, निम्न कार्बन अर्थव्यवस्था (Low-Carbon Economy) में वैश्विक परिवर्तन के लिये प्रति वर्ष कम-से-कम 4 से 6 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर के निवेश की आवश्यकता है।

संयुक्त राष्ट्र जलवायु परिवर्तन फ्रेमवर्क सम्मेलन (UNFCCC)

  • यह एक अंतर्राष्ट्रीय पर्यावरण संधि है, जिसका उद्देश्य पृथ्वी की जलवायु प्रणाली के साथ खतरनाक मानवजनित हस्तक्षेप को रोकना है।
  • यह संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण एवं विकास सम्मेलन, 1992 (जिसे पृथ्वी शिखर सम्मेलन या रियो शिखर सम्मेलन के रूप में भी जाना जाता है) के दौरान अस्तित्व में आया। इसका सचिवालय जर्मनी के बॉन में स्थित है।
  • इसके 198 पक्षकार देश हैं, जो जलवायु परिवर्तन से निपटने में प्रगति का आकलन करने के लिये पक्षकारों के सम्मेलन (Conference of the Parties : COP) में वार्षिक रूप से मिलते है। वर्ष 1997 का क्योटो प्रोटोकॉल एवं वर्ष 2015 का पेरिस समझौता इसी फ्रेमवर्क के अंतर्गत आते है।
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