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महिला अपराध का गढ़ बनती साइबर दुनिया

(मुख्य परीक्षा, सामान्य अध्ययन प्रश्नप्रत्र- 2 और 3 : अति संवेदनशील वर्गों की रक्षा एवं बेहतरी के लिये गठित तंत्र, विधि, संस्थान; सूचना प्रौद्योगिकी)

संदर्भ

राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (NCRB) के अनुसार, वर्ष 2018 से 2020 के बीच भारत में महिलाओं के खिलाफ साइबर अपराध में अत्यधिक वृद्धि हुई है एवं अनुचित यौन सामग्रियों का ऑनलाइन प्रकाशन 110 प्रतिशत बढ़ गया है। वस्तुत: साइबर तकनीक का दुरुपयोग सोशल मीडिया के प्रारंभिक दौर से ही जारी है, जिसका शिकार किसी भी व्यवसाय और समुदाय से संबंधित सभी आयु वर्ग की महिलाएँ हो रहीं हैं। ‘बुली बाई’ और ‘सुल्ली डील’ एप्स महिलाओं के विरुद्ध ऑनलाइन उत्पीड़न का ताजा उदाहरण है।

साइबर यौन अपराधों की अधूरी तस्वीर

एन.सी.आर.बी. वार्षिक रिपोर्ट, 2020

  • रिपोर्ट के अनुसार, वर्ष 2020 के दौरान भारत में होने वाले कुल साइबर अपराधों में से 20 प्रतिशत महिलाओं के खिलाफ हुए, जिसमें साइबर धोखाधड़ी के बाद ‘यौन शोषण’ के सर्वाधिक मामले दर्ज हुए, जो साइबर अपराध से जुड़ी मंशा को स्पष्ट करता है।
  • साइबर अपराध से संबंधित मामलों में प्राथमिकी दर-
    • अनुचित यौन सामग्री के प्रकाशन या प्रसारण के लिये 47.1 प्रतिशत
    • साइबर ब्लैकमेलिंग और धमकी के मामलों में 66.7 प्रतिशत
    • साइबर स्टाकिंग और महिलाओं एवं बच्चों को डराने-धमकाने के मामलों में 27.6 प्रतिशत
    • फ़र्ज़ी प्रोफाइल के केवल दो मामलों में ट्रायल पूरा हुआ, जबकि 148 मामले लंबित हैं।
  • गृह मंत्रालय वर्ष 2018 से राष्ट्रीय साइबर अपराध पोर्टल का संचालन कर रहा है। इस पर वर्ष 2021 में महिलाओं के खिलाफ 600,000 से अधिक शिकायतें प्राप्त हुई, जिनमें से केवल 12,776 मामलों में ही प्राथमिकी दर्ज की गई।

      साइबर अपराध से संबंधित उपबंध

      • अनुचित यौन सामग्री के प्रकाशन या प्रसारण से संबंधित प्रावधान आई.टी. अधिनियम, 2000 की धारा 67A और 67B में
      • साइबर ब्लैकमेलिंग एवं धमकी से संबंधित मामलों के लिये भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 506, 503 और 384
      • साइबर स्टाकिंग और महिलाओं व बच्चों को डराने-धमकाने से संबंधित उपबंध आई.पी.सी. की धारा 354D में

      वर्तमान उपबंधों के संदर्भ में सुझाव

      • आई.टी. अधिनियम की धारा 67, 67A और 67B विशेष प्रकार के यौन अपराधों, जैसे- इंटरनेट पर बच्चों एवं महिलाओं को यौन कार्य के लिये तैयार करने एवं उन्हें प्रेरित करने को कवर नही करता है।
      • अधिनियम में इस संदर्भ में संशोधन करने और धारा 67 और 67A में उपबंधित ‘नैतिक ढाँचे’ को हटाने और ‘सहमति के तत्व’ को जोड़ने की आवश्यकता है।
      • व्यक्तिगत डाटा संरक्षण विधेयक में महिलाओं से संबंधित डाटा की विशेष सुरक्षा का उपबंध जोड़ा जाना चाहिये।

      समाज को अस्थिर करते साइबर अपराध

      • भारतीय दूरसंचार नियामक प्राधिकरण (ट्राई) के अनुसार, वर्ष 2021 के पूर्वार्ध तक भारत में लगभग 825 मिलियन इंटरनेट उपयोगकर्ता थे। इंटरनेट का दुरूपयोग देश की राजनीति, अर्थव्यवस्था और नागरिकों के व्यक्तिगत एवं सार्वजानिक जीवन में अस्थिरता ला सकता है।
      • यह देश के सामाजिक ताने-बाने पर भी विपरीत प्रभाव डाल सकता है, जैसा कि ओपन-सोर्स एप बुल्ली बाई के माध्यम से कथित तौर पर ‘समुदाय विशेष की महिलाओं’ को निशाना बनाया गया।
      • इसी प्रकार, विगत वर्ष सुल्ली डील एप पर समुदाय विशेष की महिलाओं के प्रोफाइल को 'सुल्ली डील ऑफ द डे' लाइन के साथ शेयर किया जा रहा था। यदि वास्तविक आँकड़े को देखा जाएँ तो यह समस्या महानगरों, छोटे शहरों या किसी जाति और समुदाय विशेष तक सीमित नहीं है बल्कि इसका दायरा अत्यधिक व्यापक है।
      • भारत में विवाह एक नाज़ुक विषय है और महिलाओं के खिलाफ यौन अपराध तथा चारित्रिक शंका संबंधों में विच्छेद करा सकती है। कई बार विवाह से पहले इंटरनेट पर महिलाओं की फ़र्ज़ी प्रोफाइल या मॉर्फ्ड तस्वीरों के संबंध में पुलिस अधिकारियों से मदद मांगी जाती है। 
      • यह कठोर सत्य है कि साइबर अपराध एवं ऑनलाइन उत्पीड़न से महिलाओं और उनके परिवारों को काफी तनाव होता है किंतु ऐसे मामलों में प्राथमिकी दर्ज़ कराने की अनिच्छा एक प्रमुख समस्या है। 
      • इस प्रकार, औपचारिक मामलों में प्राथमिकी दर्ज नहीं कराई जाती है। अत: ‘एन.सी.आर.बी. वार्षिक रिपोर्ट 2020’ में आई.पी.सी., आई.टी. अधिनियम और स्त्री अशिष्ट रूपण (प्रतिषेध) अधिनियम के तहत महिलाओं की तस्वीरों से संबंधित मानहानि या छेड़छाड़ के केवल 251 मामलों और फ़र्ज़ी प्रोफाइल के 354 मामलों में ही प्राथमिकी दर्ज हुई है।

      समस्या के स्वरूप की पहचान

      • साइबर अपराध की वस्तुस्थिति का पता लगाने के लिये त्वरित सूचना और पंजीकरण ही एकमात्र विकल्प है। अपराधों की रिपोर्ट/पंजीकरण करने की अनिच्छा साइबर अपराधियों को प्रोत्साहित करती है। 
      • अपराधी, पीड़ितों को ब्लैकमेल करने और धमकाने के अलावा ऑनलाइन सेक्स चैट और पोर्नोग्राफी के लिये सोशल मीडिया से महिलाओं की तस्वीरों का प्रयोग कर रहे हैं। 
      • मॉर्फिंग टूल का उपयोग करके वे किसी छवि को दूसरी छवि में बदल कर कानून लागू करने वाली एजेंसियों से बच जाते हैं।
      • कई अंतर्राष्ट्रीय गिरोह हैं, जिनके द्वारा उपयोग किये जाने वाले ‘सर्वर’ भारत के बाहर स्थित होने के कारण वे पकड़े जाने से सफलतापूर्वक बच जाते हैं। 
      • व्यक्तिगत डाटा का दुरूपयोग, साइबर छद्मरूपण और हनी ट्रैपिंग आदि कुछ प्रमुख ऑनलाइन अपराध हैं। साथ ही, कुछ एप्स में एंड-टू-एंड एन्क्रिप्शन और पहचान का गुप्त होना भी अपराध की आवृति को प्रोत्साहित करते हैं। 

      समाधान के पहलू

      • वास्तविक अपराधों की तुलना में प्राथमिकी दर काफी कम हैं। साइबर अपराधों के त्वरित परीक्षण से प्राथमिकी दर बेहतर की जा सकती है।
      • साइबर अपराधों से संबंधित अभियोजकों और न्यायिक अधिकारियों के व्यवस्थित प्रशिक्षण से मुकदमे दर्ज़ करने और उनके निपटान में तेजी आएगी।
      • औपचारिक संधियों और अनौपचारिक चैनलों के माध्यम से अंतर्राष्ट्रीय सहयोग को बढ़ाना होगा। वस्तुतः ‘CERT-In’ इस संबंध में सराहनीय कार्य कर रहा है। हालाँकि, आपराधिक मामला दर्ज़ करना पहला महत्त्वपूर्ण कदम है क्योंकि यह कानून को गति प्रदान करता है, जिससे देश के बाहर भी स्थित शरारती तत्वों का पता लगाना, गिरफ्तार करना और उन पर मुकदमा चलाना संभव है।
      • साइबर अपराध और सुरक्षा के बारे में जागरूकता बढ़ाने के लिये युवा, विशेषकर, बालिकाओं और महिलाओं को भी सर्फिंग करते समय उचित सावधानी बरतने की आवश्यकता है।
      • साइबर दुरुपयोग और उपलब्ध सुरक्षा उपायों के बारे में छात्रों को शिक्षित करने में स्कूलों, कॉलेजों, विश्वविद्यालयों और समुदायों को बड़े पैमाने पर सक्रिय भूमिका निभानी चाहिये।
      • सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स को शामिल कर उन्हें अपमानजनक ट्रैफिक की निगरानी और जांच करने के लिये प्रोत्साहित करना चाहिये एवं उपयोगकर्ताओं, विशेष रूप से महिलाओं और बच्चों के लिये अधिक सुरक्षा उपाय बनाने के लिये प्रेरित करना चाहिये।
      • उन्नत पुलिस स्टेशन, बेहतर बुनियादी ढाँचा, विशेषीकृत साइबर सेल एवं नियमित प्रशिक्षण के साथ साइबर विशेषज्ञों की आवश्यकता है।
      • फोरेंसिक प्रयोगशालाओं की क्षमता को मजबूत करने से साइबर बुलिंग, धमकी, मॉर्फिंग और प्रोफाइलिंग के साक्ष्य का समय पर संग्रह हो सकता है। इस उच्च तकनीकी कार्य में उत्कृष्ट कौशल की आवश्यकता होती है, क्योंकि ऑनलाइन संसार में लगातार परिवर्तन हो रहा है।
      • हालाँकि, कई राज्य प्रयोगशालाओं में न्यायालयों में दोषसिद्धि के लिये आवश्यक डिजिटल साक्ष्य की छवियों की जब्ती, उनके संरक्षण और संग्रहण के लिये पर्याप्त संख्या में साइबर विशेषज्ञ नहीं हैं। 
      • केंद्र सरकार ने ‘साइबर क्राइम प्रिवेंशन अगेंस्ट वूमेन एंड चिल्ड्रन’ (CCPWC) योजना के तहत राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को ‘साइबर फोरेंसिक-सह-प्रशिक्षण प्रयोगशालाएँ’ शुरू करने के लिये वित्त आबंटित किया है। राज्यों को भी अपनी फोरेंसिक इकाइयों के लिये संसाधन आबंटित करने की आवश्यकता है।

      निष्कर्ष

      नागरिकों द्वारा साइबर अपराध की त्वरित रिपोर्टिंग, फोरेंसिक तकनीक का उपयोग करते हुए पुलिस द्वारा तकनीकी रूप से कुशल जाँच और न्यायालय की कार्यवाही का समयबद्ध समापन साइबर अपराधियों को पकड़ने के लिये आवश्यक है।

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