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अधिवास आधारित आरक्षण: कानूनी और आर्थिक पहलू

(प्रारंभिक परीक्षा- भारतीय राज्यतंत्र औरशासन- संविधान, लोकनीति, अधिकारों संबंधी मुद्दे इत्यादि)
(मुख्य परीक्षा, सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र- 2 : सरकारी नीतियों और विभिन्न क्षेत्रों में विकास के लिये हस्तक्षेप और उनके अभिकल्पन तथा कार्यान्वयन के कारण उत्पन्न विषय)

संदर्भ

कुछ समय पूर्व ‘हरियाणा राज्य स्थानीय उम्मीदवार रोज़गार अधिनियम, 2020’ को अधिसूचित किया गया है। इससे आर्थिक रिकवरी सहित कई अन्य चिंताएँ पैदा हो गई हैं। साथ ही, इसने निजी क्षेत्र में रोज़गार में आरक्षण नीति अपनाने की बहस को पुनर्जीवित कर दिया है।

प्रमुख प्रावधान

  • इस अधिनियम के अनुसार, निजी क्षेत्र को 50,000 रुपए प्रति माहया उससे कम वेतन वाले पदों पर 75% स्थानीय लोगों की नियुक्ति करनी होगी। यहाँ स्थानीय से तात्पर्य राज्य में जन्म लेने वाले या वहाँ विगत 5 वर्ष से रहने वाले लोगों से है।
  • 10 से अधिक कर्मचारियों वाली सभी कंपनियों, सीमित दायित्व भागीदारी (LimitedLiabilityPartnership : LLP), ट्रस्ट, सोसाइटी और साझेदारी फर्मों को इन नियमों का पालन करना होगा। साथ ही, नए नियम ज़िला प्रशासन को 24 घंटे की पूर्व-नोटिस के साथ निरीक्षण का अधिकार देते हैं।
  • नियमों के तहत,फर्मों और कंपनियों को 50,000 रुपये या उससे कम वेतन वाले सभी कर्मचारियों को सरकारी पोर्टल परपंजीकृत करने के साथ-साथ इसे अपडेट भी करना होगा।
  • गौरतलब है कि वर्ष 2019 में आंध्र प्रदेशने भी इसी तरह का कानून पारित किया था, जो न्यायालय में विचाराधीन है।

राज्यों का तर्क

  • रोज़गार में सार्वजनिक क्षेत्र का हिस्सा लगातार कम होता जा रहा है और समानता के संवैधानिक अधिकार को प्राप्त करने के लिये ऐसे कानूनों की आवश्यकता है।
  • इसके अतिरिक्त, निजी उद्योग विभिन्न माध्यमों से सार्वजनिक अवसंरचना का प्रयोग करते है, अत: उनको आरक्षण नीति का पालन करना चाहिये। ‘शिक्षा का अधिकार’ कानून के अनुपालन में निजी विद्यालयों के लिये ऐसे ही तर्क को सर्वोच्च न्यायालय ने सही ठहराया था।
  • साथ ही, इसका उद्देश्य अकुशल श्रम बाज़ार में स्थानीय लोगोंको अधिक-से-अधिक रोज़गार प्रदान करना है।

कानूनी मुद्दे

  • पहला मुद्दा रोज़गार में अधिवास या निवास के आधार पर आरक्षण का है। हालाँकि, निवास के आधार पर शिक्षा क्षेत्र में आरक्षण काफी सामान्य है परंतु सार्वजनिक रोज़गार में इसको विस्तारित करने में कुछ कानूनी और संवैधानिक बाधाएँ हैं। पिछले वर्ष मध्य प्रदेश सरकार के निवास के आधार पर सरकारी नौकरियों में आरक्षण से समानता के मौलिक अधिकार संबंधी प्रश्न उठने लगे थे।
  • दूसरा प्रश्न निजी क्षेत्र द्वारा रोज़गार में आरक्षण नीति का पालन करने से संबंधित है, जोकि अधिक विवादास्पद है। राज्य को सार्वजनिक क्षेत्र में रोज़गार में आरक्षण प्रदान करने का अधिकार अनुच्छेद 16(4) से मिलता है। इसमें पर्याप्त प्रतिनिधित्व के आभाव में कुछ वर्गों के लिये आरक्षण का प्रावधान है। हालाँकि, संविधान में निजी क्षेत्र में रोज़गार में आरक्षण को अनिवार्य बनाने का कोई स्पष्ट प्रावधान नहीं है।

आर्थिकमुद्दे

  • उद्योग संगठनों ने हरियाणा में पर्याप्त संख्या में योग्य घरेलू कार्यबल की कमी के कारण इस अधिनियम के कार्यान्वयन को ‘अव्यवहारिक’ बताया है।हरियाणा में प्रमुख उद्योगों में 50,000 रुपये से कम वेतन वाले कार्य बल की संख्या लगभग 60 से 70% है।
  • इसके अतिरक्त, इस कदम से महामारी पश्चात आर्थिक रिकवरी में समस्या, अनुपालन बोझ मेंवृद्धि और इंस्पेक्टर राज का सूत्रपात होगा। साथ ही, इससे निवेश भी हतोत्साहित होगा।
  • अकुशल और अर्ध-कुशल स्थानीय श्रमिकों की त्वरित उपलब्धता के अभाव में इसके कार्यान्वयन में लचीलेपन की आवश्यकता है। अकुशल कर्मचारियों को सामान वेतन मिलने से कर्मचारियों के बीच असंतोष की भावना भी उत्पन्न होगी। इससे उत्पादकता और प्रतिस्पर्धा प्रभावित हो सकती है।
  • इसके अतिरिक्त, यह कानून एम.एस.एम.ई. कंपनियों को नुकसान पहुँचाने के साथ-साथ उनकी विस्तार योजनाओं कोभी प्रभावित करेगा, जिससे रोज़गार सृजन के बजाय रोज़गार में कमी आएगी। अत: देश में एकीकृत और गतिशील श्रमिक बाज़ार की आवश्यकता है।
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