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ऊर्जा गरीबी : समस्या और समाधान 

(मुख्य परीक्षा, सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र-3 : बुनियादी ढाँचा- ऊर्जा)

संदर्भ

हाल ही में, जर्मनी में सपन्न ‘जी-7’ समूह की बैठक में भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने चिली, इंडोनेशिया तथा रवांडा सहित सभी ऊर्जा गरीब (Energy-Poor) देशों की समस्या को वैश्विक रूप से प्रदर्शित करते हुए इनके लिये ऊर्जा की सामान उपलब्धता का आह्वान किया है।

ऊर्जा गरीबी (Energy Poverty)

  • ऊर्जा गरीबी का अभिप्राय उस स्थिति से हैं जिसमें कोई व्यक्ति अथवा समुदाय आधुनिक ऊर्जा संसाधनों की पहुँच से दूर निवास करता हैं। 
  • इस विचारधारा का उदय ‘ब्रेंडा बोर्डमैन’ की पुस्तक ‘फ्यूल पावर्टी : फ्रॉम कोल्ड होम्स टू अफोर्डेबल वार्मथ’ (1991) से हुआ था।

संख्यात्मक अनुमान

  • विशेषज्ञों के अनुमान, लैटिन अमेरिका, एशिया और अफ्रीका में ऊर्जा गरीबी की समस्या से ग्रसित लोगों की संख्या लगभग तीन अरब से अधिक है।
  • भारत में एल.पी.जी. (LPG) और एल.ई.डी. (LED) क्रांति के बावजूद केवल दक्षिण एशिया में ही एक अरब से अधिक लोग ऊर्जा की अत्यंत सीमित पहुँच का सामना कर रहे हैं। 

वैश्विक स्थिति

  • प्रधानमंत्री के अनुसार, ऊर्जा प्रयोग पर किसी का विशेषाधिकार नहीं होना चाहिये, बल्कि सभी लोगों का इस पर समान अधिकार होना चाहिये।
  • वर्तमान में ऊर्जा गरीबी एक वैश्विक समस्या के रूप में उभरी है। इससे जूझने वाले देशों की सूची में अधिकांश देश दक्षिणी विश्व (South Global) के हैं। 
  • वित्त वर्ष 2021-2022 में भारत का तेल आयात बिल बढ़कर 119 अरब डॉलर हो गया है। बढ़ती मांग और यूक्रेन संकट के कारण तेल की कीमतों में अत्यधिक वृद्धि हुई है।
    • यूक्रेन संकट के कारण जी-7 देशों ने रूस के तेल बाज़ार को अत्यधिक प्रतिबंधित कर दिया है, जिसके कारण तेल की कीमतों में अत्यधिक वृद्धि तथा ऊर्जा संबधी समस्याओं की संभावना है।
    • इससे कई देशों में श्रीलंका जैसा ऊर्जा संकट पैदा हो सकता है।
  • साथ ही, लंबे समय तक प्रतिबंध से रूस के नेतृत्व में एक समानांतर अंतर्राष्ट्रीय तेल बाजार का भी उद्भव हो सकता है। 
  • वस्तुत: प्रधानमंत्री ने ‘वैश्विक ऊर्जा शासन’ (Global Energy Governance) से जुड़े मुद्दे को भी उठाया। उनके अनुसार, एशिया ऊर्जा के प्रमुख केंद्र के रूप में उभर चुका है किंतु आज भी संपूर्ण वैश्विक ऊर्जा प्रणाली को अटलांटिक देशों द्वारा ही नियंत्रित किया जा रहा है। 
    • ये सभी देश उन्हीं वैश्विक कार्यक्रमों को बढ़ावा देते हैं जो इनकी अर्थव्यवस्था, आर्थिक और भू-राजनीतिक हितों के लिये लाभदायक होते हैं।
    • अमेरिकी डॉलर अभी भी वैश्विक ऊर्जा परिदृश्य को नियंत्रित करता है।
    • यहाँ तक कि अंतर्राष्ट्रीय ऊर्जा एजेंसी (IEA) भी धनी एवं विकसित देशों के हितों की रक्षा करता है। 

जी-7 (G-7)

  • जी-7 विश्व की सात प्रमुख अर्थव्यवस्थाओं का एक अंतर-सरकारी संगठन है, जिसकी स्थापना वर्ष 1975 में हुई थी ।
  • वर्तमान में ब्रिटेन, कनाडा, फ्रांस, जर्मनी, इटली, अमेरिका, जापान और यूरोपीय संघ इसके सदस्य हैं।
  • जर्मनी में संपन्न इसकी 48वीं बैठक में भारत सहित अर्जेंटीना, इंडोनेशिया, सेनेगल और दक्षिण अफ्रीका को आमंत्रित किया गया था।

आवश्यक सुझाव

  • जी-20, ब्रिक्स, सार्क और आसियान जैसे महत्त्वपूर्ण मंचों को ऊर्जा पहुँच, गरीबी एवं सुरक्षा पर अधिक ध्यान देने की आवश्यकता है।
  • वस्तुत: ऊर्जा संक्रमण, ऊर्जा पहुंच व न्याय और ऊर्जा तथा जलवायु के लिये पूर्णत: समर्पित एक वैश्विक अंतर-सरकारी संगठन की जरूरत है।
  • हालाँकि, ऐसी किसी भी पहल की सफलता के लिये गंभीर मतभेदों और परस्पर विरोधी विचारों के बीच भारत तथा चीन को एकीकृत दृष्टिकोण अपनाने की आवश्यकता है। 
    • भारत और चीन में तकरीबन तीन अरब ऊर्जा उपभोक्ता निवास करते हैं
    • भावी पहल के लिये इंडोनेशिया, तुर्की एवं दक्षिण अफ्रीका जैसे देशों को भी शामिल किया जा सकता है।
  • अन्वेषण और उत्पादन गतिविधियों में विश्व स्तर पर भारी निवेश के कारण भी तेल की कीमतें अधिक हैं, इसके लिये अन्य विकल्प तलाशने की आवश्यकता है।
  • भारत सरकार ने अपनी ऊर्जा रणनीति में सौर ऊर्जा तथा ई-वाहन को शामिल किया है, परिणामस्वरूप भारत नवीकरणीय ऊर्जा क्षेत्र में निरंतर प्रगति कर रहा है।
    • अन्य देशों को भी इस दिशा में प्रयास करने की आवश्यकता है। 
  • वैश्विक तेल उत्पादन में रूस की हिस्सेदारी 12.6% है। प्रतिबंध को सख्त करने से कच्चे तेल की कीमतों में और भी वृद्धि हो सकती है। 
    • इससे ऊर्जा घाटे वाले अधिकांश विकासशील देशों को कठिनाई का सामना करना पड़ेगा।
  • परिणामस्वरूप आर्थिक वृद्धि में कमी तथा मुद्रास्फीति, बेरोजगारी और सामाजिक आशांति में वृद्धि हो सकती है।  

अंतर्राष्ट्रीय ऊर्जा एजेंसी

  • अंतर्राष्ट्रीय ऊर्जा एजेंसी की स्थापना वर्ष 1973 के अरब तेल प्रतिबंध के परिणामस्वरुप आर्थिक सहयोग एवं विकास संगठन (OECD) के सदस्यों द्वारा नवम्बर 1974 में की गई थी।
  • यह पेरिस स्थित एक अंतर-सरकारी स्वायत्त संगठन है। केवल आर्थिक सहयोग एवं विकास संगठन के सदस्य ही इसके सदस्य हो सकते हैं।  
  • इसके सदस्य देशों की संख्या 31 है तथा वर्ष 2018 में मेक्सिको इसका 31वां सदस्य राष्ट्र बना। चिली, आइसलैंड, इजराइल और स्लोवेनिया को छोड़कर आर्थिक सहयोग एवं विकास संगठन के सभी देश इसके सदस्य हैं।
  • विदित है कि वर्ष 2017 में भारत इसका सहयोगी सदस्य बना।

निष्कर्ष

क्षेत्रीय संगठनों को नई पहल करने की आवश्यकता है जिससे विकासशील देशों के हितों को प्राथमिकता देकर ऊर्जा गरीबी की समस्या से निपटा जा सके।

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