(प्रारंभिक परीक्षा: सामान्य विज्ञान) (मुख्य परीक्षा, सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र- 3: विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी में भारतीयों की उपलब्धियाँ; देशज रूप से प्रौद्योगिकी का विकास और नई प्रौद्योगिकी का विकास) |
संदर्भ
भारतीय विज्ञान संस्थान (IISc), बेंगलुरु ने भारत (BHARAT) नामक एक अध्ययन शुरू किया है जो भारत में उम्र बढ़ने के जैविक, आणविक एवं पर्यावरणीय या जैव संकेतकों (Biomarkers) को समझने का प्रयास करता है।
उम्र बढ़ने की जटिलता
- उम्र बढ़ना एक ऐसी प्राकृतिक प्रक्रिया है किंतु यह सभी में एक समान नहीं होती है। यह व्यक्तियों, समुदायों एवं विभिन्न आबादी में अलग-अलग गति व रूपों में प्रकट होती है।
- भारत जैसे देश में जहाँ अत्यधिक सामाजिक, आर्थिक एवं पर्यावरणीय विविधता है, वहाँ स्वस्थ आयु वृद्धि (Healthy Ageing) को समझना और इसके लिए उपयुक्त नीतियाँ बनाना एक जटिल किंतु महत्वपूर्ण कार्य है।
- यह केवल कालानुक्रमिक आयु (Chronological Age) तक सीमित न होकर आणविक एवं कोशिकीय प्रक्रियाओं, पर्यावरण, जीवनशैली व सामाजिक-आर्थिक कारकों का एक जटिल मिश्रण है। किसी व्यक्ति की कालानुक्रमिक आयु उसके शरीर की वास्तविक जैविक आयु (Biological Age) को सटीक रूप से प्रतिबिंबित नहीं करती है।
- उदाहरण के लिए, एक व्यक्ति की यकृत (Liver) की जैविक आयु उसकी कालानुक्रमिक आयु से अधिक हो सकती है जो स्वास्थ्य संबंधी जोखिमों को इंगित करता है।
आयु वृद्धि एवं जैविक संकेतक (Biomarkers) की खोज
- वर्ष 1935 में वैज्ञानिकों ने पहली बार यह प्रमाणित किया कि उम्र बढ़ने की प्रक्रिया को बदला जा सकता है। तब से शोधकर्ता उन जैविक संकेतकों (Biomarkers) की खोज में जुटे हैं जो यह बता सकें कि शरीर कितना ‘वृद्ध’ है और आहार, व्यायाम या अन्य कारकों के प्रति उसकी प्रतिक्रिया कैसी होगी।
- ये संकेतक न केवल बीमारियों की भविष्यवाणी करने में मदद करते हैं बल्कि स्वस्थ जीवन को बढ़ावा देने के लिए हस्तक्षेप की रणनीतियाँ भी सुझाते हैं।
BHARAT अध्ययन: भारत-विशिष्ट डाटाबेस की आवश्यकता
- पूर्ण नाम : स्वस्थ आयु वृद्धि, लचीलापन, प्रतिकूलता एवं संक्रमण के जैवसंकेतक (Biomarkers of Healthy Aging, Resilience, Adversity, and Transitions)
- परिचय : यह ‘Longevity India Program’ का हिस्सा है जो भारतीय जनसंख्या में उम्र बढ़ने की प्रक्रिया को समझने के लिए किया जा रहा है।
- अध्ययन का उद्देश्य : BHARAT अध्ययन का उद्देश्य भारत की आबादी में स्वस्थ आयु वृद्धि को प्रभावित करने वाले जैविक, आणविक एवं पर्यावरणीय कारकों को मैप करना है। इसमें शामिल हैं-
- बीमारी की पूर्व चेतावनी देना
- शुरुआती स्तर पर हस्तक्षेप को बढ़ावा देना
- जैविक उम्र का सटीक आकलन कर स्वास्थ्य सुधार की रणनीति बनाना
- शामिल संकेतक : BHARAT अध्ययन भारतीय संदर्भ में एक Bharat Baseline यानी मानक डाटाबेस तैयार कर रहा है, जिसमें निम्नलिखित संकेतक शामिल होंगे:
- जीनोमिक संकेतक (रोग संवेदनशीलता से जुड़े उत्परिवर्तन)
- प्रोटियोमिक व मेटाबोलिक संकेतक (जैविक प्रक्रियाओं और चयापचय स्वास्थ्य के सूचक)
- पर्यावरणीय व जीवनशैली संबंधी कारक
- AI एवं मशीन लर्निंग की भूमिका : इस अध्ययन में कृत्रिम बुद्धिमत्ता (AI) और मशीन लर्निंग का प्रयोग कर बड़ी मात्रा में बहुस्तरीय आंकड़ों का विश्लेषण किया जाएगा ताकि:
- बीमारी के शुरुआती लक्षणों की पहचान की जा सके
- स्वास्थ्य सुधार के लिए प्रभावी रणनीति निर्धारित की जा सके
- उपचार के महंगे परीक्षणों से पहले उनके संभावित परिणामों का आकलन किया जा सके
- महत्त्व : यह डाटाबेस उम्र से संबंधित परिवर्तनों के शुरुआती संकेतों की पहचान करने में मदद करेगा, जिससे बेहतर भविष्यवाणी, हस्तक्षेप एवं रोग की शुरुआत को टालने में सहायता मिलेगी।
भारत के लिए अलग मानकों की आवश्यकता
- विगत कुछ दशकों में भारत में औसत आयु (Life Expectancy) में उल्लेखनीय वृद्धि हुई है। इस सदी के पहले दो दशकों में यह 4.1 वर्ष बढ़कर 67.3 वर्ष हो गई। हालांकि, लंबा जीवन हमेशा स्वस्थ जीवन की गारंटी नहीं होता है।
- एक अनुमान के अनुसार वर्ष 2050 तक भारत में पार्किंसन रोग के मामलों में 168% और डिमेंशिया में 200% की वृद्धि हो सकती है।
- अभी तक अधिकांश चिकित्सा अनुसंधान पश्चिमी देशों के जनसांख्यिकीय समूहों पर आधारित है, इसलिए पश्चिमी मानकों का भारतीय जनसंख्या पर सीधा प्रयोग प्राय: भ्रामक होता है।
- उदाहरण के लिए, पश्चिमी देशों के कोलेस्ट्रॉल, विटामिन D एवं B12 के मानक भारतीयों पर लागू करने से अनेक स्वस्थ भारतीय ‘अस्वस्थ’ घोषित हो सकते हैं।
- इसके अलावा C-reactive Protein (CRP) जैसे सूजन संबंधी संकेतक भारत में स्वाभाविक रूप से अधिक पाए जाते हैं जो बचपन की बीमारियों, पर्यावरणीय प्रदूषण या कुपोषण के कारण होते हैं। ऐसे में पश्चिमी मानकों का प्रयोग जोखिमपूर्ण हो सकता है।
निहितार्थ एवं आगे की राह
- BHARAT अध्ययन भारत में स्वास्थ्य नीतियों एवं नैदानिक प्रथाओं को बदलने की क्षमता रखता है। भारत-विशिष्ट जैविक संकेतकों व बेसलाइन डाटा की स्थापना से न केवल गलत निदान (Misdiagnosis) की संभावना कम होगी, बल्कि यह उपचारों को भी अधिक प्रभावी और व्यक्तिगत बनाएगा।
- यह अध्ययन स्वास्थ्य असमानताओं को कम करने और वैश्विक दक्षिण की आबादी के लिए अनुकूलित चिकित्सा समाधान प्रदान करने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है यह न केवल वैज्ञानिक अनुसंधान के लिए, बल्कि नीति-निर्माण एवं सार्वजनिक स्वास्थ्य हस्तक्षेपों के लिए भी महत्वपूर्ण है।
- जटिल एवं बहुआयामी स्वास्थ्य चुनौतियों वाले भारत जैसे विविध देश में इस तरह के प्रयास भविष्य में एक स्वस्थ एवं अधिक समावेशी समाज की नींव रख सकते हैं।