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इज़राइल-फिलिस्तीन विवाद की भौगोलिक एवं ऐतिहासिक पृष्ठभूमि

प्रारंभिक परीक्षा- संयुक्त राष्ट्र का प्रस्ताव 181, बाल्फोर घोषणा, कैंप डेविड समझौता, ओस्लो शांति समझौता
मुख्य परीक्षा- सामान्य अध्ययन, पेपर-2

संदर्भ-

  • 29 नवंबर, 1947 को संयुक्त राष्ट्र ने प्रस्ताव 181 (जिसे विभाजन प्रस्ताव के रूप में भी जाना जाता है) को पास किया, जिसके तहत ब्रिटिश शासन के अधीन फिलिस्तीन को यहूदी और अरब राज्यों में विभाजित करने का फैसला किया गया। प्रस्ताव के तहत, यरूशलेम को संयुक्त राष्ट्र के अंतरराष्ट्रीय नियंत्रण में रखने का फैसला किया गया।

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भूगोल-

  • इजरायल अपेक्षाकृत एक छोटा भू-भाग है। इसके उत्तर में लेबनान, दक्षिण में मिस्र, पूर्वी भाग में जॉर्डन और सीरिया हैं, जबकि इजरायल के पश्चिमी भाग में ‘भूमध्य सागर’ स्थित है। 
  • इजरायल अपने चारों ओर से जिन देशों से घिरा हुआ है, इन्हें ‘अरब देशों’ के नाम से जाना जाता है। 
  • ये सभी अरब देश इजरायल के अस्तित्व को समाप्त करके सिर्फ फिलिस्तीन के अस्तित्व को ही बनाए रखना चाहते हैं। 

इतिहास-

  • 19 वीं सदी के अंत तथा 20 वीं सदी के आरंभ में फिलिस्तीन में यहूदियों के आप्रवासन के बाद यहूदी आगंतुकों और अरब आबादी के बीच तनाव उत्पन्न होने लगा।
  • वास्तव में, 1897 ईस्वी में फिलिस्तीन के क्षेत्र में यहूदियों का उत्पीड़न हो रहा था। यहूदियों ने अपने इस उत्पीड़न से बचने के लिए एक आंदोलन की शुरुआत की, जिसे ‘जायोनी आंदोलन’ के नाम से जाना जाता है।
  • जायोनी आंदोलन में यहूदियों को फिलिस्तीनी लोगों के विरुद्ध सफलता मिली और उन्होंने उस क्षेत्र में एक इजरायली राज्य की स्थापना की। 
  • इस संदर्भ में, उसी दौरान एक ‘विश्व जायोनी संगठन’ का गठन भी किया गया था। इस संगठन का उद्देश्य यहूदियों को सुरक्षा प्रदान करना तथा उनके हितों का संरक्षण करना था।
  • प्रथम विश्व युद्ध के दौरान वर्ष 1917 में ब्रिटिश सरकार ने ‘बाल्फोर घोषणा’ (Balfour Declaration) के तहत फिलिस्तीन में ‘यहूदी लोगों के लिये राष्ट्रीय गृह’ (national home for the Jewish people) की स्थापना के लिये समर्थन व्यक्त किया।

अरब-इजरायल पहला युद्ध (1948-49)-

  • 29 नवंबर, 1947 को संयुक्त राष्ट्र ने प्रस्ताव 181 (जिसे विभाजन प्रस्ताव के रूप में भी जाना जाता है) को पास किया, जिसके तहत ब्रिटिश शासन के अधीन फिलिस्तीन को यहूदी और अरब राज्यों में विभाजित करने का फैसला किया गया। प्रस्ताव के तहत, यरूशलेम को संयुक्त राष्ट्र के अंतरराष्ट्रीय नियंत्रण में रखने का फैसला किया गया।
    •  इस योजना को यहूदी नेताओं ने तो स्वीकार कर लिया था लेकिन अरब नेताओं ने इसे अस्वीकार कर दिया, जिससे हिंसा भड़क उठी।
    • वर्ष 1948 में इजरायल ने अपनी स्वतंत्रता की घोषणा की, जिससे पड़ोसी अरब राज्यों के साथ उसका युद्ध शुरू हो गया। इस संघर्ष के परिणामस्वरूप हज़ारों फिलिस्तीनियों का विस्थापन हुआ, जिसने भविष्य के तनाव की नींव रखी।
  • लेकिन अरब जो फिलिस्तीन में रह रहे थे उन्होंने इजरायल के गठन का विरोध किया। 
  • फिलिस्तीन में रह रहे अरब निवासी को पड़ोसी अरब देशों मिस्त्र, जॉर्डन और सीरिया का समर्थन मिला। 
  • इस संदर्भ में अरब देशो ने इजरायल को नष्ट करने की कोशिश की लेकिन वे न केवल विफल हुए बल्कि इजरायल ने कई फिलिस्तीनी इलाकों पर कब्ज़ा कर लिया, जिसके कारण फिलिस्तीन राज्य का गठन नहीं हो पाया। 

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फिलिस्तीनी मुक्ति संगठन’ (PLO) का उदय-

  • 1964 में काहिरा (मिश्र) में एक अरब शिखर बैठक हुआ, जिसमें फिलिस्तीनी मुक्ति संगठन (पीएलओ) का गठन हुआ । 
  • यह कई फिलिस्तीनी समूहों का एक राजनीतिक संगठन था. इसने बाद में सभी फिलिस्तीनी लोगों का एकमात्र प्रतिनिधि होने का दावा किया। इसके पहले नेता अहमद शुकैरी थे। 
  • 1968 के चार्टर (द फ़िलिस्तीन राष्ट्रीय चार्टर या वाचा) में पीएलओ ने अपने बुनियादी सिद्धांतों और लक्ष्यों को रेखांकित किया, जिनमें से सबसे महत्वपूर्ण थे- एक स्वतंत्र राज्य का अधिकार, फ़िलिस्तीन की पूर्ण मुक्ति और इज़रायल राज्य का विनाश ।
  • एक फिलिस्तीन राष्ट्रीय परिषद (पीएनसी) की स्थापना पीएलओ के सर्वोच्च निकाय या संसद के रूप में की गई थी और पीएलओ गतिविधियों के प्रबंधन के लिए एक कार्यकारी समिति का गठन किया गया था। 
  • प्रारंभ में पीएनसी में जॉर्डन, वेस्ट बैंक और फारस की खाड़ी के राज्यों सहित विभिन्न क्षेत्रों के नागरिक प्रतिनिधि शामिल थे , लेकिन 1968 में गुरिल्ला संगठनों के प्रतिनिधियों को शामिल किया गया।
  • भारत सरकार ने 1974 ईस्वी में ‘फिलीस्तीनी मुक्ति संगठन’ को मान्यता प्रदान की। उस समय फिलिस्तीनी मुक्ति संगठन को औपचारिक रूप से मान्यता देने वाला ‘भारत’ विश्व का पहला गैर अरब देश था। 
  • इसके अलावा, भारत ने 1988 ईस्वी में फिलिस्तीन को भी औपचारिक रूप से एक देश के रूप में मान्यता प्रदान कर दी ।

फतह और अन्य गुरिल्ला संगठन-

  • पीएलओ के गठन से पहले ही एक गुप्त संगठन ‘फिलिस्तीन नेशनल लिबरेशन मूवमेंट’ (सारकत अल-ताहिर अल-वानी अल-फिलासिनी) का गठन हो चुका था, जिसे फतह के नाम से भी जाना जाता है । 
  • फतह वेस्ट बैंक नामक क्षेत्र में अपना प्रभाव स्थापित किए हुए है। । 
  • हमास के विपरीत, यह संगठन संयुक्त राष्ट्र संगठन तथा ‘ओस्लो शांति समझौते’ द्वारा सुझाए गए ‘दो राज्यों के समाधान’ (Two State Solution) को मानने के लिए भी तत्पर है।
  • फतह के अलावा, 1960 के दशक के अंत में कई अन्य संगठन उभरे। इसमें सबसे महत्वपूर्ण थे-पॉपुलर फ्रंट फॉर द लिबरेशन ऑफ फिलिस्तीन (पीएफएलपी), द डेमोक्रेटिक फ्रंट फॉर द लिबरेशन ऑफ फिलिस्तीन (DFLP),फ़िलिस्तीन की मुक्ति के लिए लोकप्रिय मोर्चा-जनरल कमांड (पीएफएलपी-जीसी, पीएफएलपी से एक अलग समूह) और अल-साइकाह (सीरिया द्वारा समर्थित)। 
  • ये समूह विचारधारा और रणनीति में मतभेदों के बावजूद पीएलओ के अंदर सेना में शामिल हो गए। 
  • 1969 में फ़तह के नेता यासर अराफ़ात पीएलओ की कार्यकारी समिति के अध्यक्ष बने और इस प्रकार फ़िलिस्तीनी राष्ट्रीय आंदोलन के प्रमुख बने।
  • रणनीति और विचारधारा में मतभेदों के बावजूद, गुरिल्ला संगठन किसी भी ऐसे राजनीतिक समझौते को अस्वीकार करने के लिए एकजुट थे, जिसमें फिलिस्तीन की पूर्ण मुक्ति और शरणार्थियों की उनकी मातृभूमि में वापसी शामिल नहीं थी।  
  • उन्होंने एक गैर-सांप्रदायिक राज्य स्थापित करने की भी मांग की जिसमें यहूदी, ईसाई और मुस्लिम समानता से रह सकें। 
  • अधिकांश इजरायलियों ने इस लक्ष्य की ईमानदारी या व्यावहारिकता पर संदेह किया और पीएलओ को एक आतंकवादी संगठन के रूप में देखा जो न केवल ज़ायोनी राज्य बल्कि इजरायली यहूदियों को नष्ट करने के लिए प्रतिबद्ध था।

1967 का अरब-इजरायल युद्ध -

  • 1967 के अरब-इजरायल युद्ध (जिसे छह-दिवसीय युद्ध के रूप में भी जाना जाता है) में इज़रायल ने मिस्र, सीरिया और जॉर्डन की संयुक्त सेना को पराजित किया और पूर्वी येरुशलम , वेस्ट बैंक, गोलन हाइट्स, मिस्र के गाजा पट्टी, सिनाई प्रायद्वीप  सहित क्षेत्र के बड़े हिस्से पर भी कब्ज़ा कर लिया। 
  • इज़राइल की जीत ने फिलिस्तीनियों के एक और पलायन को जन्म दिया , जिसमें 250,000 से अधिक लोग जॉर्डन नदी के पूर्वी तट की ओर भाग गए । 
  •  इजरायलियों ने कब्जे वाले क्षेत्रों  में, विशेष रूप से वेस्ट बैंक, को पवित्र यहूदी भूमि के रूप में बसाने की वकालत की। 
  • युद्ध के बाद के दशक में कई हज़ार इज़रायली यहूदी इन क्षेत्रों में बस गए।
  • हालाँकि आगे चलकर, 1979 ईस्वी में इजरायल और मिस्र के बीच एक संधि हुई थी। इस संधि के तहत इजरायल ने 1982 ईस्वी में मिस्र को सिनाई प्रायद्वीप वापस कर दिया था। 
  • इसके बाद मिस्र ने इजरायल को एक देश के रूप में आधिकारिक तौर पर मान्यता प्रदान कर दी। उस समय इजरायल को आधिकारिक तौर पर मान्यता प्रदान करने वाला ‘मिस्र’ पहला अरब देश बना था।

 पीएलओ का एक क्रांतिकारी ताकत के रूप में उदय-

  • 1970 और 80 के दशक में फतह के प्रभुत्व वाले पीएलओ ने एक विकासशील राज्य के रूप में काम किया और इज़रायल पर लगातार सैन्य हमले किए। 
  • हालाँकि, 1967 के बाद फतह ने हिंसक गतिविधियों की एक नई लहर शुरू की और पीएलओ की छत्रछाया में फिलिस्तीनी गुरिल्ला समूह मध्य पूर्व में प्रमुख महत्व के तत्व के रूप में उभरे। 
  • इज़रायली सेनाओं पर गुरिल्ला हमले और इजरायली नागरिकों पर आतंकी हमले  इजरायल के खिलाफ संघर्ष में एक प्रमुख तत्व बन गए।

आतंकवादी संगठन हमास का उदय-

  • इजरायल और फिलिस्तीन के मध्य चलने वाले इस लंबे संघर्ष के बीच फिलिस्तीन के लोगों ने आतंकवाद के माध्यम से अपने उद्देश्य को पूरा करने का विचार बनाया और उन्होंने 1987 ईस्वी में ‘हमास’ नामक एक आतंकवादी संगठन का गठन किया।
  •  इस आतंकवादी संगठन का उद्देश्य जिहाद का सहारा लेकर स्वतंत्र फिलिस्तीन की स्थापना करने के लिए एक भू-भाग पर कब्जा करना और आतंकवाद के माध्यम से इजरायल को कमजोर करना है।
  • यह एक कट्टर सुन्नी मुस्लिम संगठन है। इस संगठन को सीरिया और ईरान द्वारा समर्थन प्रदान किया जा रहा है।
  •  वर्तमान में इस संगठन ने गाजा पट्टी पर अपना कब्जा स्थापित कर रखा है। गाजा पट्टी फिलिस्तीनी बहुल क्षेत्र है और यह भूमध्य सागर के तट पर स्थित है।
  • संयुक्त राष्ट्र संगठन तथा ‘ओस्लो शांति समझौते’ द्वारा सुझाए गए ‘दो राज्यों के समाधान’ (Two State Solution) को मानने के लिए तैयार नहीं है। 
  • यह संगठन इस क्षेत्र में इजरायल के सभी दावों को पूर्ण रूप से खारिज करता है।

 पीएलओ का अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पहचान-

  • पीएलओ ने 1970 के दशक के दौरान अपने अंतरराष्ट्रीय संबंधों में महत्वपूर्ण लाभ हासिल किया । दशक के अंत तक संगठन के 80 से अधिक देशों में प्रतिनिधि थे। 
  • 22 सितंबर, 1974 को, संयुक्त राष्ट्र महासभा ने इजरायल की कड़ी आपत्तियों को दरकिनार करते हुए पहली बार "फिलिस्तीन प्रश्न" को मध्य पूर्व के सामान्य प्रश्न के हिस्से के बजाय बहस के लिए एक अलग विषय के रूप में अपने एजेंडे में शामिल किया । 
  • 13 नवंबर,1974 को असेंबली ने फ़िलिस्तीनी लोगों के राष्ट्रीय अधिकारों के लिए अराफ़ात की दलील सुनी।
  • 26-28 अक्टूबर, 1974 को रबात (मोरक्को) में आयोजित एक अरब शिखर सम्मेलन में कहा गया कि किसी भी "मुक्त" फ़िलिस्तीनी क्षेत्र को " पीएलओ के नेतृत्व में उसके वैध फ़िलिस्तीनी मालिकों को वापस कर दिया जाना चाहिए।" 

बातचीत, हिंसा और आरंभिक स्व-शासन-

  • 1970 के दशक का उत्तरार्ध अरब-इजरायल विवादों पर अधिक सक्रिय बातचीत का काल था। 
  • अरब राज्यों ने 1967 के युद्ध के बाद से कब्जे वाले क्षेत्रों से इजरायल की वापसी और वेस्ट बैंक तथा गाजा पट्टी में फिलिस्तीनी राज्य की स्थापना के लिए एक समग्र समझौते में फिलिस्तीनी भागीदारी का समर्थन किया । 
  • फ़िलिस्तीनियों के प्रति अमेरिका के रुख में नरमी के संकेत दिखे। 
  • मार्च,1977 में अमेरिकी राष्ट्रपति जिमी कार्टर ने फ़िलिस्तीनी मातृभूमि की आवश्यकता के बारे में बात की और कहा कि फ़िलिस्तीनियों के लिए शांति प्रक्रिया में भाग लेना आवश्यक है।

कैंप डेविड समझौता-

  • नवंबर,1977 में मिस्र के राष्ट्रपति अनवर सादात ने शांति वार्ता शुरू की, जिसके परिणामस्वरूप सितंबर,1978 में कैंप डेविड का समझौता हुआ और 26 मार्च, 1979 को मिस्र-इजरायल शांति संधि पर हस्ताक्षर किए गए। 
  • समझौते के तहत  वेस्ट बैंक और गाजा पट्टी में एक स्वशासी प्राधिकरण की स्थापना की गई। 
  • शांति वार्ता के दौरान सोवियत संघ ने पीएलओ को फिलिस्तीनियों के एकमात्र वैध प्रतिनिधि के रूप में मान्यता दी और 1981 में औपचारिक राजनयिक मान्यता बढ़ा दी । 
  • पश्चिमी यूरोप के देशों ने जून,1980 में शांति वार्ता में पीएलओ की भागीदारी के लिए अपने समर्थन की घोषणा की। 

इंतिफादा (विद्रोह)-

  • इजरायल और फिलिस्तीन संघर्ष के दौरान अब तक कुल दो इंतिफादा हुए हैं। 
  • इंतिफादा का अर्थ है- विद्रोह। वस्तुतः, फिलिस्तीन द्वारा किए जाने वाले विद्रोह को ‘इंतिफादा’ का नाम दिया गया है। 
  • इस दौरान पहला इंतिफादा 1987 ईस्वी से लेकर 1993 ईस्वी तक हुआ था, जबकि दूसरा इंतिफादा 2000 ईस्वी से लेकर 2005 ईस्वी तक हुआ।

पहला इंतिफादा (1987 ईस्वी से 1993 ईस्वी)- 

  • पहला इंतिफादा फिलिस्तीन के विद्रोहियों ने इजरायल के विरुद्ध 1987 ईस्वी में शुरू किया था। 
  • फिलिस्तीन के विद्रोहियों ने गाजा पट्टी क्षेत्र में उपस्थित यहूदी बस्तियों पर हमला किया और उन्हें वहाँ से बाहर भगाना शुरू किया। इसके कारण विभिन्न यहूदियों को अपने घरों से विस्थापित होना पड़ा था।
  • फिलिस्तीन के लोगों द्वारा गाजा पट्टी के क्षेत्र में इजरायल के लोगों के विरुद्ध किए गए इस हिंसक हमले की समाप्ति 1993 ईस्वी में अमेरिका और रूस की मध्यस्थता से इजरायल और फिलिस्तीन के बीच हुए ‘ओस्लो शांति समझौते’ से हुई।

ओस्लो शांति समझौता (1993 ईस्वी) -

  • 1993 ईस्वी में हुए इस ‘ओस्लो शांति समझौते’ के तहत विभिन्न प्रावधान निर्धारित किये गए थे। इनके अंतर्गत यह तय किया गया था कि इस क्षेत्र को दो हिस्सों में विभाजित किया जाएगा। उनमें से एक हिस्सा फिलिस्तीन को और दूसरा हिस्सा इजरायल को प्रदान किया जाएगा। 
  • इतिहास में ओस्लो शांति समझौते का यह प्रावधान ‘दो राज्यों के समाधान’ (Two State Solution) के नाम से प्रसिद्ध है।
  • इस समझौते के माध्यम से यह भी तय किया गया था कि वेस्ट बैंक और गाजा पट्टी क्षेत्रों में फिलिस्तीन और इजरायल के मध्य संघर्ष विराम लागू होगा तथा फिलिस्तीन को वेस्ट बैंक और गाजा पट्टी क्षेत्रों के कुछ स्थानों पर सीमित रूप में स्वायत्त शासन करने का अधिकार प्रदान करना होगा। 
  • इस उद्देश्य की पूर्ति के लिए इजरायल वेस्ट बैंक और गाजा पट्टी, दोनों क्षेत्रों में से कुछ स्थानों पर अपने दावे छोड़ देगा, लेकिन इजरायल ने इन दोनों क्षेत्रों में से किसी भी स्थान से अपने दावे नहीं छोड़े थे।
  • इसी ओस्लो शांति समझौते के दौरान फिलिस्तीन ने इजरायल को एक देश के रूप में आधिकारिक मान्यता भी प्रदान कर दी थी।

दूसरा इंतिफादा (2000 ईस्वी से 2005 ईस्वी) -

  • फिलिस्तीन की ओर से लड़ने वाला आतंकवादी संगठन ‘हमास’ किसी भी प्रकार के संघर्ष विराम को स्वीकार नहीं करना चाहता था। 
  • ओस्लो शांति समझौते के बाद भी हमास का यही रुख था और उसने ‘दो राज्यों के समाधान के सिद्धांत’ को मानने से मना कर दिया था।
  • हमास के अड़ियल रवैया के कारण जब ओस्लो शांति समझौते के द्वारा सुझाए गए समाधान सफल नहीं हो सके, तो वर्ष 2000 में फिलिस्तीन के लोगों द्वारा दूसरा इंतिफादा किया गया। 
  • अपने इस हिंसक हमले के तहत फिलिस्तीन के लोगों ने इजरायल के लोगों को खदेड़ना शुरू कर दिया था।
  • ऐसी हिंसक स्थिति से निपटने के लिए इजरायल ने फिलिस्तीन के लोगों की बस्तियों और इजरायल के लोगों की बस्तियों के बीच एक ‘वेस्ट बैंक बैरियर’ का निर्माण करने की योजना बनाई। 
  • इसका उद्देश्य फिलिस्तीनी लोगों की और इजरायल के लोगों की बस्तियों को एक दूसरे से अलग करना था, ताकि भविष्य में फिलिस्तीन की ओर से होने वाले किसी भी हिंसक हमले से इजरायल के लोगों की रक्षा की जा सके।

बीते एक दशक में क्या हुआ-

  • इज़राइल और हमास के बीच बार-बार गंभीर झड़पों की स्थिति बनी है जिनमें ऑपरेशन कास्ट लीड (2008-2009), ऑपरेशन पिलर ऑफ डिफेंस (2012) और ऑपरेशन प्रोटेक्टिव एज (2014) शामिल हैं। इन संघर्षों के परिणामस्वरूप दोनों पक्षों को भारी क्षति उठानी पड़ी है।
  • फिलिस्तीनी प्राधिकरण (PA) ने 2011 में संयुक्त राष्ट्र में "फिलिस्तीन राज्य" के रूप में मान्यता के लिए आवेदन किया। ये मुख्य रूप से इजरायल के साथ संबंधों में गतिशीलता की कमी को उजागर करने का एक प्रयास था।
  • हालांकि, इसे जरूरी समर्थन नहीं मिला, लेकिन UNESCO ने "फिलिस्तीन राज्य" को एक सदस्य के रूप में स्वीकार किया।
  • नवंबर,2012 में संयुक्त राष्ट्र महासभा ने फिलिस्तीन को "गैर-सदस्य पर्यवेक्षक राज्य" का दर्जा दिया था। जिसके बाद फिलिस्तीन को महासभा की बहसों में भाग लेने की अनुमति मिली और संयुक्त राष्ट्र एजेंसियों में शामिल होने की उसकी संभावनाओं को बल मिला।
  • इसके बाद 2017 में हमास और फतह के बीच एक समझौते पर हस्ताक्षर हुए, जिसके तहत गाजा का प्रशासनिक नियंत्रण फतह प्रभुत्व वाले फिलिस्तीनी प्राधिकरण को सौंपना था, लेकिन निःशस्‍त्रीकरण पर विवादों की वजह से बात आगे नहीं बढ़ सकी।
  • 2022 में फतह और हमास सहित 14 अलग-अलग फिलिस्तीनी गुटों के प्रतिनिधियों ने अल्जीयर्स में एक नए सुलह समझौते पर हस्ताक्षर करने के लिए मुलाकात की, जिसमें 2023 के अंत तक राष्ट्रपति और संसदीय चुनाव कराने के प्रावधान शामिल थे।
  • 7 अक्टूबर 2023 गाजा पट्टी से हमास द्वारा इज़रायल पर हज़ारों रॉकेट दागे गए और उसके सैकड़ों उग्रवादी विभिन्न स्थानों पर सुरक्षा घेरे को तोड़ते हुए इज़रायल में घुस आए। 
  • उन्होंने सीमा के निकट बसे इज़रायली नागरिकों पर अंधाधुंध गोलियाँ बरसाईं और 100 से अधिक लोगों को बंधक बना लिया। 

प्रारंभिक परीक्षा के लिए प्रश्न-

प्रश्न- अल-अक्सा मस्जिद के बारे में निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिए।

  1. यह ईसाईयों, यहूदियों और मुसलमानों तीनों के लिए पवित्र है।
  2. 'डोम ऑफ द रॉक' को यहूदी धर्म में सबसे पवित्र स्थल का दर्जा दिया गया है। 
  3. पैगंबर मोहम्मद से जुड़े होने के कारण 'डोम ऑफ द रॉक' को मुसलमान भी पवित्र स्थल मानते हैं।

उपर्युक्त में से कितना/कितने कथन सही है/हैं?

(a) केवल एक

(b) केवल दो

(c) सभी तीनों 

(d) कोई नहीं

उत्तर- (c)

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