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सकल स्थिर पूंजी निर्माण और निजी क्षेत्र का निवेश

संदर्भ

  • सांख्यिकी और कार्यक्रम कार्यान्वयन मंत्रालय के द्वारा जारी आंकड़ो के अनुसार, वर्ष 2011-12 में सकल स्थिर पूंजी निर्माण में कुल निवेश 32.78 लाख करोड़ से बढ़कर 2022-23 में 54.35 लाख करोड़ हो गया है।
  • यद्यपि सकल स्थिर पूंजी निर्माण (GFCF) में सरकारी एवं निजी क्षेत्र के कुल निवेश में लगातार वृद्धि हुई है। फिर भी, मौजूदा कीमतों पर सकल घरेलू उत्पाद (GDP) के प्रतिशत के रूप में निजी सकल स्थिर पूंजी निर्माण में निजी निवेश की धीमी गति भारत के लिए चिंता का विषय है। 

भारत में सकल स्थिर पूंजी निर्माण में निजी निवेश की स्थिति

  • भारत में, स्वतंत्रता से लेकर आर्थिक उदारीकरण तक, निजी निवेश मोटे तौर पर सकल घरेलू उत्पाद के 10% से कम था। 
    • 1980 के दशक के अंत और 1990 के दशक की शुरुआत में आर्थिक सुधारों से निजी क्षेत्र के आत्मविश्वास को बल मिला और निजी निवेश में भी उल्लेखनीय वृद्धि हुई। 
  • निजी निवेश में वृद्धि 2007-08 के वैश्विक वित्तीय संकट तक जारी रही। यह 1980 के दशक में सकल घरेलू उत्पाद के लगभग 10% से बढ़कर 2007-08 में लगभग 27% हो गया। 
  • 2011-12 के बाद से, निजी निवेश में पुनः गिरावट शुरू हुई और 2020-21 में निचले स्तर जी.डी.पी. का 19.6% के पर पहुँच गया।
    • प्र्हलंकी 2019 में केंद्र सरकार ने निजी निवेश को प्रोत्साहित करने के लिए कॉर्पोरेट करों को 30% से घटाकर 22% कर दिया था।

क्या है सकल स्थिर पूंजी निर्माण 

  • जी.एफ.सी.एफ. किसी अर्थव्यवस्था में स्थिर पूंजी के आकार में वृद्धि को संदर्भित करता है। स्थिर पूंजी का तात्पर्य इमारतों और मशीनरी जैसी चीजों से है, जिन्हें बनाने के लिए अधिक निवेश की आवश्यकता होती है। 
    • इसमें किसी कंपनी, सरकार द्वारा एक निश्चित समय में मशीनरी, वाहन, सॉफ्टवेयर, नई रिहायशी इमारतों व अन्य बिल्डिंग तथा सड़क निर्माण पर किया गया पूंजीगत व्यय शामिल होता है। 
  • सभी पंजीकृत और गैर-पंजीकृत विनिर्माण इकाइयों में तैयार पूंजीगत वस्तुओं तथा विदेश से आयातित पूंजीगत वस्तुओं के मूल्य को भी जी.एफ.सी.एफ. में शामिल किया जाता है।
  • कुल मिलाकर जी.एफ.सी.एफ. में सरकार एवं निजी क्षेत्र दोनों के द्वारा किए गए पूंजीगत निवेश शामिल होते हैं।
    • केंद्रीय सांख्यिकी कार्यालय (CSO) द्वारा प्रत्येक तिमाही और पूरे वित्त वर्ष के लिए जी.डी.पी. के आंकड़े के साथ-साथ जी.एफ.सी.एफ. से संबंधित आंकड़े भी जारी करता है । 
    • इसे जी.डी.पी. के अनुपात के रूप में व्यक्त किया जाता है।

जी.एफ.सी.एफ. का महत्व

  • निजी जी.एफ.सी.एफ. अर्थव्यवस्था में एक मुख्य संकेतक के रूप में काम करता है इससे किसी अर्थव्यवस्था में निजी क्षेत्र की निवेश प्रतिबद्धता का पता चलता है। 
  • जी.एफ.सी.एफ. अर्थव्यवस्था के लिए अत्यधिक महत्व रखता है क्योंकि स्थिर पूंजी, श्रमिकों को हर साल अधिक मात्रा में सामान और सेवाओं का उत्पादन करने में मदद करके, आर्थिक विकास को बढ़ावा देने और जीवन स्तर में सुधार करने में मदद करती है। 
    • दूसरे शब्दों में, स्थिर पूंजी वह मुख्य कारक है जो मोटे तौर पर किसी अर्थव्यवस्था के समग्र उत्पादन को निर्धारित करती है। 
  • किसी अर्थव्यवस्था का जी.एफ.सी.एफ. जितना अधिक होगा, उतनी ही तेजी से उस अर्थव्यवस्था की कुल आय में वृद्धि हो सकती है। 
    • विश्व बैंक भी सकल पूंजी निर्माण पर नज़र रखता है, जिसे वह अचल संपत्तियों में वृद्धि पर परिव्यय के साथ-साथ इन्वेंट्री में शुद्ध परिवर्तन के रूप में परिभाषित करता है।
  • अमेरिका जैसी विकसित अर्थव्यवस्थाओं के पास भारत जैसी विकासशील अर्थव्यवस्थाओं की तुलना में प्रति व्यक्ति अधिक स्थिर पूंजी होने के कारण ही वहाँ की अर्थव्यवस्था तुलनात्मक रूप से अधिक उत्पादन करती है साथ ही वैश्विक व्यापार में भी मजबूत स्थान रखती है। 

जी.एफ.सी.एफ. में गिरावट के कारण

  • कम निजी उपभोग व्यय : कई अर्थशास्त्री भारत में विगत दशक से ही और विशेष रूप से महामारी की शुरुआत के बाद से निजी निवेश में वृद्धि में विफलता के पीछे प्राथमिक कारण के रूप में कम निजी उपभोग व्यय को जिम्मेदार मानते हैं। 
    • हालाँकि, ऐतिहासिक रूप से, भारत में निजी उपभोग व्यय और निजी निवेश में व्युत्क्रम संबंध देखने को मिलता है। 
    • निजी अंतिम उपभोग व्यय 1950-51 में सकल घरेलू उत्पाद के लगभग 90% से लगातार गिरकर 2010-11 में सकल घरेलू उत्पाद के 54.7% के निचले स्तर पर पहुंच गया, ऐसा तब हुआ जब निजी निवेश चरम पर था। 
    • 2011-12 के बाद से, निजी खपत बढ़ी है जबकि सकल घरेलू उत्पाद के प्रतिशत के रूप में निजी निवेश में चिंताजनक गिरावट देखी गई है।
  • संरचनात्मक समस्याएं : कुछ अर्थशास्त्रियों का मानना ​​है कि पिछले एक दशक में सकल घरेलू उत्पाद के प्रतिशत के रूप में निजी निवेश में लगातार गिरावट के पीछे संरचनात्मक समस्याएं संभवतः मुख्य कारण हो सकती हैं। उन्होंने निजी निवेश को प्रभावित करने वाले प्रमुख मुद्दों के रूप में प्रतिकूल सरकारी नीतियों और नीतिगत अनिश्चितता को मुख्य कारक माना है। 
    • 1990 और 2000 के दशक में निजी निवेश में वृद्धि 1991 में शुरू हुए आर्थिक सुधार कार्यक्रम से संबंधित थी। लेकिन पिछले दो दशकों में निजी निवेश में गिरावट सुधारों की गति में मंदी से संबंधित रही है। 
    • नीतिगत अनिश्चितता निजी निवेश को हतोत्साहित करती है क्योंकि निवेशक जोखिम भरी दीर्घकालिक परियोजनाओं को पूरा करने के लिए स्थिरता की उम्मीद करते हैं।

सुधार के आवश्यक उपाय 

  • व्यापारिक कानूनों में सुधार : सरकार को निवेश को आसान और अनुकूल बनाने के लिए कानूनों में सुधार करने की जरूरत है। यह निवेशकों को प्रोत्साहित करेगा और उनके आत्मविश्वास को बढ़ाएगा।
  • बुनियादी ढांचे निवेश: बिजली, पानी और सड़क इत्यादि के बुनियादी ढांचे में निवेश करने से उत्पादकता बढ़ती है और निजी निवेशकों को आकर्षित किया जा सकता है।
  • निजी क्षेत्र के निवेश पर कर छूट : निजी निवेशकों को कर की छूट दे कर उन्हें अधिक निवेश के लिए आकर्षित किया जा सकता है। इससे निवेश की दिशा में वृद्धि होगी।
  • नई योजनाओं का निर्माण : सरकार को निजी निवेशकों को आकर्षित करने के लिए महत्वपूर्ण योजनाएं बनानी चाहिए। योजनाओं के क्रियान्वयन से संबंधित विनियमन को अधिक पारदर्शी और सुगम बनाकर निवेशकों के आत्मविश्वास को बढाने का प्रयास किया जाना चाहिए।
  • नए उद्यमियों के लिए जानकारी और प्रशिक्षण : निजी निवेशकों को सही एवं उपयोगी जानकारी और प्रशिक्षण प्रदान करने से उनकी क्षमताओं को बेहतर करने का प्रयास किया जाना चाहिए, ताकि वे बेहतर निवेश के फैसले करने सक्षम हो सकें।

आगे की राह

  • उद्यमियों के बीच स्थिर पूँजी निर्माण में निवेश के प्रति अधिक विश्वास बढ़ाने के लिए सरकार को उपभोग व्यय को मजबूत करने आवश्यकता है। 
    • स्थिर पूंजी के निर्माण में निजी निवेशकों के के निर्णय को प्रभावित करने में उनके उत्पादन की पर्याप्त मांग महत्वपूर्ण है।
  • इसलिए सरकार को उपभोग व्यय को बढ़ावा देने के लिए लोगों आय में वृद्धि के प्रयास करने चाहिए।
  • हांलाकि, सरकारी निवेश बढ़ाने के सरकार के प्रयास को कुछ लोगों द्वारा नकारात्मक रूप में भी देखा जाता है, जो मानते हैं कि यह निजी निवेश को बाहर कर देता है। निजी निवेशकों को सार्वजनिक अधिकारियों की तुलना में पूंजी का बेहतर आवंटनकर्ता माना जाता है, जिससे फिजूलखर्ची से बचने में मदद मिलती है।

निष्कर्ष : स्थिर पूँजी निर्माण में कम निजी निवेश का परिणाम धीमी आर्थिक वृद्धि के रूप में सामने आ सकता है क्योंकि आर्थिक उत्पादन को बढ़ावा देने के लिए बड़ा स्थिर पूंजी आधार महत्वपूर्ण है। इसीलिए भारत सरकार को आवश्यकता है कि एक बेहतर पारदर्शी नीति का निर्माण करे, जिससे सकल स्थिर पूँजी निर्माण में निजी क्षेत्र के निवेश को बढाया जा सके।

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