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कितना जानलेवा है निपाह वायरस? 

(प्रारंभिक परीक्षा- सामान्य विज्ञान)
(मुख्य परीक्षा, सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र- 2 : स्वास्थ्य)

संदर्भ 

हाल ही में, केरल के कोझीकोड में निपाह वायरस के कुछ मामले सामने आए हैं।  

क्या है निपाह वायरस?

  • विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार, निपाह वायरस जानवरों से मनुष्यों में फैलता है अत: इसे एक जूनोटिक वायरस के रूप में भी जाना जाता है। यह दूषित भोजन के माध्यम से या प्रत्यक्ष रूप से लोगों के संपर्क में आने से फैल सकता है।
  • इससे संक्रमित लोगों में बिना लक्षण वाले संक्रमण (एसिम्पटोमेटिक) से लेकर तेज सांस की बीमारी और घातक इंसेफलाइटिस जैसी कई बीमारियाँ हो सकती हैं।
  • यह वायरस सुअर जैसे जानवरों में भी गंभीर बीमारी का कारण बन सकता है, जिसके परिणामस्वरूप किसानों को आर्थिक नुकसान होता है।
  • निपाह वायरस का प्रकोप एशिया के कुछ हिस्सों में देखा गया है। यह जानवरों और लोगों में गंभीर बीमारी मौत का कारण बन जाता है। इसलिये यह वायरस सार्वजनिक स्वास्थ्य को लेकर चिंता का विषय बना हुआ है।

कहां हुई सर्वप्रथम निपाह वायरस की पहचान

  • निपाह वायरस को पहली बार वर्ष 1999 में मलेशिया के सुअर पालक किसानों में पहचाना गया था। हालाँकि, वर्ष 1999 के बाद से मलेशिया में इसका कोई नया मामला सामने नहीं आया है।
  • सेंटर फॉर डिज़ीज़ कंट्रोल एंड प्रिवेंशन के अनुसार, वर्ष 1999 के दौरान मलेशिया और सिंगापुर में इसके चलते लगभग 100 से अधिक मौतें हुईं। साथ ही, इसके प्रकोप को नियंत्रित करने के लिये 10 लाख से अधिक सुअर मारे जाने से बहुत अधिक आर्थिक नुकसान भी हुआ।
  • वर्ष 2001 में बांग्लादेश में भी निपाह वायरस की पहचान की गई थी और तब से लगभग प्रत्येक वर्ष इसका प्रकोप यहाँ देखा जाता है। भारत में भी समय-समय पर इस रोग की पहचान की गई है।
  • अन्य देशों में इस संक्रमण का खतरा हो सकता है, क्योंकि कंबोडिया, घाना, इंडोनेशिया, मेडागास्कर, फिलीपींस और थाईलैंड सहित कई देशों में प्राकृतिक जलाशय (पेरोपस बैट प्रजाति) और कई अन्य चमगादड़ प्रजातियों में वायरस के प्रमाण पाए गए हैं।  

निपाह वायरस का प्रसार 

  • मलेशिया में सबसे पहले इसके प्रकोप के दौरान अधिकांश मानव संक्रमण बीमार सुअरों या उनके दूषित ऊतकों के सीधे संपर्क में आने से हुआ। 
  • बाद में बांग्लादेश और भारत में इसके प्रकोप देखा गया। यह चमगादड़ों के मूत्र या लार से दूषित संक्रमित फलों या फलों के उत्पादों, जैसे कच्चे खजूर के रस आदि के सेवन से फैला था।
  • संक्रमित रोगियों के परिवार और देखभाल करने वालों के बीच निपाह वायरस एक व्यक्ति से दूसरे में फैला। वर्ष 2001 में भारत के सिलीगुड़ी में स्वास्थ्य देखभाल करने वाले स्थानों पर भी वायरस के फैलने की सूचना मिली थी। 

निपाह वायरस के संकेत और लक्षण

  • लोगों में बिना लक्षण के संक्रमण से लेकर तीव्र श्वसन संक्रमण तथा हल्का गंभीर इंसेफलाइटिस तक होता है। संक्रमित लोगों में शुरू में बुखार, सिरदर्द, मांसपेशियों में दर्द, उल्टी और गले में खराश सहित कई लक्षण दिखाई देते हैं।
  • इसके बाद चक्कर आना, उनींदापन, चेतना में बदलाव और तंत्रिका तंत्र संबंधी समस्याएँ हो सकती हैं, जो तीव्र इंसेफलाइटिस का संकेत देते हैं। कुछ लोगों में असामान्य निमोनिया और गंभीर श्वसन समस्याएँ भी हो सकती हैं। गंभीर मामलों में इंसेफलाइटिस के साथ-साथ दौरे भी पड़ते हैं इससे 24 से 48 घंटों के भीतर रोगी के कोमा में जाने की आशंका होती है।  
  • संक्रमण के लक्षणों की शुरुआत का अंतराल 4 से 14 दिनों तक माना जाता है। हालाँकि, इसकी अवधि 45 दिनों तक भी बताई गई है। तीव्र इंसेफलाइटिस से बचने वाले अधिकांश लोग पूरी तरह से ठीक हो जाते हैं, लेकिन इन लोगों को लंबे समय तक तंत्रिका संबंधी परेशानियों का सामना करना पड़ता है। 
  • लगभग 20 फीसदी रोगियों को न्यूरोलॉजिकल और व्यक्तित्व में बदलाव संबंधी समस्याओं का सामना करना पड़ता है। निपाह मामले की मृत्यु दर 40 फीसदी से 75 फीसदी तक हो सकती है।

निपाह वायरस की जाँच का तरीका 

  • निपाह वायरस के संक्रमण के शुरुआती लक्षण विशिष्ट नहीं हैं, जिससे इसके सटीक निदान में बाधा उत्पन्न हो सकती है। यह प्रकोप का पता लगाने और समय पर संक्रमण नियंत्रण उपायों प्रकोप प्रतिक्रिया गतिविधियों में चुनौतियाँ उत्पन्न कर सकता है।
  • इसके अलावा, गुणवत्ता, मात्रा, प्रकार, नैदानिक ​​नमूना संग्रह का समय और प्रयोगशाला में नमूनों को ले जाने के लिये आवश्यक समय प्रयोगशाला परिणामों की सटीकता को प्रभावित कर सकता है।
  • उपयोग किये जाने वाले मुख्य परीक्षणों में शारीरिक तरल पदार्थ से रियल टाइम- पोलीमरेज़ चेन रिएक्शन (आर.टी.-पी.सी.आर.) और एंज़ाइम-लिंक्ड इम्युनोसॉरबेंट जाँच (एलिसा) के माध्यम से एंटीबॉडी का पता लगाना शामिल हैं। अन्य परीक्षणों में पोलीमरेज़ चेन रिएक्शन (पी.सी.आर.) जाँच और सेल कल्चर (कोशिका संवर्धन) द्वारा वायरस के बारे में पता लगाया जाता है।
  • वर्तमान में निपाह वायरस के संक्रमण के इलाज लिये कोई विशेष दवा या टीके उपलब्ध नहीं हैं। हालाँकि, डब्ल्यू.एच.. ने अपने शोध और विकास के आधार पर ब्लूप्रिंट तैयार किया है, जिसमें निपाह को एक प्राथमिकता वाले रोग के रूप में पहचाना गया है। इसके अतिरिक्त, गंभीर श्वसन और तंत्रिका संबंधी जटिलताओं के उपचार के लिये गहन सहायक देखभाल की सिफारिश की जाती है।      

निपाह वायरस के संक्रमण से बचाव 

  • वर्तमान में निपाह वायरस के खिलाफ कोई टीका उपलब्ध नहीं है। वर्ष 1999 में सुअर फार्मों से जुड़े निपाह के प्रकोप से प्राप्त अनुभव के आधार पर उपयुक्त डिटर्जेंट के साथ सुअर पालन, सफाई और कीटाणुशोधन संक्रमण को रोकने में प्रभावी हो सकता है।
  • लोगों में संचरण के जोखिम को कम करने के लिये संक्रमित जानवरों को मारने शवों को दफनाने या नष्ट करने की निगरानी आवश्यक है। संक्रमित क्षेत्रों से जानवरों की आवाजाही को प्रतिबंधित करने से बीमारी के प्रसार को कम किया जा सकता है।
  • संक्रमण प्रसार को रोकने के लिये खजूर के रस और अन्य ताजे खाद्य उत्पादों तक चमगादड़ की पहुँच को कम करने पर ध्यान केंद्रित करना चाहिये। चमगादड़ को सैप संग्रह स्थलों से दूर रखना मददगार हो सकता है। ताजा एकत्र किये गए खजूर के रस को उबालना चाहिये और उपभोग करने से पहले फलों को अच्छी तरह से धोया और छीला जाना चाहिये। चमगादड़ के काटने के निशान वाले फलों का प्रयोग नहीं करना चाहिये।
  • जानवरों या उनके ऊतकों को नष्ट करने की प्रक्रियाओं के दौरान दस्तानों और अन्य सुरक्षात्मक कपड़ों को पहना जाना चाहिये
  •  निपाह वायरस से संक्रमित लोगों के साथ असुरक्षित शारीरिक संपर्क से बचना चाहिये बीमार लोगों की देखभाल करने या उनसे मिलने के बाद नियमित रूप से हाथ धोने चाहिये।
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