समान नागरिक संहिता (UCC) का अर्थ है –
सभी नागरिकों के लिए व्यक्तिगत कानूनों (Personal Laws) में समानता लाना, चाहे वे किसी भी धर्म, जाति, लिंग या समुदाय से संबंधित हों। ये कानून विवाह, तलाक, उत्तराधिकार, गोद लेना और संपत्ति से संबंधित मामलों पर लागू होते हैं।

संवैधानिक आधार (Constitutional Basis)
- अनुच्छेद 44 (Directive Principles of State Policy – DPSP): “राज्य यह प्रयास करेगा कि भारत के सभी नागरिकों पर समान नागरिक संहिता लागू हो।”
ध्यान दें: यह एक नीति-निर्देशक तत्व है, जिसे लागू करना राज्य की जिम्मेदारी है, पर यह सीधे न्यायालय में लागू नहीं होता।
ऐतिहासिक पृष्ठभूमि (Historical Background)
- औपनिवेशिक काल: ब्रिटिश ने आपराधिक कानून तो समान बनाए, लेकिन व्यक्तिगत कानूनों को धार्मिक समुदायों के अनुसार लागू किया।
- संविधान सभा की बहस (1947–1950):
- डॉ. भीमराव आंबेडकर समान नागरिक संहिता के पक्ष में थे।
- अन्य कुछ प्रतिनिधियों ने धार्मिक स्वतंत्रता का हवाला देकर विरोध किया।
- परिणाम:- UCC को मौलिक अधिकार न बनाकर DPSP (अनुच्छेद 44) में रखा गया।
उद्देश्य (Objectives)
- सभी नागरिकों के लिए समान कानून लागू करना।
- धर्म-आधारित भेदभाव और असमानताओं को समाप्त करना।
- महिलाओं के अधिकारों और लैंगिक समानता को सुनिश्चित करना।
- राष्ट्रीय एकता और अखंडता को मजबूत करना।
- धर्मनिरपेक्षता (Secularism) को बढ़ावा देना।
सुप्रीम कोर्ट के प्रमुख निर्णय (Landmark Supreme Court Decisions)
- अहमद खान बनाम शाह बानो बेगम (1985)
- सुप्रीम कोर्ट ने महिलाओं के भरण-पोषण (Maintenance) और व्यक्तिगत कानूनों में समानता की आवश्यकता पर जोर दिया।
- सरला मुद्गल बनाम भारत संघ (1995) एवं लिली थॉमस मामला (2000)
- कोर्ट ने व्यक्तिगत कानूनों में सुधार और उनका दुरुपयोग रोकने की आवश्यकता पर बल दिया।
- शायरा बानो बनाम भारत संघ (2017)
- ट्रिपल तलाक (तलाक-ए-बिद्दत) को असंवैधानिक घोषित किया।
- महिलाओं के अधिकारों और लैंगिक न्याय को सुनिश्चित किया।
वर्तमान स्थिति (Present Status)
- गोवा: Goa Civil Code लागू है।
- उत्तराखंड: फरवरी 2024 में राज्य स्तर पर UCC विधेयक पारित।
- केंद्र सरकार: लॉ कमीशन (2023) ने कहा कि UCC लागू करने के लिए व्यापक चर्चा और सामाजिक सहमति आवश्यक है।
भारत में समान नागरिक संहिता (UCC) के पक्ष और विरोध में तर्क (Tribal & Constitutional Perspective Included)
UCC के पक्ष में तर्क (Arguments in Favor of UCC)
- संवैधानिक कर्तव्य
- अनुच्छेद 44 के अनुसार राज्य भारत के पूरे क्षेत्र में नागरिकों के लिए एक समान नागरिक संहिता लागू करने का प्रयास करेगा।
- आधुनिक समाज की आवश्यकता
- धर्म, जाति या समुदाय के आधार पर समाज को विभाजित करने वाली प्रथाओं को समाप्त करना आवश्यक है।
- अंतर्राष्ट्रीय दायित्वों का पालन
- संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार सम्मेलनों और प्रोटोकॉल्स में भारत की सदस्यता को उचित ठहराने के लिए UCC आवश्यक है।
- कानूनों का सरलीकरण
- व्यक्तिगत कानूनों में विवादों का त्वरित और कुशल समाधान सुनिश्चित होगा।
- आधुनिकीकरण और समावेशिता
- UCC आधुनिक, समावेशी और प्रगतिशील सामाजिक मूल्यों को प्रतिबिंबित करता है।
- जनजातियों के सामाजिक-सांस्कृतिक लाभ
- कई जनजातीय समुदायों में पारंपरिक अधिकार और प्रथाओं का सीमित संरक्षण है।
- UCC से उनके समानता और अधिकारों की सुरक्षा सुनिश्चित की जा सकती है, विशेषकर महिलाओं और कमजोर वर्गों के लिए।
- सामाजिक समावेशन और विकास में बाधाएं कम होंगी, जैसे शिक्षा, रोजगार और संपत्ति में बराबरी के अवसर।
- संविधानिक संरचना में सुधार
- 5वीं और 6वीं अनुसूची के तहत आदिवासी क्षेत्र और उनके प्रशासनिक ढांचे में समावेशी सुधार लाने का अवसर।
- 5वीं अनुसूची: अनुसूचित क्षेत्रों और जनजातीय समुदायों के संरक्षण हेतु विशेष प्रशासनिक प्रावधान।
- 6वीं अनुसूची: असम, मेघालय, त्रिपुरा और मिजोरम के स्वायत्त जिलों और पंचायतों में जनजातीय प्रशासन का प्रावधान।
- UCC लागू करते समय इन प्रावधानों के साथ समन्वय से आदिवासी समुदायों की पहचान और अधिकारों का संरक्षण सुनिश्चित किया जा सकता है।
UCC के विरुद्ध तर्क (Arguments Against UCC)
- सांस्कृतिक और धार्मिक विविधता के खिलाफ
- व्यक्तिगत कानून धार्मिक, सांस्कृतिक और जनजातीय पहचान का अभिन्न हिस्सा हैं।
- UCC लागू होने पर धार्मिक स्वतंत्रता (अनुच्छेद 25) और जनजातियों की सांस्कृतिक विशेषताएं प्रभावित हो सकती हैं।
- आम सहमति का अभाव
- विभिन्न समुदायों और जनजातियों की सहमति के बिना UCC लागू करने से सामाजिक असंतोष और अशांति उत्पन्न हो सकती है।
- सहकारी संघवाद के सिद्धांतों के खिलाफ
- UCC राज्यों की विधायी क्षमता में हस्तक्षेप कर सकती है, जिससे संघीय ढांचे और सहकारी संघवाद के सिद्धांतों का उल्लंघन हो सकता है।
- जनजातीय परंपराओं की रक्षा की चुनौती
- जनजातीय समुदायों के पारंपरिक कस्टम्स, गोत्र और सामाजिक संरचनाएं UCC लागू होने पर प्रभावित हो सकती हैं।
- 5वीं और 6वीं अनुसूची के तहत उनके विशेष अधिकार और स्वायत्तता को ध्यान में रखते हुए लागू करना चुनौतीपूर्ण हो सकता है।
|
चुनौतियाँ (Challenges)
-
- धार्मिक स्वतंत्रता और समानता के बीच संतुलन।
- विभिन्न समुदायों की परंपराओं और भावनाओं का सम्मान।
- राजनीतिक विरोध और वोट-बैंक पर असर।
- बहुसांस्कृतिक और विविध समाज में सहमति बनाना कठिन।
महत्व (Significance)
-
- सभी नागरिकों के लिए समान अधिकार और न्याय।
- महिलाओं के अधिकारों और लैंगिक समानता की सुरक्षा।
- भारतीय लोकतंत्र और धर्मनिरपेक्षता की मजबूती।
- समाज में एकरूपता और न्यायपूर्ण व्यवस्था।
UCC को लागू करने की दिशा में सुझाव (Way Forward)
-
- आम सहमति बनाना
- सरकार को धार्मिक नेताओं, समुदायों और सभी हितधारकों के साथ तर्कपूर्ण वार्ता करनी चाहिए।
- सामाजिक-आर्थिक प्रभाव विश्लेषण
- संभावित प्रभाव का पूर्वानुमान करना और विशेष रूप से हाशिए पर रहने वाले व कमजोर समुदायों के लिए प्रावधान करना।
- शिक्षा और जागरूकता
- नागरिकों में प्रगतिशील दृष्टिकोण विकसित करना ताकि वे UCC की भावना और उद्देश्यों को समझ सकें।
- सभी व्यक्तिगत कानूनों का संहिताकरण
- कानूनों को संहिताबद्ध करके सार्वभौमिक सिद्धांत स्थापित करना।
- इससे निष्पक्षता और समानता सुनिश्चित होगी।
निष्कर्ष (Conclusion)
-
- समान नागरिक संहिता भारतीय संविधान का महत्वपूण्न सपना है।
- यह नागरिकों के बीच धर्म और समुदाय के आधार पर होने वाले कानूनी भेदभाव को समाप्त कर सकता है।
- इसके सफल कार्यान्वयन के लिए सहमति, जागरूकता और चरणबद्ध सुधार आवश्यक हैं।
प्रश्न : समान नागरिक संहिता (UCC) का संवैधानिक आधार कौन-सा अनुच्छेद है ?
(a) अनुच्छेद 21
(b) अनुच्छेद 44
(c) अनुच्छेद 25
(d) अनुच्छेद 19
|