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ब्रह्मपुत्र पर चीन द्वारा बाँध निर्माण और भारत की चिंता

(प्रारंभिक परीक्षा : राष्ट्रीय एवं अंतर्राष्ट्रीय स्तर की सामयिक घटनाएँ; मुख्य परीक्षा, सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र : 1, 2 व 3; विषय- भौतिकीय घटनाएँ, परिवर्तनों के प्रभाव, भारत एवं इसके पड़ोसी- सम्बंध, आपदा और आपदा प्रबंधन।)

संदर्भ

  • ब्रह्मपुत्र/यारलुंग सांगपो नदी को लेकर चीन और भारत के बीच हमेशा से ही जल विवाद रहा है और चीन की नकारात्मक छवि हमेशा उभर के सामने आई है।
  • चीन के ग्रैविटी बाँध प्रोजेक्ट को लेकर विगत कुछ दिनों से वापस से चर्चाएँ शुरू हो गई हैं।
  • यह ग्रैविटी बाँध प्रोजेक्ट वास्तव में चीन के तिब्बत स्वायत्तशासी क्षेत्र (TAR) के ग्याका में बन रहे ज़ैंगमू बाँध से ही जुड़ा है तथा तिब्बत स्वायत्तशासी क्षेत्र के ही मीडॉग गाँव में बनने वाला है, जो अरुणाचल प्रदेश के बेहद नज़दीक है।
  • भारतीय सीमा में बहने वाली ब्रह्मपुत्र नदी में आ रहे विभिन्न बदलावों की वजह, तिब्बत में बन रहे इस बाँध को बताया जाता रहा है। उदाहरण के तौर पर ब्रह्मपुत्र के पानी में बढ़ती गंदगी और अरुणाचल प्रदेश में इसका पानी काला पड़ने (अरुणाचल में यारलुंग सांगपो को सियांग कहा जाता है) जैसी घटनाएँ प्रमुख हैं।
  • ध्यातव्य है कि डोकलाम विवाद के दौरान, भारत और चीन ने तेज़ बहाव के समय में ब्रह्मपुत्र नदी के पानी से जुड़े आँकड़े साझा करने के लिये सहमति पत्र पर हस्ताक्षर किये थे। यद्यपि चीन ने इस तरह के आँकड़े साझा नहीं किये थे। 

प्रमुख बिंदु

  • विगत वर्ष नवंबर से ही भारतीय और वैश्विक मीडिया में ये ख़बरें काफ़ी चर्चित रही थीं कि चीन, तिब्बत में वास्तविक नियंत्रण रेखा के बेहद क़रीब यारलुंग सांगपो पर एक विशाल बाँध बनाने की योजना पर कार्य कर रहा है।
    खबरों में यह भी कहा गया कि चीन के इस क़दम से, ‘भारत की जल सुरक्षा पर दूरगामी प्रभाव पड़ेगा।’
  • अरुणाचल प्रदेश के बेहद नज़दीक प्रस्तावित बाँध के द्वारा यदि नदी के बहाव में बाधा डाली जाती है, तो इसके भारत के लिये गंभीर परिणाम होंगे, ब्रह्मपुत्र नदी में पानी के मौजूदा बहाव और बारिश के दौरान इसमें आने वाले संभावित बदलाव की दृष्टि से इन परिणामों को समझने की ज़रूरत है।

स्थिति की गंभीरता

  • सबसे पहले तो ये समझना होगा कि ब्रह्मपुत्र नदी में पानी का प्रवाह और इसके क्षेत्र में होने वाली बारिश एक दूसरे से सम्बंधित हैं। भले ही ब्रह्मपुत्र नदी के बहाव में बारिश के साथ साथ बर्फ़ पिघलने और ग्लेशियर के पानी का भी बड़ा योगदान क्यों न हो।
  • यद्यपि ब्रह्मपुत्र नदी में पानी के बहाव के स्तर पर बर्फ़ और ग्लेशियर पिघलने का योगदान बेहद कम होता है। हालाँकि, ब्रह्मपुत्र नदी के ऊपरी इलाक़े, जहाँ बारिश कम होती है, वहाँ इसके बहाव का मुख्य स्रोत बर्फ़ और पिघले ग्लेशियर ही हैं।
  • ब्रह्मपुत्र नदी की कुल लंबाई 2880 किलोमीटर है। इसमें से 1625 किलोमीटर का क्षेत्र तिब्बत के पठार से होकर गुज़रता है, जहाँ नदी को यारलुंग सांगपो के नाम से जाना जाता है।
  • भारत में ब्रह्मपुत्र नदी की लंबाई 918 किलोमीटर है। यहां इसे सियांग, दिहांग और ब्रह्मपुत्र के नाम से जाना जाता है।
  • नदी का बाक़ी का 337 किलोमीटर का हिस्सा बांग्लादेश से होकर गुज़रता है, जहाँ इसे जमुना कहकर बुलाया जाता है। बांग्लादेश के गोलांदो में ब्रह्मपुत्र नदी गंगा में मिल जाती है।
  • यदि तीनों देशों में समग्र रूप से देखा जाय तो ब्रह्मपुत्र नदी, तिब्बत स्वायत्तशासी क्षेत्र (TAR) में सबसे ज़्यादा बहती है। लेकिन, ये महज़ एक मिथक है। ब्रह्मपुत्र नदी जैसे जैसे आगे बढ़ती है, वैसे वैसे ये ताक़तवर और चौड़ी नदी में बदल जाती है।
  • यहां ध्यान देने वाली बात ये है कि नदी को ब्रह्मपुत्र नाम, भारत के असम राज्य के सादिया से मिलता है, जहाँ तीन सहायक नदियां लोहित, दिबांग और दिहांग मिलकर एक नदी बनती हैं।
  • तिब्बत वाले अधिकतर क्षेत्र में नदी को बारिश के पानी का योगदान अपने दक्षिणी हिस्से की तुलना में बहुत कम मिलता है। इसीलिये, हिमालय के पार अर्थात उत्तरी इलाक़े में बारिश का वार्षिक औसत जहाँ लगभग 300 मिलीमीटर है, वहीं दक्षिणी हिस्से में बारिश का वार्षिक औसत लगभग 3000 मिलीमीटर है।
  • पर्वत के तराई वाले इलाक़ो में अक्सर इतनी बारिश होती है कि इससे भयंकर बाढ़ आ जाती है। असम की ब्रह्मपुत्र घाटी के उत्तरी पूर्वी इलाक़े में बारिश का वार्षिक औसत काफ़ी अधिक है और जैसे जैसे ये पश्चिम की ओर बढ़ती है, तो बारिश का औसत कम होता जाता है। सबसे अधिक प्रवाह वाले समय में, ब्रह्मपुत्र नदी का मॉनसून की बारिश से ताक़त मिलती है।
  • तिब्बत के पठार में नदी का प्रवाह मापने के नुक्शिया और सेला ज़ोंग स्टेशनों में सबसे अधिक जल प्रवाह लगभग पांच हज़ार और दस हज़ार क्यूबिक मीटर प्रति सेकेंड (cumecs) है। वहीं असम के गुवाहाटी में पानी के प्रवाह का उच्चतम स्तर 55 हज़ार क्यूबिक मीटर प्रति सेकेंड है।
  • नुक्शिया में कम प्रवाह के दिनों का औसत 300 से 500 क्यूबिक मीटर प्रति सेकेंड होता है, तो भारत के पासीघाट में ये दो हज़ार क्यूबिक मीटर प्रति सेकेंड होता है।
  • वहीं, गुवाहाटी में कम पानी के प्रवाह वाले दिनों में ब्रह्मपुत्र में पानी का बहाव चार हज़ार क्यूबिक मीटर प्रति सेकेंड से अधिक तो बहादुराबाद में ये पांच हज़ार क्यूबिक मीटर प्रति सेकेंड के आस-पास होता है। अर्थात यह कहा जा सकता है कि नुक्शिया में ब्रह्मपुत्र नदी में पानी के वार्षिक बहाव की तुलना, पांडु/गुवाहाटी या बांग्लादेश के वार्षिक प्रवाह से नहीं की जा सकती है।
  • इसके आलावा नदी के पानी में तलछट की मात्रा में भी इसी तरह का अंतर देखा जाता है। तिब्बत के पठारी इलाक़ों में यारलुंग सांगपो नदी के पानी में तलछट की बहुत अधिक मात्रा नहीं होती है। इसकी तुलना में भारतीय सीमा में बहने वाली ब्रह्मपुत्र नदी के पानी में इतना पानी होता है कि वो तलछट को भी अपने साथ बहा सकती है।
  • भारत की सीमा में ब्रह्मपुत्र नदी में पानी और तलछट की अधिक मात्रा होने में इसकी बहुत सी बड़ी सहायक नदियों दिबांग, दिहांग (सियांग), लोहित, सुबांसिरी, मनास, संकोश और तीस्ता वग़ैरह का भी योगदान होता है। जहाँ नुक्शिया में तलछट का वार्षिक औसत लगभग 3 करोड़ टन होता है वहीं बांग्लादेश के बहादुराबाद में औसत वार्षिक तलछट की मात्रा 73.5 करोड़ टन मापी गई है।
  • ध्यातव्य है कि भारत के जल संसाधन मंत्रालय के आँकड़ों के अनुसार, ब्रह्मपुत्र में कुल इस्तेमाल के लायक़ पानी की संभावित मात्रा (PUWR) केवल 25 % होती है। इसीलिये बारिश के पानी के बहाव और तलछट की मात्रा को देखते हुए अगर हिमालय के उस पार यारलुंग सांगपो नदी पर कोई बाँध बनाया भी जाता है, तो उससे भारत और बांग्लादेश पर कोई फ़र्क़ नहीं पड़ेगा, भले ही चीन का इरादा कुछ भी हो। जैंगमू प्रोजेक्ट जिस जगह स्थित है, उसके लिहाज़ से तो ये बात और तार्किक मालूम होती है।
  • लेकिन, हम यही बात तिब्बत स्वायत्तशासी क्षेत्र के मीडॉग गाँव में बनने वाले प्रोजेक्ट को लेकर नहीं कह सकते। इसकी वजह ये है कि तिब्बत का मीडॉग गाँव, हिमालय के दक्षिणी हिस्से में पड़ता है, जहाँ पर यारलुंग नदी की मुख्य धारा में पारलुंग सांगपो नदी का पानी मिलने से ये और ताक़तवर हो जाती है।
  • मीडॉग में वार्षिक औसत बारिश के आँकड़ों के अनुसार वहाँ बरसात का वार्षिक औसत लगभग तीन हज़ार मिलीमीटर है। जो नुक्शिया के वार्षिक औसत 500 मिलीमीटर से काफ़ी अधिक है। इसके अलावा यारलुंग नदी जिस क्षेत्र से चीन की सीमा से बाहर निकलती है, वहाँ उसमें कितना पानी होता है, इसे लेकर भी विवाद है।
  • चीन के अनुसार उस समय यारलुंग नदी में 135.9 अरब घन मीटर (BCM) पानी होता है। वहीं, भारत के अनुसार भारतीय सीमा में प्रवेश करते वक़्त यारलुंग सांगपो में 78.1 अरब घन मीटर (BCM) पानी होता है।
  • दोनों ही देशों के आंकड़ों में अंतर बहुत अधिक है। हालाँकि भारत के कुछ पुराने अनुमानों के मुताबिक़, अरुणाचल प्रदेश के टुटिंग में यारलुंग सांगपो नदी में पानी 179 अरब घन मीटर होता है। अतः यदि प्रतिशत के हिसाब से देखें, तो चीन की सीमा से भारत में प्रवेश करते वक़्त, नदी में जो पानी होता है, उसकी मात्रा इतनी भी कम नहीं होती कि उसकी अनदेखी कर दी जाए। भले ही पानी की यह मात्रा असम में ब्रह्मपुत्र के बाढ़ वाले मैदानी इलाक़ों या बांग्लादेश में जमुना नदी के प्रवाह वाले इलाक़ों के लिहाज़ से महत्त्वपूर्ण न हो।

गंभीर परिणाम

  • चीन के बाँध को लेकर दो तरह की चिंताएँ हैं। आदर्श स्थिति में चीन को ऐसा बाँध बनाना चाहिये, जिससे निचले इलाक़ों की ओर नदी के प्रवाह पर कोई फ़र्क़ न पड़े। मगर, इससे तिब्बत में नदी की पारिस्थितिकी या इकोसिस्टम पर विपरीत असर पड़ सकता है, और इसका कुछ प्रभाव हम अरुणाचल प्रदेश में भी देख सकते हैं।
  • हालाँकि, इस बात को लेकर निश्चिंत नहीं हुआ जा सकता कि जब नदी में पानी कम होता है, तो उस दौरान रन ऑफ़ द रिवर प्रोजेक्ट से भारत में आने वाले पानी पर कोई बुरा असर नहीं पड़ेगा। अतः, अगर चीन अपने बाँध के ज़रिए यारलुंग सांगपो नदी का कुछ पानी जलाशय में जमा करता है, तो इसका कुछ असर अरुणाचल प्रदेश में नदी में पानी की उपलब्धता पर पड़ सकता है।
  • चीन के यारलुंग सांगपो पर बाँध बनाने से जो दूसरा प्रभाव पड़ने आशंका है, वो अधिक चिंता वाली बात है। ऐसा इसलिये है, क्योंकि अध्ययनों के अनुसार तिब्बत से जहाँ यारलुंग नदी तीखा मोड़ लेते हुए, भारत में दाख़िल होती है, उस ग्रेट बेंड वाले इलाक़े में यिगॉन्ग सांगपो, पारलुंग सांगपो और लोअर यारलुंग में भारी बारिश होती है।
  • यहाँ पर भूस्खलन और हिमस्खलन से अचानक बाढ़ आने की घटनाएं होने का डर रहता है। इस क्षेत्र में हर वर्ष कम से कम ऐसी दस या इससे भी अधिक प्राकृतिक आपदाएँ आने की आशंका रहती है।
    इसके अलावा मीडॉग में भी हर वर्ष ऐसी औसतन 12 से 15 आपदाएँ आती हैं।
  • यदि भूकंप आता है, तो इससे बाँध टूटने या दूसरी ऐसी दुर्घटनाएं होने की आशंका है, जिसका असर विशेष तौर से अरुणाचल प्रदेश में देखने को मिल सकता है, और वहाँ पर अचानक बाढ़ आ सकती है।
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