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इजराइल का दो-राज्य समाधान और हालिया धारणाएँ

संदर्भ 

  • अल-जजीरा की रिपोर्ट के अनुसार, 20 अप्रैल 2024 तक इजराइल-हमास युद्ध में 34,012 लोगों की मृत्यु हो चुकी है, जिसमें महिलाएं, बच्चे एवं स्वास्थ्य कर्मी सभी शामिल है। 
  • अब इसमें पडोसी देशों जैसे- ईरान, सीरिया और लेबनान ने भी प्रत्यक्ष रूप से फलीस्तीन की युद्ध में मदद करना शुरू कर दिया है, जिससे तनाव और अधिक बढ़ गया है।
  • ग्रुप ऑफ सेवन (G7) के विदेश मंत्रियों ने एक संयुक्त बयान जारी कर गाजा में इजरायली बंदियों की रिहाई और स्थायी युद्धविराम का आह्वान किया है।

पृष्ठभूमि

  • विगत वर्ष 7 अक्टूबर 2023 को गाजा पट्टी की तरफ से हमास ने अचानक इजराइल पर हमला कर दिया था, ये हमला इतना बड़ा और खतरनाक था, कि हमास ने सिर्फ 20 मिनट में 5000 मिसाइलों को इजराइल पर दाग दिया था। इस घटना के बाद इस्राइल ने ऑन रिकॉर्ड स्टेट ऑफ वॉर अलर्ट की घोषणा कर दी थी। 
  • वर्तमान में चल रही हिंसा से गाजा में मानवीय संकट पैदा हो गया है, कई लोग भोजन और पानी जैसी बुनियादी आवश्यकताओं तक पहुंचने के लिए संघर्ष कर रहे हैं। लगातार 8 माह से चल रहे युद्ध ने मानवता के लिए अन्धकार की स्थिति पैदा कर दी है।

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इजराइल से सम्बंधित हालिया अवधारणाएं 

  • इजराइल के बारे में दस मिथकों की अवधारणा प्रचलित है : 
    1. फ़िलिस्तीन एक ख़ाली ज़मीन थी।
    2. यहूदी बिना ज़मीन के लोग थे।
    3. ज़ायोनीवाद यहूदी धर्म है।
    4. ज़ायोनीवाद उपनिवेशवाद नहीं है।
    5. 1948 में फिलिस्तीनियों ने स्वेच्छा से अपनी मातृभूमि छोड़ दी।
    6. जून 1967 का युद्ध 'कोई विकल्प नहीं' का युद्ध था।
    7. इज़राइल मध्य पूर्व में एकमात्र लोकतंत्र है।
    8. ओस्लो पौराणिक कथाएँ।
    9. गाजा पौराणिक कथाएँ।
    10. दो-राज्य समाधान ही आगे बढ़ने का एकमात्र रास्ता है।
  • इतिहासकार इलान पप्पे ने इज़राइल के समकालीन राज्य की उत्पत्ति और पहचान के बारे में अपनी पुस्तक ‘इज़राइल के बारे में दस मिथक’ (Ten Myths About Israel) में 'दस मिथकों' का विरोध किया है। यह पुस्तक उन मिथकों को चुनौती देती है, जो सार्वजनिक क्षेत्र में निर्विवाद सत्य के रूप में सामने आते हैं। पप्पे के अनुसार, 'ये बयान विकृतियाँ और मनगढ़ंत बातें हैं जिनका ऐतिहासिक रिकॉर्ड की बारीकी से जांच के माध्यम से खंडन किया जा सकता है - और किया जाना चाहिए'।
  • इज़राइल-फिलिस्तीन संघर्ष से पता चलता है, ऐतिहासिक दुष्प्रचार, और वर्तमान में चल रहे ऐतिहासिक शोध कार्य जनमानस के मनोबल को किस प्रकार जबरदस्त नुकसान पहुंचा सकते है। इतिहास की यह जानबूझ कर की गई ग़लतफ़हमी उत्पीड़न को बढ़ावा दे सकती है और उपनिवेशवाद और प्रताड़ना के शासन की रक्षा कर सकती है।
  • अर्बन डिक्शनरी के अनुसार, इजराइल संज्ञा 'गॉट इजराइल्ड' एक क्रिया के रूप में है जिसका अर्थ है कि 'जब किसी को आपकी कोई चीज साझा करने के लिए कहा जाता है, तो वह इसे अपना होने का दावा करता है, और इसे अपने लिए ले लेता है'।

दो राज्य समाधान

  • दो राज्य समाधान अभी तक सबसे व्यापक रूप से समर्थित प्रस्तावों में से एक है, जो पारस्परिक रूप से सहमत और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर मान्यता प्राप्त सीमाओं के भीतर इज़राइल के साथ ही एक स्वतंत्र एवं संप्रभु फिलिस्तीनी राज्य के निर्माण की परिकल्पना करता है। 
  • इस समाधान  का उद्देश्य संघर्ष के मुख्य मुद्दों—जैसे यरूशलेम, शरणार्थी, बसावट, सुरक्षा और जल बँटवारा आदि को संबोधित करना भी है।
  • दो-राज्य समाधान 1993 के ओस्लो समझौते द्वारा शुरू की गई अमेरिका समर्थित शांति प्रक्रिया का आधार था, जिस पर फिलिस्तीन लिबरेशन ऑर्गनाइजेशन (PLO) के यासर अराफात और इजरायली प्रधान मंत्री यित्ज़ाक राबिन ने हस्ताक्षर किए थे।
  • समझौते ने पीएलओ को इज़राइल के अस्तित्व और हिंसा त्यागने के अधिकार को मान्यता देने और फिलिस्तीनी प्राधिकरण (PA) के निर्माण के लिए प्रेरित किया, जिसकी वेस्ट बैंक और गाजा पट्टी में सीमित स्वायत्तता है।
  • फिलिस्तीनियों को उम्मीद थी कि यह एक स्वतंत्र राज्य की दिशा में एक कदम होगा, जिसकी राजधानी पूर्वी येरुशलम होगी।
  • यह प्रक्रिया दोनों तरफ से अस्वीकृति और हिंसा से प्रभावित हुई और अभी तक सफल नहीं हो सकी है।
  • G20 की फ़रवरी 2024 की ब्राज़ील बैठक में यह कहा गया है कि दो-राज्य समाधान ही इजरायल-फिलिस्तीनी संघर्ष का संभावित समाधान है। 

दो-राज्य समाधान के समक्ष चुनौतियां

  • किसी भी दो-राज्य समाधान के लिए एक बड़ी चुनौती राज्य की सीमाओं के बारे में सहमति है। 1967 से पहले की मान्यता प्राप्त सीमाओं के आधार पर, वेस्ट बैंक और पूर्वी येरुशलम में अवैध बस्तियों में 700,000 से अधिक इजरायली हैं, और कई मामलों में इजरायली कब्जेदारों का मानना ​​है कि भविष्य में किसी समय इन्हें कानूनी रूप से कब्जा कर लिया जाएगा।
  • हाल ही में ईरान, तुर्की, मिस्र और अमेरिका जैसे बाहरी तत्वों का प्रभाव एवं हस्तक्षेप बढ़ने से इस क्षेत्र में किसी भी प्रकार के कूटनीतिक समाधान की गुंजाइश धीरे-धीरे काम हो गई है, क्योंकि इन सभी तत्वों के इस क्षेत्र में अपने-अपने हित और एजेंडे हैं। इससे अब दो-राज्य समाधान के वैकल्पिक उपायों की चर्चा भी शुरू हो गई है। 
  • संप्रभुता के प्रतिस्पर्धी दावों, जबरन विस्थापन, संसाधन नियंत्रण, भूमि द्रव्यमान और सीमाओं की निकटता और संबंधित नागरिक अशांति के संबंधित मुद्दे बहुत महत्वपूर्ण चुनौतियां पैदा करते हैं। युद्ध के बाद की अवधि में, अवैध बस्तियाँ दो-राज्य समझौते को प्राप्त करने में सबसे बड़ी बाधा साबित हो सकती हैं।

भारत का परिप्रेक्ष्य 

  • भारत ने वर्ष 1950 में इज़राइल को मान्यता दे दी थी। लेकिन 1992 में पूर्ण राजनयिक संबंध स्थापित होने के बाद ही दोनों देशो में दूतावास खोले गए। 
  • भारत फिलिस्तीन लिबरेशन ऑर्गनाइजेशन (PLO) को फिलिस्तीन के एकमात्र प्रतिनिधि के रूप में मान्यता देने वाला पहला गैर-अरब देश भी था। भारत वर्ष 1988 में फिलिस्तीन के राज्य दर्जे को मान्यता देने देने वाले पहले देशों में से भी एक था।
  • भारत इज़रायल-फिलिस्तीन संघर्ष के संबंध में दो-राज्य समाधान (Two-State Solution) में विश्वास करता है तथा शांतिपूर्ण तरीके से दोनों देशों के लिये आत्मनिर्णय के अधिकार का प्रस्ताव करता है। भारत की ओर से लगातार युद्ध के मानवीय संकट को हल करने के लिए अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर प्रयास किया जा रहा है।
  • भारत के प्रवासी कार्यबल का बड़ी संख्या में अरब देशों में कार्यरत होने और कच्चे तेल पर निर्भरता के कारण भारत के अपने व्यापारिक एवं रणनीतिक हित इस क्षेत्र में समाहित है। और साथ ही भारत के इजराइल के साथ भी रक्षा क्षेत्र एवं सूचना अंतरण में गहरे सम्बन्ध है, इसीलिए भारत अभी तक इजराइल के खिलाफ युद्ध रोकने के प्रस्ताव पर संयुक्त राष्ट्र में अनुपस्थित रहा है। 
  • भारत के लिए चुनौती दोनों पक्षों के साथ एक संतुलित कूटनीति बनाये रखने की है। विगत एक दशक में भारत की बढ़ती अंतर्राष्ट्रीय पहचान एवं गौरव के कारण अब भारत ऐसी विवादस्पद परिस्थितियों में बाह्य तत्वों की चिंता किये बिना अपने हितो के अनुरूप निर्णय ले पाने में सक्षम हो गया है।

आगे की राह

  • वर्तमान समय की सबसे बड़ी मांग यही है कि इजराइल-हमास युद्ध को तात्कालिक प्रभाव से पूर्ण विराम कर देना चाहिए। और मानवीय संकट के समय में विस्थापित लोगो के लिए बड़े स्तर पर पुनर्वास के कार्य शुरू होने चाहिए। 
  • युद्ध को रोकने के लिए एक शांतिपूर्ण विश्वासपरक माहौल निर्मित करने की आवश्यकता है, इसके लिए ईरान, सीरिया एवं लेबनान में सक्रिय हिंसक तत्वों पर रोक लगाने की जरूरत है। 
  • अभी तक हमास द्वारा इजराइल के बंधकों को वापस अपने देश नहीं भेजा गया है, जिसके कारण इजराइल की जनता में भारी आक्रोश है, जिसके परिणामस्वरूप इजराइल की राष्ट्रवादी सरकार वैश्विक स्तर पर जोरदार विरोध के बावजूद युद्ध रोकने के लिए तैयार नहीं है। 
  • UNSC की भूमिका भी संदेह के घेरे में है, ऐसी भयावहता के बाद भी युद्ध रोकने में नाकामी से इसमें सुधार की आवश्यकता पर जोर दिया जाना चाहिए। 

निष्कर्ष

विश्व के लगभग सभी देशों में फिलिस्तीन में हो रहे मानवीय नरसंहार के विरोध में प्रदर्शन हुए है। जिससे समाज में एक वैचारिक द्वेष की खाई बनती जा रही है, जो भविष्य के लिए शुभ संकेत नहीं है। किसी स्वतन्त्र संस्था के द्वारा पूरी ईमानदारी एवं उत्तरदायिता के साथ इजराइल फिलिस्तीन विवाद के बारे में भ्रमित अवधारणाओं एवं मिथको को विश्व के सामने प्रकट करना चाहिए, जिससे आने वाली पीढ़ियों के मन में किसी प्रकार का द्वेष न जन्म न ले।

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