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ऑस्ट्रेलिया में मीडिया प्लेटफ़ॉर्म विधेयक विवाद

(प्रारंभिक परीक्षा- राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय महत्त्व की सामयिक घटनाएँ)
(मुख्य परीक्षा, सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र- 2 व 3 : भारत के हितों पर विकसित तथा विकासशील देशों की नीतियों तथा राजनीति का प्रभाव, सूचना प्रौद्योगिकी और बौद्धिक संपदा अधिकारों से संबंधित विषयों के संबंध में जागरुकता)

संदर्भ

हाल ही में, ऑस्ट्रेलियाई संसद में समाचार मीडिया और डिजिटल प्लेटफॉर्म अनिवार्य मोलभाव संहिता’ (मीडिया बार्गेनिंग कोड) विधेयक पेश किया गया। इस संबंध में ऑस्ट्रेलियाई प्रधानमंत्री ने वैश्विक राजनयिक समर्थन प्राप्त करने के लिये भारतीय प्रधानमंत्री से भी बात की है।

प्रस्तावित कानून : प्रमुख बिंदु

  • बड़े डिज़िटल प्लेटफ़ॉर्मों को ऑस्ट्रेलिया की मीडिया कम्पनियों के समाचारों के उपयोग, प्रदर्शन एवं उससे होने वाली आय के वितरण के लिये एक मंच पर लाया जाएगा।
  • गौरतलब है की डिजिटलीकरण के दौर में पाठक समाचार के लिये आधिकारिक टी.वी. चैनल या मुद्रित समाचार पत्र के स्थान पर गूगल, फेसबुक तथा यूट्यूब जैसे ऑनलाइन माध्यमों का प्रयोग कर रहे हैं, जिससे विज्ञापन कम्पनियाँ ऑनलाइन माध्यमों को प्राथमिकता दे रही हैं।
  • इस प्रकार, विज्ञापन उद्योग के ऑनलाइन प्लेटफॉर्म पर शिफ्ट होने से मीडिया कम्पनियों को नुकसान उठाना पड़ रहा है। मीडिया हाउस और ऑनलाइन प्लेटफॉर्म कंपनियों के मध्य भुगतान को लेकर समझौता न हो पाने की स्थिति में एक स्वतंत्र मध्यस्थ की नियुक्ति की जाएगी, जिसका निर्णय बाध्यकारी होगा।

लाभ और समस्या

  • इससे ऑनलाइन विज्ञापन बाज़ार में समान प्रतिस्पर्धा का अवसर मिलने के अतिरिक्त एक स्थाई और व्यवहार्य मीडिया परिदृश्य सुनिश्चित किया जा सकेगा। साथ ही, इससे समाचार सामग्री तैयार करने वाली मूल संस्थाओं तथा समाचार प्रकाशकों को उचित प्रतिफल प्राप्त होगा।
  • इस कानून में अनिवार्य बातचीत के लिये एक मध्यस्थता मॉडल का तो प्रावधान है परंतु समाचार प्रदर्शन से होने वाली आय के वितरण से सम्बंधित किसी अनुपातिक फार्मूले का अभाव है, जोकि विवाद का विषय है।
  • राजस्व वितरण या क्षतिपूर्ति से सम्बंधित किसी स्पष्ट फार्मूला के अभाव में दोनों पक्षों के मध्य हितों के टकराव की आशंका है और मध्यस्थ का निर्णय बाध्यकारी होने से प्रौद्योगिकी कम्पनियों के शोषण की सम्भावना है।
  • ऐसे कानूनों से स्वंतत्र बाज़ार प्रणाली में राज्य के हस्तक्षेप में वृद्धि होगी, जिससे अंतर्राष्ट्रीय कम्पनियाँ उस देश में कारोबार करने से हिचकेंगी। फलत: उस देश में निवेश और रोज़गार सृजन में कमी आ सकती है।

पहल की शुरुआत

  • यह कानून स्वयं में ‘विश्व का पहला ऐसा मीडिया प्लेटफ़ॉर्म कानून है, जिसके तहत गूगल और फेसबुक जैसी कम्पनियों को अपने प्लेटफ़ॉर्म पर समाचार एजेंसियों की समाचार सामग्री प्रदर्शित करने के लिये उनको क्षतिपूर्ति के रूप में भुगतान करना पड़ेगा।
  • यह कानून सोशल मीडिया को विनियमित करने की एक मिसाल है, जिस पर वैश्विक स्तर पर बारीकी से नज़र रखी जा रही है।
  • इस बीच फेसबुक ने अपने मंच पर समाचार लिंक को अवरुद्ध करते हुए ‘न्यूज़ ब्लैकआउट’ का प्रयास किया है। इस प्रक्रिया में उसने कुछ आपातकालीन सेवाओं के प्रदर्शन को भी समाप्त कर दिया है। साथ ही, ऑस्ट्रेलिया के ब्यूरो ऑफ़ मेटेरियोलॉजी, राज्य के स्वास्थ्य विभागों, अग्नि तथा बचाव सेवाओं, चैरिटी और आपातकालीन व संकटकालीन सेवाओं के पोस्ट एवं विज्ञापनों को कथित तौर पर हटा दिया है।

 ऑस्ट्रेलियाई कानून

  • प्रावधानों के अनुसार, गूगल और फ़ेसबुक को मीडिया कंपनियों के साथ भुगतान वार्ता करने की आवश्यकता है और किसी समझौते के आभाव में मध्यस्थता निकाय का निर्णय अनिवार्य है। इसके अभाव में भारी जुर्माने का सामना करना पड़ेगा। मध्यस्थ को छोटे समाचार प्रकाशकों के लिये महत्त्वपूर्ण माना जा रहा है।  
  • दोनों कंपनियों का तर्क है कि मीडिया जगत पहले से ही डिजिटल प्लेटफ़ॉर्म द्वारा उनके लिये उत्पन्न ट्रैफिक से लाभान्वित हो रहा है और प्रस्तावित नियम से इंटरनेट कंपनियों के ‘वित्तीय और परिचालन संबंधी जोखिम’ स्तरों में वृद्धि होगी।

बड़े डिजिटल प्लेटफ़ॉर्मों की रणनीति

  • फेसबुक ने कई समाचार संस्थानों के साथ समझौता करके यू.के. में न्यूज टैब फीचर को लॉन्च करने की योजना बनाई है। यह सेवा अमेरिका में पहले से मौजूद है। साथ ही, गूगल अपने समाचार मंच ‘गूगल न्यूज़ शोकेस’ को प्रारंभ कर रहा है। इनका उद्देश्य समाचार आउटलेट्स के साथ भुगतान समझौते को औपचारिक बनाना है।
  • हालाँकि, पूर्व में गूगल ने स्पेन सहित कई अन्य स्थानों में अपनी ‘गूगल समाचार सेवा’ को वापस ले लिया था, जिसमें प्रकाशकों के लिये भुगतान अनिवार्य हो गया था। ऑस्ट्रेलिया में गूगल की नीति फेसबुक की अपेक्षा कम आक्रामक रही है।

मूल चिंतनीय मुद्दे

  • भुगतान का मुद्दा ज़्यादा विवाद का विषय नहीं है। ऑस्ट्रेलिया में विवाद इस पर केंद्रित है कि ये कंपनियां भुगतान प्रक्रिया पर कितना नियंत्रण रख पाएंगी। इसमें परिचालन संबंधी पहलू जैसे कि समाचार फ़ीड स्रोतों के लिये भुगतान की मात्रा तय करना और उनके एल्गोरिदम में परिवर्तन करना शामिल हैं।
  • यूरोपीय देशों में विशेष रूप से इस भुगतान को कॉपीराइट से जोड़ा गया है, जबकि ऑस्ट्रेलियाई कानून लगभग पूरी तरह से समाचार आउटलेट की सौदेबाजी की शक्ति पर केंद्रित है।
  • ऑस्ट्रेलिया में यह पारंपरिक समाचार आउटलेट और टेक प्लेटफॉर्मों के बीच ‘शक्ति समीकरणों की प्रतिस्पर्धा’ और ‘प्रभुत्त्व के दुरुपयोग’ का मुद्दा है।

भारत का दृष्टिकोण

  • भारत में नीति-निर्माताओं ने अब तक गूगल और फेसबुक जैसे ‘मध्यस्थों के प्रभुत्त्व’ पर ध्यान केंद्रित किया है क्योंकी समाचार सेवा प्रदाता इन प्लेटफार्मों के बिना ग्राहकों तक नहीं पहुँच सकते हैं।
  • चीन के बाद दूसरा सबसे बड़ा ऑनलाइन समाचार उपयोगकर्ता देश भारत है। साथ ही, भारत में डिजिटल विज्ञापन खर्च वर्ष 2022 तक बढ़कर 51,340 करोड़ रुपए होने की उम्मीद है। अत: ऑनलाइन और ऑफ़लाइन विज्ञापनों के बीच सामंजस्य के साथ एक समन्वयकारी एवं व्यापक दृष्टिकोण की आवश्यकता है।
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