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भारत की अफ्रीका नीति को क्रियाशील करने की आवश्यकता

(प्रारंभिक परीक्षा :राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय महत्त्व की सामयिक घटनाएँ )
(मुख्य परीक्षा : सामान्य अध्ययन, प्रश्नपत्र- 2: द्विपक्षीय, क्षेत्रीय और वैश्विक समूह और भारत से संबंधित और/अथवा भारत के हितों को प्रभावित करने वाले करार)

संदर्भ

  • अफ्रीका, भारतीय विदेश नीति की मुख्य प्राथमिकताओं में रहा है। वर्तमान सरकार ने अफ्रीकी देशों के साथ संबंधों को मज़बूत करने के लिये एक दूरदर्शी रणनीति तैयार की है। इसके कार्यान्वयन को भी काफी अच्छे से प्रबंधित किया गया है। 
  • हालाँकि, मार्च 2020 में जब कोविड-19 का दौर शुरू हुआ, तब भी नई दिल्ली ने दवाओं, और बाद में टीकों के त्वरित प्रेषण के माध्यम से अफ्रीका की सहायता के लिये नई पहल शुरू की है, तथापि, नीति कार्यान्वयन की  समीक्षा की आवश्यकता है।

ृहत् परिदृश्य

  • नवीनतम आर्थिक आँकड़े इस बात की पुष्टि करते हैं कि भारत-अफ्रीका व्यापार में गिरावट हो रही है।
  • भारतीय उद्योग परिसंघ (CII) के अनुसार, वर्ष 2020-21 में, अफ्रीका से भारत का निर्यात एवं आयात क्रमश: $27.7 बिलियन एवं $28.2 बिलियन था, जो विगत वर्ष की तुलना में 4.4 प्रतिशत और 25 प्रतिशत कम था।
  • इस प्रकार, वर्ष 2020-21 में $55.9 बिलियन का द्विपक्षीय व्यापार, वर्ष 2019-20 की तुलना में $10.8 बिलियन और वर्ष 2014-15 के ‘पीक वर्ष’ की तुलना में $15.5 बिलियन तक गिर गया है।
  • अफ्रीका में भारत का निवेश भी वर्ष 2019-20 में $3.2 बिलियन से घटकर वर्ष 2020-21 में $2.9 बिलियन रह गया। अप्रैल 1996 से मार्च 2021 तक 25 वर्षों में कुल निवेश अब केवल $70.7 बिलियन है, जो अफ्रीका में चीन के निवेश का लगभग एक-तिहाई ही है।

व्यापारिक साझेदार

  • भारत के शीर्ष पाँच व्यापारिक साझेदार; दक्षिण अफ्रीका, नाइजीरिया, मिस्र, केन्या और टोगो हैं।
  • भारत जिन देशों से सबसे अधिक आयात करता है, वे हैं दक्षिण अफ्रीका, नाइजीरिया, मिस्र, अंगोला और गिनी। अफ्रीका को भारत शीर्ष तीन निर्यात: खनिज ईंधन और तेल (प्रसंस्कृत पेट्रोलियम उत्पाद), दवा उत्पाद और वाहन करता है।
  • खनिज ईंधन, तेल (कच्चा तेल), मोती, कीमती या अर्ध-कीमती पत्थर, शीर्ष दो आयात हैं, जो अफ्रीका से भारतीय आयातों का 77 प्रतिशत से अधिक है।

वैश्विक प्रतिस्पर्द्धा

  • द्विपक्षीय आर्थिक संबंधों में नवीनतम प्रवृत्तियों का मूल्यांकन दो व्यापक घटनाक्रमों के आधार पर किया जाना चाहिये।
  • पहला, कोविड-19 ने अफ्रीका को भी व्यापक तौर पर प्रभावित किया है। मध्य जून तक, अफ्रीका में 5.2 मिलियन संक्रमण और 1,37,855 मौतें दर्ज़ की गईं हैं।
  • अफ्रीका की आबादी (1.3 बिलियन) के सापेक्ष अन्य जगहों (संयुक्त राज्य अमेरिका, यूरोप और भारत) को देखते हुए, इन आँकड़ों ने अंतर्राष्ट्रीय ध्यान को आकर्षित नहीं किया है, लेकिन अफ्रीकी इस महामारी से व्यापक तौर पर प्रभावित हुए हैं।
  • उक्त समस्याओं के बावजूद अफ्रीका ने इतना बुरा प्रदर्शन नहीं किया है। विशेषज्ञों का मानना है कि इसमें सामुदायिक नेटवर्क की ताकत और विस्तारित परिवार की निरंतर प्रासंगिकता एक महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती है।
  • दूसरा, हाल ही में ‘गेटवे हाउस अध्ययन’ अफ्रीका में बाहरी शक्तियों के जुड़ाव के बारे में बताया गया कि अफ्रीका ने 21वीं सदी के पहले दो दशकों में एक तीव्र ‘अंतर्राष्ट्रीय प्रतिस्पर्द्धा’ का अनुभव किया, जिसे ‘तीसरे संघर्ष’ के रूप में जाना जाता है।
  • अमेरिका, यूरोप और एशिया के एक दर्जन देशों ने महाद्वीप की राजनीतिक और सामाजिक चुनौतियों को हल करने में अफ्रीका की सहायता करने का प्रयास किया है और बदले में, अफ्रीका के बाज़ारों, खनिजों, हाइड्रोकार्बन और समुद्री संसाधनों से लाभ उठाने तथा अपने भू-राजनीतिक प्रभाव का विस्तार करने का प्रयास किया है।
  • पारंपरिक और नई शक्तियों, विशेष रूप से संयुक्त राज्य अमेरिका, यूरोपीय संघ (EU), चीन, जापान और भारत से संबंधित प्रतिस्पर्द्धा और प्रतियोगिता के मिश्रण ने सरकारों, मीडिया और शिक्षाविदों का ध्यान आकर्षित किया है।

कोविड-19 कालखंड

  • कोविड-19 कालखंड में चीन ने अपने टीकों के निर्यात को बढ़ाकर अपने पदचिह्न का विस्तार करने का सफलतापूर्वक प्रयास किया है। इससे भारत की ‘वैक्सीन डिप्लोमेसी’ को झटका लगा है। ऐसा देश में कोविड-19 की दूसरी लहर और यू.एस. से वैक्सीन के कच्चे माल की कमी के कारण हुआ है।
  • एशिया में भू-राजनीतिक तनाव और हिंद-प्रशांत क्षेत्र में अपनी स्थिति को मज़बूत करने की अनिवार्यता ने भारत को यूनाइटेड किंगडम, यूरोपीय संघ और क्वाड शक्तियों, विशेष रूप से अमेरिका के साथ अपने संबंधों पर ध्यान केंद्रित करने के लिये मज़बूर किया है।

भारत की भूमिका

  • पारस्‍परिक लाभ के लिये अफ्रीका और भारत को बेहतर तरीके से जुड़े रहना चाहिये। शायद यही प्रेरणा थी जिसने मई में संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद् में ‘अफ्रीका में संघर्ष और महामारी के बाद की रिकवरी’ पर खुली बहस में विदेश मंत्री एस. जयशंकर द्वारा किये गए हस्तक्षेप को महत्त्वपूर्ण माना।
  • राजनीतिक-राजनयिक आयामों को छूते हुए, उन्होंने खेद व्यक्त किया कि सुरक्षा परिषद् में अफ्रीका की आवाज़ को उसका ‘उचित हक’ नहीं दिया गया।
  • उन्होंने अफ्रीका में शांति स्थापना में, अफ्रीकी आतंकवाद विरोधी अभियानों को सहायता देने में, प्रशिक्षण और क्षमता बढ़ाने वाली सहायता के माध्यम से अफ्रीकी संस्थानों को योगदान देने में भारत की भूमिका पर प्रकाश डाला।
  • विदेश मंत्री ने आश्वासन दिया कि अफ्रीकी महाद्वीप में आर्थिक विकास के लिये भारत की सहायता जारी रहेगी। 

समय की माँग

  • वर्तमान समय, अवसर का लाभ उठाने तथा भारत की कुटनीतिक व आर्थिक जुड़ाव में अफ्रीका को उसकी प्राथमिक स्थिति में बहाल करने का है।
  • तीसरा भारत-अफ्रीका फोरम शिखर सम्मेलन वर्ष 2015 में आयोजित किया गया था। चौथा शिखर सम्मेलन, जो पिछले वर्ष से लंबित है, शीघ्र आयोजित किया जाना चाहिये, भले ही वह ‘वर्चुअल प्रारूप’ में ही क्यों न हो।
  • अफ्रीका को अनुदान और रियायती ऋण के रूप में नए वित्तीय संसाधन आवंटित किये जाने चाहिये, क्योंकि पिछले आवंटन लगभग पूरी तरह से समाप्त हो गए हैं।
  • नई प्रतिबद्धताओं के बिना, भारत की अफ्रीका नीति लगभग ‘खाली ईंधन टैंक पर चलने वाली कार’ की तरह ही होगी।

भावी राह

  • आर्थिक संबंधों को बढ़ावा देना उच्च प्राथमिकता की माँग करता है। उद्योग के प्रतिनिधियों को कोविड-19 कालखंड में उनकी शिकायतों और चुनौतियों के संबंध में सलाह लेनी चाहिये।
  • जैसा कि उक्त अध्ययन का तर्क है, ‘अफ्रीका के साथ साझेदारी को 21वीं सदी का रंग प्रदान करना’ आवश्यक है, अर्थात् स्वास्थ्य, अंतरिक्ष और डिजिटल प्रौद्योगिकियों में सहयोग विकसित करना।
  • अंत में, अफ्रीका में चीन की चुनौती को दूर करने के लिये, भारत और उसके अंतर्राष्ट्रीय सहयोगियों के बीच सहयोग में वृद्धि करना अनिवार्य है।
  • हाल के ‘भारत-यूरोपीय संघ शिखर सम्मेलन’ ने अफ्रीका को एक ऐसे क्षेत्र के रूप में चिह्नित किया है, जहाँ ‘साझेदारी आधारित दृष्टिकोण’ का पालन किया जाएगा।
  • इसी तरह, जब क्वाड शक्तियों का पहला व्यक्तिगत शिखर सम्मेलन वाशिंगटन में आयोजित किया जाता है, तो अफ्रीका के लिये एक मज़बूत साझेदारी योजना की घोषणा की जानी चाहिये। इसे समय पर तैयार करने के लिये ‘क्वाड प्लानर्स’ द्वारा अभी कार्य शुरू करने की आवश्यकता है।
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