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विकास कार्यक्रमों को लागू करने में सिविल सेवकों की भूमिका

(प्रारम्भिक परीक्षा: राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय महत्त्व की सामयिक घटनाएँ, लोकनीति)
(मुख्य परीक्षा, सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र- 2 व 4: संस्थागत एवं अन्य पक्षों की भूमिका, मानव संसाधनों से सम्बंधित सामाजिक क्षेत्र/सेवाओं के विकास और प्रबंधन से सम्बंधित विषय, शासन व्यवस्था, लोकतंत्र में सिविल सेवाओं की भूमिका, सिविल सेवा के लिये अभिरुचि तथा बुनियादी मूल्य, सार्वजनिक सेवा के प्रति समर्पण भाव)

संदर्भ

बजट सत्र 2021-22 के दौरान राष्ट्रपति के अभिभाषण पर चर्चा करते हुए प्रधानमंत्री द्वारा सार्वजनिक क्षेत्रक के निजीकरण का समर्थन किया गया।

पृष्ठभूमि

  • वर्ष 1950 और 60 के दशक में निजी क्षेत्रक के पास न तो संयंत्रों के लिये पूँजी जुटाने की क्षमता थी और न ही उनके प्रबंधन की। इस आलोक में देश में औद्योगीकरण को बढ़ावा देने के उद्देश्य से सार्वजनिक उपक्रमों को स्थापित करने की शुरुआत की गई।
  • अर्थव्यवस्था का सार्वजनिक नियंत्रण तात्कालिक परिस्थितियों के अनुरूप था। इन इकाईयों की स्थापना और प्रबंधन की ज़िम्मेदारी सिविल सेवकों के हाथों में सौंपना भी स्वाभाविक था। इस ज़िम्मेदारी के निर्वहन में कुछ सीमाओं के साथ इनकी महत्त्वपूर्ण भूमिका रही।
  • सार्वजनिक से निजी क्षेत्र में सार्वजनिक उपक्रमों के संक्रमण के लिये भी सिविल सेवकों की भूमिका महत्त्वपूर्ण है। इसके अतिरिक्त, वे निजीकरण को सफलता को सुनिश्चित करने में राज्य को सहायता प्रदान करते हैं।

संरचनात्मक रूपांतरण की आवश्यकता

भारत को $ 5 ट्रिलियन की अर्थव्यवस्था बनाने के लिये एक सुसंगत संरचनात्मक रूपांतरण तथा असाधारण क्रियान्वयन क्षमता की आवश्यकता है। इसके लिये निम्नलिखित कदम उठाए जाने अपरिहार्य हैं–

क्रोनी कैपिटलिज्म’ से निपटना

  • स्वतंत्रता उपरांत, राजनीतिक उत्तरजीविता हेतु राजनीतिक वर्ग के लिये आवश्यक था कि वे शक्तिशाली भू-स्वामी वर्ग तथा औद्योगिक पूँजीपतियों को ‘संतुष्ट’ रख सके।
  • ये कुलीन व्यावसायिक घराने तथा भू-स्वामी वर्ग देश के विकास कार्यों में सहयोगी भूमिका निभाने की बजाय स्वयं के व्यक्तिगतहितों को वरीयता देते हुए राज्य से सहायता की अपेक्षा करते थे।
  • इनकी ये भूमिका राज्य को विकास कार्यकर्मों को क्रियान्वित करने से विमुख करती थी। कई समकालीन विचारकों ने इन कुलीनों की भूमिका को ‘सार्वजनिक संसाधनों को हथियाने’ के रूप में चिह्नित किया। वर्तमान शासन के समक्ष ये चुनौती है कि क्या वे इस ‘पहेली’ को सुलझा पाएंगे?

विकास कार्यक्रमों का क्रियान्वयन

  • विकास कार्यक्रमों का क्रियान्वयन, मुख्यतः राजनीतिक निर्णय पर आधारित है। वस्तुतः आर्थिक कार्यकर्मों के क्रियान्वयन के लिये बाज़ार तंत्र का यथासंभव सहयोग लेना आवश्यक है, क्योंकि इस समय सार्वजनिक संपत्ति का निजीकरण संवाद का मुख्य विषय बना हुआ है। हालाँकि, बाज़ार तभी ठीक प्रकार से संचालित हो सकता है जब उसमे सामाजिक पहलू (जैसे विश्वास) भी शामिल हो।
  • विशेषतः औद्योगिक रूपांतरण के लिये, राज्य की संरचना तथा बाज़ार विनिमय में एक अनिवार्य पूरकता आवश्यक है तथा इसकी पूर्णता के लिये एक ‘सक्षम’ नौकरशाही प्रणाली महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा सकती है।
  • मैक्सवेबर ने भी तर्क दिया है कि बड़े पैमाने के पूँजीवादी उद्यमों का संचालन इस बात पर निर्भर करता है कि आधुनिक नौकरशाही व्यवस्था उसे किस प्रकार की सेवाएँ उपलब्ध कराती है।
  • उसने ज़ोर देकर कहा कि पूँजीवाद तथा नौकरशाही एक दूसरे से अंतर्संबंधित हैं। हालाँकि मैक्सवेबर की ये बात अनुचित लग सकती है क्योंकि नौकरशाही को सामान्यतया कार्यों में विलंब, अपारदर्शी व्यवस्था, अत्यधिक दस्तावेज़ केंद्रित, सेवाओं की अनुपलब्धता आदि के लिये ज़िम्मेदार ठहराया जाता रहा है।

नौकरशाही से संबंधित अवरोधों को हटाना

  • विभिन्न मत-मतांतरों के बावज़ूद इस तथ्य से इनकार नहीं किया जा सकता कि राज्य के लिये एक नौकरशाही व्यवस्था का होना नितांत आवश्यक है।
  • सरदार पटेल ने संविधान सभा में कहा था कि “ ये लोग (सिविल सेवक) एक साधन हैं। यदि हम इन्हें हटा देते हैं तो मुझे पूरे देश में सिर्फ अराजकता ही दिखती है”।
  • इसके अतिरिक्त, उन्होंने कहा किसेवा में स्वतंत्रता और सुरक्षा का भाव होना भी आवश्यक है। “ संघ नहीं रहेगा न ही अखंड भारत, यदि आपके पास सक्षम अखिल भारतीय सेवाएँ न हो, जिनके पास तार्किक तथ्यों के लिये स्वतंत्रता तथा उन तथ्यों के समर्थन के लिये सुरक्षा की भावना हो।”
  • उन्होंने स्पष्ट रूप में कहा कि राजनीतिक तथा स्थाई कार्यपालिका को संविधान द्वारा प्रदत्त कार्यों के निष्पादन के लिये एक ‘टीम’ के रूप में परस्पर सम्मान के साथ कार्य करना चाहिये।
  • उक्त आदर्शों से थोडा भी भटकाव राज्य की ‘निष्पादन क्षमता’ में कमी कर सकता है। चुनावी राजनीति विभिन्न प्रकार से राज्य के कार्यों को प्रभावित कर सकती है क्योंकि सत्ताधारी सरकारों तथा उसके समर्थकों के हित एक-दूसरे से अंतर्संबंधित होते हैं।
  • सत्ताधारी सरकारें अपने समर्थकों को विभिन्न माध्यमों, जैसे सब्सिडी, ऋण तथा नौकरियों के द्वारा संसाधनों को प्रत्यक्षतः वितरित करती हैं। इसके अतिरिक्त, बाज़ार शक्तियों को विभिन्न नियमों के द्वारा, आयातों पर प्रशुल्क या मात्रात्मक प्रतिबंध आरोपित कर नियंत्रित किया जा सकता हैं।
  • ये सभी कार्य नियम बनाने या सुझाव देने के लिये स्थापित नौकरशाही की निष्पक्षता को कमज़ोर करके हासिल किया जाता है। नौकरशाहों को स्थानांतरित करने की शक्ति राजनीतिक कार्यपालिका को मज़बूत बनाती है।
  • यदि राज्य विकास कार्यक्रमों को क्रियान्वित या निजीकरण को ही प्रोत्साहित करना चाहता है तो उसके लिये आवश्यक है कि स्थानांतरण संबंधित भ्रष्टाचार को नौकरशाही से समाप्त करना होगा।

कॉर्पोरेट संबद्धता     

  • सरकार के रूपांतरण-संबंधी कार्यकर्मों को पूरा करने के लिये नौकरशाही की कॉर्पोरेट से संबद्धता भी आवश्यक है।
  • कॉर्पोरेट संबद्धता, नौकरशाही की ऐसी क्षमता होती है जिसके द्वारा वह औपचारिक संगठन के भीतर व्यक्तिगत शक्तियों को सीमित करती है। यदि विभिन्न हितधारकों में सामंजस्य की कमी होगी तो राज्य अत्यधिक ‘शक्तिशाली’ हो जाएगा।

निष्कर्ष

दरअसल, सेवाओं की एक विस्तृत श्रृंखला प्रदान करने, कल्याणकारी कार्यक्रमों को लागू करने और गवर्नेंस से जुड़े मुख्य कार्यों को पूरा करने में नौकरशाही की महत्वपूर्ण भूमिका होती है।निष्कर्षतःसार्वजनिक संसाधनों को ‘नियंत्रित’ कर साझे विकास कार्यक्रमों केप्रतिस्थापन की मानसिकता पर नियंत्रण स्थापित करने के लिये आवश्यक है कि नौकरशाही की स्वायतता को बरकरार रखते हुए स्थानांतरण संबंधी दुरूपयोग को समाप्त किया जाए, जैसा कि संविधान में भी प्रस्तावित है।

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