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कम कार्बन उत्सर्जन वाले शहरों की दिशा में कदम

प्रारंभिक परीक्षा – शहरों में कार्बन उत्सर्जन
मुख्य परीक्षा : सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र 3  - बुनियादी ढाँचाः ऊर्जा, विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी- विकास एवं अनुप्रयोग और रोज़मर्रा के जीवन पर इसका प्रभाव।

संदर्भ:

  • कार्बन उत्सर्जन कम करने में शहरों की महत्वपूर्ण भूमिका

carbon-emission-cities

ऊर्जा-प्रणाली के संक्रमण में शहरों की भूमिका:

  • वर्ष 2020 में, शहरों द्वारा 29 ट्रिलियन टन कार्बन डाइऑक्साइड का उत्सर्जन किया गया।
  • कार्बन डाइऑक्साइड अन्य ग्रीनहाउस गैसों के साथ मिलकर स्वास्थ्य के लिए गंभीर खतरा पैदा करती है।
  • इसके द्वारा चरम मौसमी घटनाओं की भी उत्पत्ति होती है, जिससे जीवन, आजीविका, संपत्ति और सामाजिक नुकसान उठाना पड़ता है।
  • इसलिए, शहरों के द्वारा पर्यावरण पर पड़ने वाले प्रभाव को देखते हुए, कम कार्बन उत्सर्जन वाले शहर जलवायु परिवर्तन के प्रभावों को कम करने के लिए महत्वपूर्ण हैं।
  • स्वच्छ ऊर्जा-प्रणाली को ध्यान में रखकर बसाये गए शहर कार्बन डाइऑक्साइड उत्सर्जन को 74% तक कम कर सकता है।

विभिन्न रणनीतियाँ:

कार्बन उत्सर्जन को कम करने और अनुकूल बनाने की रणनीतियाँ भिन्न-भिन्न शहर की विशेषताओं के आधार पर अलग होती हैं।

  • पहले से ही स्थापित शहरों में ऊर्जा दक्षता बढ़ाने के लिए साइकिल और पैदल चलने वाले लोगों को प्रोत्साहन साथ ही सार्वजनिक परिवहन को बढ़ावा देने के लिए अपने बुनियादी ढांचे को फिर से तैयार और पुनर्व्यवस्थित किया जा सकता है।
  • तेजी से विस्तृत होते शहर आवास और कार्यस्थल को व्यवस्थित करने का प्रयास कर सकते हैं – इसके लिए शहर की योजना इस प्रकार बनायी जा सकती है कि कार्यस्थल आवासीय परिसरों के करीब आ जाएं, इस प्रकार परिवहन ऊर्जा की मांग कम हो सकती है।
  • नए और उभरते शहरों में उत्सर्जन को कम करने की सबसे अधिक क्षमता पाई जाती है - ऊर्जा-कुशल सेवाओं और बुनियादी ढांचे का उपयोग करके, और एक जन-केंद्रित शहरी डिजाइन का निर्माण संभव है।

चुनौतियां और चिंताएं:

  • ऊर्जा तंत्र, प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से आजीविका, स्थानीय आर्थिक विकास और विविध क्षेत्रों में लगे लोगों के सामाजिक-आर्थिक कल्याण से जुड़ी हैं। 
  • जिसके कारण सभी के लिए एक जैसी सामाजिक और पर्यावरणीय रूप से न्यायोचित परिवर्तन सुनिश्चित करना संभव नहीं है। 
  • जैसे नवीकरणीय ऊर्जा स्रोतों में परिवर्तन विकासशील अर्थव्यवस्थाओं और क्षेत्रों में जीवाश्म ईंधन पर निर्भर रहने वाले लोगों या समुदायों के समूहों को असमान रूप से प्रभावित कर सकता है।
  • अन्य चिंताओं में बड़े पैमाने पर नवीकरणीय ऊर्जा परियोजनाओं के लिए विस्थापन, गरीबी, कुछ समुदायों का हाशिए पर होना, लिंग प्रभाव और आजीविका के लिए कोयले पर निर्भरता आदि शामिल हैं।

आगे की राह

  • इस परिवर्तन के लिए नवीकरणीय और जीवाश्म ईंधन दोनों दिशाओं में कदम उठाना होगा।
  • इसमें जीवाश्म ईंधन को चरणबद्ध तरीके से समाप्त करना और ऊर्जा मिश्रण में नवीकरणीय ऊर्जा की हिस्सेदारी बढ़ाना और कार्बन कैप्चर और स्टोरेज (सीसीएस) तकनीकों का उपयोग करना शामिल होगा।
  • इसके अलावा 'अवॉइड, शिफ्ट, इम्प्रूव' फ्रेमवर्क का उपयोग करके सामग्री और ऊर्जा की मांग को कम करना और धीरे-धीरे अक्षय ऊर्जा के साथ जीवाश्म ईंधन की मांग को प्रतिस्थापित करना होगा।
  • ऊर्जा क्षेत्र में अवशिष्ट उत्सर्जन के लिए कार्बन-डाइऑक्साइड हटाने (सीडीआर) की तकनीकों को लागू करना होगा। 
  • शहरीकरण, राष्ट्रीय संदर्भों और संस्थागत क्षमताओं के विभिन्न चरणों में निम्न-कार्बन ऊर्जा प्रणालियों में परिवर्तन सुनिश्चित करने के लिए रणनीतिक और पूर्व-निर्धारित प्रयासों की आवश्यकता है।
  • शहरो को शासन और नियोजन, व्यवहारिक बदलाव प्राप्त करने, प्रौद्योगिकी और नवाचार को बढ़ावा देने और संस्थागत क्षमता निर्माण के लिए निर्देशित करने की जरुरत है।
  • ऊर्जा और पर्यावरणीय असमानताओं को दूर करने के लिए एक व्यापक दृष्टिकोण अपनाना होगा।
  • इसमें शमन और अनुकूलन प्रतिक्रियाएं शामिल हैं जो ऊर्जा से सम्बंधित शासन और निर्णय लेने, ऊर्जा दक्षता को बढ़ावा देने, जलवायु निवेश को बढ़ाने और वैकल्पिक ज्ञान (स्वदेशी और स्थानीय जीवित अनुभवों सहित) में कई हितधारकों को शामिल करती हैं।
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