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स्वच्छ भारत मिशन 2.0 और ठोस अपशिष्टों का निपटान

(प्रारंभिक परीक्षा-  राष्ट्रीय महत्त्व की सामयिक घटनाएँ, पर्यावरणीय पारिस्थितिकी)
(मुख्य परीक्षा, सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र- 2 व 3: स्वास्थ्य, सरकारी नीतियों और विभिन्न क्षेत्रों में विकास के लिये हस्तक्षेप व उनके अभिकल्पन तथा कार्यान्वयन के कारण उत्पन्न विषय, संरक्षण, पर्यावरण प्रदूषण और क्षरण, पर्यावरण प्रभाव का आकलन)

संदर्भ

हाल ही में, स्वच्छ भारत मिशन (एस.बी.एम.) 2.0 से सम्बंधित दिशा-निर्देश जारी किये गए। ये दिशा-निर्देश वर्ष 2014 में प्रारंभ एस.बी.एम. के उद्देश्यों को आगे ले जाने में महत्त्वपूर्ण है क्योंकि इसमें ‘ठोस अपशिष्ट प्रबंधन’ से सम्बंधित एक महत्त्वपूर्ण आयाम जोड़ा गया है।

ठोस अपशिष्ट प्रबंधन से संबंधित नवीनतम दिशा-निर्देश

  • नवीनतम दिशा-निर्देश कचरे को कुशलतापूर्वक एकत्रित करने और उसके परिवहन जैसे मुद्दों से आगे की रूपरेखा निर्धारित करता है। इसमें मार्च 2023 से पहले शहरों के डंपसाइटों में जमा ‘पुराने कचरे के उपचार व प्रसंस्करण’ के लिये बजटीय सहायता का प्रावधान है।
  • इन दिशा-निर्देशों में गीले व सूखे कचरे तथा प्लास्टिक, निर्माण (Construction) व विध्वंस (Demolition) से उत्पन्न कचरे के प्रसंस्करण पर मुख्य रूप से ध्यान केंद्रित किया गया है।

भारत में अपशिष्ट की स्थिति व समस्याएँ

  • एस.बी.एम. 2.0 के दिशा-निर्देशों के अनुसार भारत में शहरी क्षेत्रों से उत्पन्न कचरे की कुल वार्षिक मात्रा लगभग 4.8 करोड़ टन है। इसमें से केवल 25% को ही संसाधित किया जा रहा है, जबकि शेष हिस्से को लैंडफिल में डंप कर दिया जाता है। वर्तमान में लगभग 72 करोड़ टन से अधिक गैर-संसाधित कचरा डंप है।
  • वित्त पोषण व तकनीकी ज्ञान की कमी के कारण कई राज्यों के शहरी स्थानीय निकायों (यू.एल.बी.) में अपशिष्ट प्रसंस्करण प्रणाली स्थापित करने में विलंब हुआ। इससे कई साइटों पर कचरे की डंपिंग के कारण नए प्रसंस्करण प्रणालियों की स्थापना के लिये स्थान की समस्या उत्पन्न हो गई है। अतः पहले इन कचरों को ‘जैविक उपचार’ (Bioremediation) के माध्यम से संसाधित करने की आवश्यकता है।
  • पुराने अपशिष्टों के ‘बायोरेमेडिएशन’ से तात्पर्य कचरे के पुराने ढेर (Landfills) के निराकरण की प्रक्रिया, बायो-अर्थ (मृदा को समृद्ध करने के लिये) की पुनर्प्राप्ति में  उपयोगी सामग्रियों को अलग करने के साथ-साथ ‘अपशिष्ट-व्युत्पन्न ईंधन’ (Refuse-Derived Fuel) से है।

अपशिष्ट-व्युत्पन्न ईंधन (Refuse-Derived Fuel)

  • अपशिष्ट-व्युत्पन्न ईंधन (RDF) विभिन्न प्रकार के कचरों, जैसे- नगरपालिका ठोस अपशिष्ट (MSW), औद्योगिक या वाणिज्यिक अपशिष्ट के दहनशील घटकों से प्राप्त होने वाला ईंधन है। इसका प्रयोग सीमेंट भट्टियों में हीटिंग के लिये किया जा सकता है।
  • आर.डी.एफ. में मुख्यतः गैर-पुनर्चक्रणीय प्लास्टिक (पी.वी.सी. को छोड़कर), पेपर कार्डबोर्ड, लेबल और सामानों की पैकिंग में प्रयुक्त सामग्रियों (गत्ते, दफ्ती, पेपर और प्लाईवुड आदि) जैसे कचरों के दहनशील घटक शामिल होते हैं। 

एस.बी.एम. 2.0 और वित्तपोषण

  • एस.बी.एम. 2.0 के लिये कुल वित्तपोषण (₹1.41 लाख करोड़) का एक बड़ा हिस्सा ठोस अपशिष्ट प्रबंधन के लिये है। इसका उद्देश्य सतत विकास लक्ष्यों को प्राप्त करने के क्रम में सभी शहरों को ‘कचरा मुक्त’ और ‘जल सुरक्षित’ बनाना है।
  • इस मिशन में सभी यू.एल.बी. में नए अपशिष्ट प्रसंस्करण सुविधाओं और जैव उपचार परियोजनाओं को स्थापित करने के लिये वित्तीय सहायता प्रदान की जाएगी।
  • ठोस अपशिष्ट प्रबंधन परियोजनाओं के लिये भारत सरकार से प्राप्त वित्तीय सहायता के अतिरिक्त परियोजना की शेष लागत का भुगतान 15वें वित्त आयोग के अनुदान से किया जाएगा। 
  • एस.बी.एम. 2.0 केवल अपशिष्ट प्रसंस्करण सुविधाओं की स्थापना के लिये धन का आवंटन करता है। इसमें एस.बी.एम. की तरह कचरा संग्रहण के लिये वाहन की खरीद, कचरे के स्रोत पर पृथक्करण या संग्रहण के लिये कूड़ेदान (बिन) व परिवहन प्रणाली के आधुनिकीकरण संबंधी पहलू शामिल नहीं हैं।

ठोस अपशिष्ट और सम्बंधित तकनीक 

  • भारत में उत्पन्न होने वाले नगरपालिका ठोस अपशिष्ट में ज्यादातर हिस्सा कार्बनिक कचरे का होता है। ‘ठोस अपशिष्ट प्रबंधन नियम, 2016’ ठोस कचरे के वैज्ञानिक निपटान से संबंधित है।
  • ठोस अपशिष्टों को धातु अपशिष्ट (मेटल बॉडी, मेटल कंटेनर आदि), जैविक रूप से निम्नीकरणीय अपशिष्ट (खाद्य पदार्थ, सब्जियाँ, फल, घास आदि), जैविक रूप से अनिम्नीकरणीय अपशिष्ट (प्लास्टिक, पैकेजिंग समग्री, पाउच, बोतल आदि) और अक्रिय अपशिष्टों (काँच, पत्थर आदि) में पृथक करते हैं।
  • कचरे के जैव-अपघटनीय घटक को अवायवीय वातावरण में विघटित किया जाता है, जिसे सामान्यत: ‘जैव-गैसीकरण’ कहते है। इस प्रक्रिया में बायोगैस मुक्त होती है।
  • पॉलिमर कचरे में प्लास्टिक और सैनिटरी अपशिष्ट आदि शामिल होते हैं, जिनका निपटान ‘पायरोलिसिस’ और ‘प्लाज़्मा गैसीकरण’ प्रक्रियाओं से किया जाता है।
  • प्लाज़्मा आर्क गैसीकरण प्रक्रिया (Plasma Arc Gasification) ठोस अपशिष्टों के उपचार व निपटान का एक पर्यावरण अनुकूल विकल्प है। 
  • नगरपालिका ठोस अपशिष्ट के प्रसंस्करण से प्राप्त गैर-संघनित ‘सिनगैस’ और ‘क्रूड पायरोलिसिस ऑइल’ का उपयोग हीटिंग उद्देश्यों के लिये किया जाता है।

संभावनाएँ 

  • डंपसाइटों को प्रसंस्करण स्थलों के रूप में विकसित करने से देश के सभी यू.एल.बी. से उत्पन्न कचरे से प्रति वर्ष 72 लाख टन जैविक खाद उत्पादित होने की संभावना है। इससे रासायनिक उर्वरकों के आयात में कमी आएगी तथा सब्सिडी की बचत होगी।
  • गीले कचरे से प्राप्त जैविक कंपोस्ट (Organic Compost) कुल कचरे का लगभग 60% होता है। इसका उपयोग मृदा की गुणवत्ता बढ़ाने में किया जा सकता है और यह देश के उर्वरक माँग का लगभग 10-12% की पूर्ति कर सकता है। 

निष्कर्ष

ठोस अपशिष्ट प्रबंधन के मामले में एस.बी.एम. की आंशिक सफलता का प्रमुख कारण वित्तपोषण की कमी रही है। एस.बी.एम. 2.0 में परियोजना लागत के एक बड़े हिस्से का भुगतान किया जाएगा, अत: अपनी आरक्षित निधियों के प्रयोग से यू.एल.बी. इनसे संबंधित परियोजनाओं को प्रारंभ कर सकती हैं। नगरपालिकाओं में ‘बायोरेमेडिएशन’ से संबंधित परियोजनाओं को मूर्त रूप देने में एस.बी.एम. 2.0 महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है। इससे मार्च 2023 तक डंपसाइटों में जमा पुराने कचरे के निपटान के लक्ष्य को प्राप्त किया जा सकता है।

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