शॉर्ट न्यूज़: 06 अगस्त, 2022
लोकपर्व हरेला
क्रैबे रोग
लोकपर्व हरेला
चर्चा में क्यों
हाल ही में, उत्तराखंड के कुमाऊं क्षेत्र में ‘हरेला’ लोकपर्व धूमधाम से मनाया गया।
प्रमुख बिंदु
- हरेला का अर्थ ‘हरे रंग का दिन’ होता है। यह हरियाली, शांति, समृद्धि और पर्यावरण संरक्षण से जुड़ा पर्व है।
- यह भगवान शिव और पार्वती की पूजा करने के लिये श्रावण मास में मनाया जाता है।
- इस पर्व के अवसर पर भगवान शिव और देवी पार्वती की मिट्टी की मूर्तियाँ बनाई जाती हैं, जिन्हें डिकारे (Dikare) के नाम से जाना जाता है।
- यह पर्व बरहनाजा प्रणाली (12 प्रकार की फसलों) से भी जुड़ा हुआ है, जो इस क्षेत्र की फसल विविधीकरण तकनीक है।
क्रैबे रोग
चर्चा में क्यों
वर्तमान में क्रैबे रोग से प्रभावित नवजात शिशुओं की संख्या में निरंतर वृद्धि हो रही है।
प्रमुख बिंदु
- यह एक आनुवंशिक विकार है जो गंभीर न्यूरोलॉजिकल स्थितियों का कारण बनता है। यह गैलेक्टोसेरेब्रोसिडेज़ नामक एंजाइम के उत्पादित न होने के कारण होता है।
- यह रोग स्थायी आनुवंशिक उत्परिवर्तन अर्थात् डी.एन.ए. अनुक्रम में परिवर्तन करके उत्पन्न होता है।
- यह रोग एक शिशु में तंत्रिका तंत्र के चारों ओर अपर्याप्त माइलिन (एक सुरक्षात्मक परत) के कारण होता है। विदित है कि माइलिन, मस्तिष्क और रीढ़ की हड्डी में संकेतों के सुचारू संचरण में सहायता करता है।
- इस सुरक्षात्मक आवरण की क्षति तंत्रिका तंत्र में कोशिकाओं की मृत्यु का कारण बन सकती है और शरीर के अंगों के सामान्य कार्यसंचालन को प्रतिकूल रूप से प्रभावित करती है।
- यह रोग मस्तिष्क में असामान्य कोशिकाओं (ग्लोबोइड्स) के कारण भी हो सकता है। ये असामान्य कोशिकाएँ एक से अधिक नाभिक वाली बड़ी कोशिकाएँ होती हैं।
- इस रोग के मामले अधिकतर नवजात शिशुओं से लेकर 12 महीने की उम्र के बीच देखे जाते हैं।
- वर्तमान में क्रैबे रोग का कोई इलाज उपलब्ध नहीं है। हालांकि, 24 घंटे के भीतर नवजात की जाँच करने पर इसका निदान होने की स्थिति को उपचार योग्य ही माना जाता है।