शॉर्ट न्यूज़: 07 फ़रवरी, 2022
वनों की परिभाषा
चिल्का झील में बढ़ती समुद्री घास
गोल्डन लंगूर
खादी प्राकृतिक पेंट
वनों की परिभाषा
चर्चा में क्यों
हाल ही में, पर्यावरण, ‘वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय’ ने वन स्थिति रिपोर्ट के तहत वनों की परिभाषा के संदर्भ में सूचित किया है।
प्रमुख बिंदु
- क्योटो प्रोटोकॉल के निर्णय-19 के अनुसार, देश की क्षमताओं और सामर्थ्य के आधार पर किसी भी देश द्वारा वनों को निम्नानुसार परिभाषित किया जा सकता है -
- चंदवा वन या वृक्ष घनत्व का प्रतिशत- 10 से 30% के मध्य ( भारत में 10%)
- न्यूनतम आच्छादित क्षेत्र- 0.05-1.0 हेक्टेयर का क्षेत्र
- वृक्षों की न्यूनतम ऊँचाई- परिपक्वता की स्थिति में 2-5 मीटर (भारत में 2 मीटर) न्यूनतम ऊँचाई तक पहुँचने की क्षमता।
- भारत में उपरोक्त तीन मानदंडों के आधार पर वनों को परिभाषित किया गया है, जिसे ‘जलवायु परिवर्तन पर संयुक्त राष्ट्र ढाँचा अभिसमय’ (UNFCCC) तथा ‘खाद्य एवं कृषि संगठन’ (FAO) द्वारा रिपोर्टिंग के लिये स्वीकार किया जाता है।
- स्वामित्व एवं कानूनी मानकों पर ध्यान ना देते हुए एक हेक्टेयर से अधिक क्षेत्र, जिस पर 10% से अधिक वृक्षावरण है, को वनाच्छादित क्षेत्र के रूप में परिभाषित किया गया है। इसमें बागान, बाँस व ताड़ के वृक्ष भी शामिल हैं। हालाँकि, ऐसा आवश्यक नहीं है कि ये भूमि अभिलिखित वन क्षेत्र हो
- हाल ही में, प्रकाशित अखिल भारतीय वन स्थिति रिपोर्ट (ISFR)-2021 में वनावरण के आँकड़ों को ‘आंतरिक अभिलिखित वन क्षेत्र’ (प्राकृतिक वन क्षेत्र एवं वन विभाग द्वारा वृक्षारोपण) तथा ‘बाह्य अभिलिखित वन क्षेत्र’ (आम के बाग, नारियल के बागान, कृषि-वानिकी के अंतर्गत ब्लॉक वृक्षारोपण) के रूप में वर्गीकृत किया गया है।
- अति सघन वन (Very Dense Forest) को वर्गीकृत करने के लिये उपग्रह डाटा को भारतीय वन सर्वेक्षण विभाग के फील्ड इन्वेंट्री डेटा, ग्राउंड ट्रुथिंग डाटा और उच्च रिज़ॉल्यूशन उपग्रह इमेजरी जैसे सहायक डाटा का उपयोग किया जाता है।
चिल्का झील में बढ़ती समुद्री घास
चर्चा में क्यों
हाल ही में, चिल्का विकास प्राधिकरण द्वारा जारी सर्वेक्षण के अनुसार, चिल्का झील में उपस्थित समुद्री घास के क्षेत्र में 33% की वृद्धि दर्ज की गई है। हालाँकि, वर्तमान में विश्व भर में समुद्री घास क्षेत्र में गिरावट देखी गई है।
सर्वेक्षण के प्रमुख बिंदु
- चिल्का विकास प्राधिकरण वार्षिक आधार पर झील में वनस्पति और जीव सर्वेक्षण करता है।
- वर्तमान में समुद्री घास झील के 172 वर्ग किमी. क्षेत्र में विस्तृत है, गत वर्ष यह क्षेत्र 169 वर्ग किमी. था।
- चिल्का झील में समुद्री घास की पाँच प्रजातियाँ; होलोड्यूल यूनीनर्विस, होलोड्यूल पिनिफोलिया, हेलोफिला ओवलिस, हेलोफिला ओवाटा और हेलोफिला बेकारी दर्ज की गईं।
- साथ ही, इस वर्ष झील में 156 इरावदी डॉल्फ़िन भी देखीं गईं।
समुद्री घास
- समुद्री घास क्षेत्र जल पारिस्थितिकी तंत्र के अच्छे स्वास्थ्य के जैव-संकेतकों में से एक हैं। अतः झील में समुद्री घास की वृद्धि इसके स्वच्छ व बेहतर स्वास्थ्य को प्रदर्शित करती है।
- समुद्री घास स्थल कार्बन पृथक्करण (Carbon Sequestration) के माध्यम से जल शोधन में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं और कार्बन को समुद्र या नदी के तल में संगृहीत करते हैं।
- किसी जल निकाय में इनकी उपस्थिति से जल की स्वच्छता, लवणता व पोषक तत्त्वों तथा जल प्रदूषण के स्तर को मापा जा सकता है।
- समुद्री घास स्थल अत्यधिक उत्पादक होते हैं, यह पारिस्थितिक तंत्र और आर्थिक रूप से महत्त्वपूर्ण मछलियों के भोजन, प्रजनन और आश्रय स्थल के रूप में कार्य करते हैं।
चिल्का झील
- चिल्का झील (ओडिशा) एशिया का सबसे बड़ा तथा विश्व का दूसरा सबसे बड़ा लैगून है।
- यह भारत की पहली आर्द्रभूमि है, जिसे वर्ष 1981 में रामसर कन्वेंशन के अंतर्गत अंतर्राष्ट्रीय महत्त्व की आर्द्रभूमि के रूप में नामित किया गया था।
- चिल्का झील में पाई जाने वाली मुख्य जीव प्रजातियाँ हैं-
- इरावदी डॉल्फ़िन- यह चिल्का झील में निवास करने वाली प्रमुख प्रजाति है। वर्तमान में यह एशिया में केवल चिल्का से लेकर इंडोनेशिया तक ही पाई जाती है।
- प्रवासी पक्षी- चिल्का झील शीतकाल के दौरान भारतीय उपमहाद्वीप में प्रवासी पक्षियों के लिये सबसे बड़ा आगमन स्थल है। यहाँ कैस्पियन सागर, बैकाल झील, अरल सागर, रूस के दूरदराज के क्षेत्रों, मंगोलिया, मध्य व दक्षिण पूर्व एशिया, लद्दाख और हिमालय से प्रवासी जलपक्षी आते हैं।
- यूरेशियन ऊदबिलाव- यह मांसाहारी शिकारी होते हैं। इस वर्ष सर्वेक्षण में पहली बार चिल्का झील के दक्षिणी क्षेत्र में यूरेशियन ऊदबिलाव का एक समूह देखा गया।
गोल्डन लंगूर
चर्चा में क्यों
पश्चिमी असम के बोंगाईगाँव ज़िले में स्थित ‘काकोइजाना वन क्षेत्र’ को एक वन्यजीव अभयारण्य का दर्जा देने के राज्य सरकार के निर्णय का विरोध किया जा रहा है। इस क्षेत्र को गोल्डन लंगूर का प्राकृतिक आवास माना जाता है।
गोल्डन लंगूर
- इसका वैज्ञानिक नाम ‘ट्रेचिपिथेकस गीई’ (Trachypithecus Geei) है। यह केवल पश्चमी असम और भूटान की काला पर्वत के तलहटी क्षेत्र में पाया जाता है। यह भारत में में खोजे गए प्राइमेट्स में से एक है तथा यह विश्व के 25 सर्वाधिक संकटग्रस्त प्राइमेट्स में शामिल है।
- भारत में चक्रशिला वन्यजीव अभयारण्य (असम) गोल्डन लंगूर के लिये दूसरा संरक्षित आवास है।
- विदित है कि गोल्डन लंगूर के संरक्षण हेतु वर्ष 2011-12 में ‘असम राज्य चिड़ियाघर’ में ‘गोल्डन लंगूर संरक्षण परियोजना’ (GLCP) शुरू की गई थी।
संरक्षण की स्थिति
- आई.यू.सी.एन (IUCN) की रेड लिस्ट : संकटग्रस्त (Endangered)
- वन्यजीव संरक्षण अधिनियम, 1972 : अनुसूची- I
- वन्य जीवों और वनस्पतियों की लुप्तप्राय प्रजातियों में अंतर्राष्ट्रीय व्यापार पर कन्वेंशन (CITES) : परिशिष्ट- I
खादी प्राकृतिक पेंट
चर्चा में क्यों
जयपुर स्थित कुमारप्पा नेशनल हैंडमेड पेपर इंस्टीट्यूट ने गाय के गोबर से खादी प्राकृतिक पेंट विकसित किया है।
प्रमुख बिंदु
- खादी प्राकृतिक पेंट (रंग) का परीक्षण गाज़ियाबाद स्थित नेशनल टेस्ट हाउस, मुंबई स्थित नेशनल टेस्ट हाउस और दिल्ली स्थित श्री राम इंस्टीट्यूट ऑफ इंडस्ट्रियल रिसर्च में सफलतापूर्वक किया गया है।
- गाय का गोबर प्राकृतिक पेंट के निर्माण में उपयोग किया जाने वाला एक प्रमुख घटक है। खादी प्राकृतिक पेंट पर्यावरण के अनुकूल और लागत प्रभावी है।
- विदित है कि कुमारप्पा नेशनल हैंडमेड पेपर इंस्टीट्यूट, खादी और ग्रामोद्योग आयोग (KVIC) की एक स्वायत्त इकाई है।
आर्थिक लाभ
- इस पेंट के निर्माण से स्थानीय विनिर्माण, स्थायी रोज़गार, किसानों और गौ आश्रय गृहों के लिये अतिरिक्त राजस्व की प्राप्ति होगी। इससे ग्रामीण अर्थव्यवस्था में सुधार होगा और पलायन को नियंत्रित करने में मदद मिलेगी।
- उल्लेखनीय है कि प्रधानमंत्री रोज़गार सृजन कार्यक्रम (PMEGP) योजना के तहत एम.एस.एम.ई. मंत्रालय प्राकृतिक पेंट निर्माण इकाइयों की स्थापना को बढ़ावा दे रहा है।