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जलवायु परिवर्तन पर अंतर-सरकारी पैनल की रिपोर्ट

(प्रारंभिक परीक्षा:  पर्यावरणीय पारिस्थितिकी, जैव-विविधता और जलवायु परिवर्तन संबंधी सामान्य मुद्दे)
(मुख्य परीक्षा, प्रश्नपत्र 3: संरक्षण, पर्यावरण प्रदूषण और क्षरण, पर्यावरण प्रभाव का आकलन।)

संदर्भ

जलवायु परिवर्तन पर अंतर-सरकारी पैनल (Intergovernmental Panel on Climate Change-IPCC) अपने छठे आकलन रिपोर्ट का पहला भाग जारी करेगा। इस संस्था द्वारा आवधिक स्थिति की जाँच रिपोर्ट अब पृथ्वी की जलवायु की स्थिति का सबसे व्यापक रूप से स्वीकृत वैज्ञानिक दृष्टिकोण बन गया है।

रिपोर्ट की पृष्ठभूमि

  • विगत कुछ सप्ताह में विश्व ने यूरोप और चीन में अप्रत्याशित बाढ़ की घटनाएँ देखी हैं। इसमें संयुक्त राज्य अमेरिका में रिकॉर्ड हीट वेव्स तथा साइबेरिया, तुर्की और ग्रीस में घातक वनाग्नि की घटनाएँ भी शामिल हैं।
  • इस तरह के चरम मौसम की घटनाओं की आवृत्ति और तीव्रता में निरंतर वृद्धि की निराशाजनक भविष्यवाणियों के बीच वैश्विक उष्मन के कारण वैज्ञानिक पृथ्वी की जलवायु की सबसे व्यापक स्वास्थ्य जाँच प्रस्तुत करेंगे।
  • रिपोर्ट का दूसरा और तीसरा भाग, जलवायु परिवर्तन के संभावित प्रभावों और सबसे बुरे प्रभावों को रोकने के लिये आवश्यक कदमों से संबंधित है, जो आगामी वर्ष जारी होगा।

मूल्यांकन रिपोर्ट

  • वर्ष 1988 में आई.पी.सी.सी. की स्थापना के उपरांत, जो विगत पाँच मूल्यांकन रिपोर्ट्स सामने आई हैं, उन्होंने अंतर्राष्ट्रीय जलवायु परिवर्तन वार्ताओं का आधार बनाया है।
  • वैश्विक तापमान में वृद्धि को कम करने के लिये विगत तीन दशकों में विश्व के सभी देश  कार्रवाई कर रहे हैं।
  • उनके मूल्य को विश्व स्तर पर स्वीकार किया गया है, और चौथी मूल्यांकन रिपोर्ट, जो वर्ष 2007 में आई, ने आई.पी.सी.सी. को नोबेल शांति पुरस्कार प्रदान किया।
  • ये सभी रिपोर्टे वर्ष 1990 से स्पष्ट कर रही हैं कि 1950 के दशक के पश्चात् से वैश्विक सतह के तापमान में वृद्धि सबसे अधिक मानवीय गतिविधियों के कारण हुई है।
  • यदि तापमान में 2 डिग्री सेल्सियस से अधिक की वृद्धि हुई, तो 19वीं सदी की तुलना में यह पृथ्वी को मनुष्यों व हज़ारों अन्य पौधों और जानवरों की प्रजातियों के रहने के लिये अत्यंत कठिन स्थान बना देगा।

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नई रिपोर्ट

  • नवीनतम उपलब्ध वैज्ञानिक साक्ष्यों को शामिल करने के अतिरिक्त, छठी आकलन रिपोर्ट सरकार को नीतिगत निर्णय लेने में मदद करने के साथ-साथ अधिक कार्रवाई योग्य जानकारी प्रदान करने में मदद करेगी। इसमें शामिल हैं-

1. क्षेत्रीय फोकस

  • एक क्षेत्र से दूसरे क्षेत्र में जलवायु परिवर्तन के अपेक्षित प्रभावों में व्यापक भिन्नता होने की संभावना है, जैसा कि स्वयं मूल्यांकन रिपोर्ट्स द्वारा स्वीकार किया गया है।
  • छठी आकलन रिपोर्ट क्षेत्रीय आकलन पर अधिक केंद्रित है। इसलिये, यह उम्मीद की जाती है कि यह रिपोर्ट संभवतः बताएगी कि बंगाल की खाड़ी क्षेत्र में समुद्र के स्तर में वृद्धि के परिदृश्य क्या हैं? तथा वैश्विक औसत समुद्र-स्तर में वृद्धि होने की संभावना क्या?

2. चरम मौसमी घटनाएँ

  • चरम मौसम की घटनाओं पर अधिक ध्यान देने की आवश्यकता है। हालाँकि, चरम मौसमी घटनाओं को जलवायु परिवर्तन से जोड़ना हमेशा बहस का विषय रहा है।
  • यद्यपि, विगत कुछ वर्षों में, ‘एट्रिब्यूशन विज्ञान’ में महत्त्वपूर्ण प्रगति हुई है, जिससे वैज्ञानिकों को यह बताने में सफल हुए हैं कि  क्या कोई विशेष घटना जलवायु परिवर्तन का परिणाम थी?

3. महानगर

  • घनी आबादी वाले मेगा-शहरों को जलवायु परिवर्तन के प्रभावों के लिये सबसे अधिक संवेदनशील माना जाता है।
  • छठी आकलन रिपोर्ट से महानगर और बड़ी शहरी आबादी पर जलवायु परिवर्तन के प्रभावों के साथ-साथ प्रमुख बुनियादी ढाँचे के लिये विशिष्ट परिदृश्य पेश करने की संभावना है।

 4. सहयोग

  • आई.पी.सी.सी. से अपेक्षा की जाती है कि वह स्थिति की अधिक एकीकृत समझ, क्रॉस-लिंक साक्ष्य प्रस्तुत करेगा।
  • इसके अतिरिक्त, विभिन्न विकल्पों या रास्तों के मध्य समझौतों पर चर्चा करने के साथ-साथ देशों द्वारा जलवायु परिवर्तन कार्रवाई के सामाजिक निहितार्थों को भी कवर करेगा।

रिपोर्ट का महत्त्व

  • जलवायु परिवर्तन पर बातचीत और कार्रवाई को निर्देशित करने में आई.पी.सी.सी. की मूल्यांकन रिपोर्ट बेहद प्रभावशाली रही है।
  • पहली मूल्यांकन रिपोर्ट ने ‘जलवायु परिवर्तन पर संयुक्त राष्ट्र फ्रेमवर्क कन्वेंशन’ की स्थापना की थी, जो एक अम्ब्रेला समझौता है, जिसके तहत प्रत्येक वर्ष जलवायु परिवर्तन पर अंतर्राष्ट्रीय वार्ता होती है।
  • दूसरी आकलन रिपोर्ट वर्ष 1997 के क्योटो प्रोटोकॉल का आधार थी, जो विगत वर्ष तक चला तथा पाँचवीं आकलन रिपोर्ट, जो वर्ष 2014 में सामने आई, ने पेरिस समझौते का मार्ग प्रशस्त किया।

भावी राह

  • वैश्विक जलवायु संरचना अब पेरिस समझौते द्वारा शासित है, जिसने इस वर्ष से क्योटो प्रोटोकॉल का स्थान लिया है।
  • यह सुझाव देने के लिये पर्याप्त है कि वैश्विक जलवायु कार्रवाई 2 डिग्री सेल्सियस से नीचे के तापमान को बनाए रखने की आवश्यकता है, जैसा कि पेरिस समझौते के तहत अनिवार्य भी है।

निष्कर्ष

निकट भविष्य में आई.पी.सी.सी. की रिपोर्ट तापमान में वृद्धि के अस्वीकार्य स्तर तक रोकने की दिशा में सबसे महत्त्वपूर्ण चेतावनी के रूप में कार्य कर सकती है। साथ ही, सरकारों को और अधिक तत्काल कार्रवाई करने के लिये भी प्रेरित कर सकती है।

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