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प्रत्यक्ष विदेशी निवेश नीति में संशोधन : कारण व प्रभाव

(प्रारंभिक परीक्षा- आर्थिक व सामाजिक विकास)
(मुख्य परीक्षा प्रश्नपत्र-3: निवेश मॉडल, नीतियों में परिवर्तन तथा प्रभाव, महत्त्व व आवश्यकता)

चर्चा में क्यों ?

हाल ही में, भारत सरकार ने प्रत्यक्ष विदेशी निवेश नीति (FDI Policy) के कुछ प्रावधानों में संशोधन किया है।

पृष्ठभूमि

  • सरकार ने कोविड-19 के कारण कम्पनियों के अवसरवादी अधिग्रहण पर अंकुश लगाने हेतु निवेश नीति में बदलाव सम्बंधी कदम उठाया है।
  • दरअसल, चीन के सरकारी स्वामित्त्व वाले बैंकों व कम्पनियों द्वारा भारत सहित विभिन्न देशों की कम्पनियों के अधिग्रहण अथवा अंशधारिता में वृद्धि की बात सामने आई है। इस वजह से ऑस्ट्रेलिया सहित कई अन्य देशों ने भी अपनी विदेशी निवेश नीतियों में संशोधन किये हैं।
  • भारत द्वारा अपनी एफ.डी.आई. पॉलिसी में किये गए वर्तमान संशोधनों की मुख्य वजह चीन है।

क्या हैं संशोधित प्रावधान ?

  • संशोधित प्रावधान के मुताबिक, भारत के साथ सीमा साझा करने वाले चीन सहित सभी देशों से होने वाले प्रत्यक्ष विदेशी निवेश के प्रस्तावों को सरकार से अनुमोदन की आवश्यकता होगी।
  • अब, उन मामलों में भी स्वचालित मार्ग से निवेश को रोक दिया गया है, जिनके अंतर्गत निवेश करने के बाद केंद्रीय बैंक को सूचित करना होता था।
  • भारत में होने वाले किसी निवेश के लाभार्थी यदि इन देशों से होंगे या इन देशों के नागरिक होंगे, तो ऐसे निवेश के लिये भी सरकारी मंज़ूरी की आवश्यकता होगी।
  • इससे पूर्व सेबी ने भारतीय शेयर बाज़ार में चीन से आने वाले निवेश की जानकारी देने का निर्देश दिया था।

संशोधन की आवश्यकता क्यों ?

  • लॉकडाउन के कारण भारत की कई व्यावसायिक गतिविधियाँ रुकी हुई हैं, जिससे कम्पनियों के कुल मूल्यन (Valuation) में गिरावट आई है। ऐसी स्थिति में विदेशी निवेशकों द्वारा कई घरेलू फर्म व कम्पनियों के अधिग्रहण की आशंका है।
  • हाल ही में, पीपुल्स बैंक ऑफ चाइना ने स्टॉक मार्केट के माध्यम से एच.डी.एफ.सी. हाउसिंग फाइनेंस कम्पनी में पोर्टफोलियो निवेश किया था, जिससे कम्पनी में उसकी हिस्सेदारी बढ़कर 1.01%  हो गई है।

संशोधन से उत्पन्न चिंताएँ व दूरगामी प्रभाव

  • इस संशोधन के द्वारा चीन के सभी प्रकार के निवेशकों को सरकारी अनुमोदन की आवश्यकता होगी। यह कदम अनपेक्षित समस्याएँ भी पैदा कर सकता है।
  • इसमें ग्रीन फील्ड तथा ब्राउन फील्ड निवेश के मध्य अंतर नहीं किया गया है। ग्रीन फील्ड निवेश के मामले में चीनी निवेशकों द्वारा भारत में कारखानें स्थापित करने व रोज़गार पैदा करने हेतु नए पूंजी निवेश में बाधा उत्पन्न होगी।
  • नवीन संशोधन विभिन्न प्रकार के निवेशकों, जैसे- औद्योगिक निवेशकों, वित्तीय संस्थानों या वेंचर कैपिटल फंड के मध्य भी अंतर नहीं करता है। वेंचर कैपिटल फंड पर प्रतिबंध के कारण भारतीय बाज़ार में कई स्टार्टअप कम्पनियों की सम्भावनाओं को झटका लग सकता है।
  • एक आकलन के अनुसार, चीन के निवेशकों ने भारतीय स्टार्टअप कम्पनियों में करीब 4 अरब डॉलर का निवेश किया है। उनके निवेश की रफ्तार इतनी तेज़ है कि भारत के 30 यूनिकॉर्न में से 18 का वित्तपोषण चीन से होता है।

संशोधन से पूर्व पड़ोसी देशों हेतु एफ.डी.आई. पॉलिसी

  • एक अनिवासी इकाई, प्रतिबंधित क्षेत्रों व गतिविधियों को छोड़कर प्रत्यक्ष विदेशी निवेश नीति के अधीन निवेश कर सकती है। हालाँकि, बांग्लादेश का कोई नागरिक या वहाँ स्थित कोई इकाई सरकारी मार्ग से ही निवेश कर सकती है।
  • पाकिस्तान के निवेशकों पर इस तरह की शर्त पहले से लागू है। पाकिस्तान का कोई भी नागरिक अथवा वहाँ की कोई भी कम्पनी सिर्फ सरकारी मंज़ूरी के बाद ही प्रतिबंधित क्षेत्रों के अलावा अन्य क्षेत्रों में निवेश कर सकती है। उल्लेखनीय है कि रक्षा, अंतरिक्ष, परमाणु ऊर्जा और कुछ अन्य क्षेत्रों में विदेशी निवेश प्रतिबंधित है।
  • इसके अलावा, पाकिस्तान का कोई नागरिक या वहाँ स्थित कोई इकाई सिर्फ सरकारी मार्ग के अंतर्गत ही निवेश कर सकती है। रक्षा, अंतरिक्ष, परमाणु ऊर्जा और विदेशी निवेशकों के लिये प्रतिबंधित क्षेत्र व गतिविधियों में पाकिस्तानी निवेश नहीं कर सकते हैं।
  • भारत में कुछ क्षेत्रों में एफ.डी.आई. पर पाबंदी है, इनमें लॉटरी कारोबार, जुआ और सट्‌टेबाज़ी, चिट फंड, निधि कम्पनी व सिगार इत्यादि शामिल हैं।

भारत में चीनी निवेश की स्थिति

  • भारतीय व्यापार के क्षेत्र में, विशेष रूप से वर्ष 2014 से चीन का प्रभाव तेज़ी से बढ़ रहा है। चीन द्वारा वर्ष 2014 में भारत में 1.6 बिलियन डॉलर का निवेश किया गया था, इसमें से अधिकतर निवेश चीन की सरकारी कम्पनियों द्वारा अवसंरचना क्षेत्र में किया गया था।
  • वर्ष 2017 तक कुल निवेश में लगभग 5 गुना की वृद्धि हुई। भारत में कुल चीनी निवेश मार्च 2020 में 26 बिलियन डॉलर को पार कर गया है।
  • उद्योग संवर्धन और आंतरिक व्यापार विभाग (DPIIT) के आँकड़ों के अनुसार,  दिसंबर 2019 से अप्रैल 2020 के दौरान भारत को चीन से 2.34 अरब डॉलर यानी लगभग 14,846 करोड़ रुपये का विदेशी निवेश प्राप्त हुआ है।
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