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बैंक कर्जदारों के विदेश जाने पर रोक

संदर्भ 

मुंबई उच्च न्यायालय ने विराज चेतन शाह बनाम भारत संघ वाद में टिप्पणी करते हुए कहा कि विदेश यात्रा के मौलिक अधिकार को बिना किसी सरकारी क़ानून या नियंत्रित वैधानिक प्रावधान के कार्यकारी कार्रवाई द्वारा कम नहीं किया जा सकता है।

हालिया निर्णय 

  • इस वाद में बॉम्बे उच्च न्यायालय ने निर्णय दिया है कि सार्वजनिक क्षेत्र के बैंक (Public Sector Bank : PSB) ऋण चूककर्ताओं के खिलाफ लुक आउट सर्कुलर (Look Out Circular: LOC) जारी करने की सिफारिश या अनुरोध नहीं कर सकते हैं। 
  • न्यायालय ने केंद्र सरकार के उस कार्यालय ज्ञापन के प्रावधानों को रद्द कर दिया है जो पी.एस.बी. को ऐसा अधिकार प्रदान करते हैं। 
  • न्यायालय ने यह भी माना कि गृह मंत्रालय द्वारा केवल पी.एस.बी. को शामिल करना अनुच्छेद 14 के तहत एक अस्वीकार्य और अमान्य वर्गीकरण है।
  • न्यायालय ने पी.एस.बी. देनदारों को विदेश यात्रा से रोकने के लिए जारी की गई एल.ओ.सी. को रद्द कर दिया गया
    • न्यायालय के अनुसार यह कानूनी प्रक्रियाओं से बचने के लिए उपयोग की जाने वाली ‘मजबूत रणनीति’  हैं।
    • यह संविधान के अनुच्छेद 14 और 21 के तहत गारंटीकृत मौलिक अधिकारों का उल्लंघन है।
    • हालाँकि न्यायालय ने अपने आदेशों को भूतलक्षी प्रभाव लागू करने से मना कर दिया। 
  • न्यायालय के अनुसार बैंक भगोड़े आर्थिक अपराधी अधिनियम, 2018 के तहत अपनी शक्तियों का भी उपयोग कर सकते हैं।

वैधानिक चुनौतियाँ 

  • बॉम्बे उच्च न्यायालय  में जिस एल.ओ.सी. को  चुनौती दी गई है उसे  गृह मंत्रालय के आव्रजन ब्यूरो द्वारा जारी किया गया था। 
    • इसमें प्रस्थान के किसी भी बंदरगाह पर अधिकारियों को पी.एस.बी. के देनदार को भारत छोड़ने से रोकने की अनुमति दी गई थी। 
  • यह एल.ओ.सी. 27 अक्टूबर 2010 से मंत्रालय द्वारा जारी किए गए कार्यालय ज्ञापन पर आधारित थे।
  • सितंबर 2018 में, किसी व्यक्ति को विदेश जाने से रोकने के लिए एल.ओ.सी. जारी करने के लिए एक आधार पेश किया गया था
    • यदि उस व्यक्ति का प्रस्थान देश के आर्थिक हित के लिए हानिकारक था। 
  • उसी वर्ष सरकार ने भारतीय स्टेट बैंक के अध्यक्ष  सहित सभी पी.एस.बी. के प्रबंध निदेशक एवं  मुख्य कार्यकारी अधिकारियों को डिफ़ॉल्ट उधारकर्ताओं के खिलाफ आव्रजन अधिकारियों से एल.ओ.सी. जारी करने का अनुरोध करने का अधिकार देने वाला एक नया खंड पेश किया गया था।
    • डिफॉल्ट कर्ज़दारों में कर्ज़दार सहित ऋण चुकाने के गारंटर और कर्ज़ में डूबी कॉर्पोरेट संस्थाओं के प्रमुख अधिकारी या निदेशक भी शामिल थे।

याचिकाकर्ता के तर्क 

  • याचिकाकर्ताओं ने गृह मंत्रालय के कार्यालय ज्ञापन के उस हिस्से का विरोध किया जो पी.एस.बी. को डिफॉल्टिंग उधारकर्ता के खिलाफ एल.ओ.सी. का अनुरोध करने की अनुमति देता है।
  • याचिकाकर्ताओं के अनुसार यह अनुच्छेद 21 के तहत गरिमा के साथ जीवन जीने के उनके मौलिक अधिकारों का उल्लंघन है।
  • याचिकाकर्ताओं ने तर्क दिया कि भारत का आर्थिक हित पी.एस.बी. के वित्तीय हितों के समान नहीं हो सकता है। 
    • सरकार की कार्रवाई सार्वजनिक क्षेत्र और निजी बैंकों दोनों के बीच अनुचित और अस्वीकार्य वर्गीकरण का एक क्लासिक मामला है जबकि दोनों ही भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) द्वारा विनियमित हैं।

केंद्र सरकार का पक्ष 

  • सरकार के अनुसार जीवन या व्यक्तिगत स्वतंत्रता से वंचित करना केवल कानून द्वारा स्थापित प्रक्रिया के माध्यम से किया जा सकता है। 
    • मंत्रालय द्वारा जारी परिपत्र में ऐसे प्रावधानों को शामिल किया गया है। 
  • सरकार ने तर्क दिया कि जानबूझकर कर्ज न चुकाने वालों और आर्थिक अपराधियों की संख्या में वृद्धि के बाद ये कदम उठाए गए हैं। 
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