New
GS Foundation (P+M) - Delhi : 28th Sept, 11:30 AM Hindi Diwas Offer UPTO 75% + 10% Off, Valid Till : 15th Sept. 2025 GS Foundation (P+M) - Prayagraj : 25th Sept., 11:00 AM Hindi Diwas Offer UPTO 75% + 10% Off, Valid Till : 15th Sept. 2025 GS Foundation (P+M) - Delhi : 28th Sept, 11:30 AM GS Foundation (P+M) - Prayagraj : 25th Sept., 11:00 AM

प्रशांत द्वीप समूह में चीन के बढ़ते कदम

(मुख्य परीक्षा: सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र- 2: द्विपक्षीय, क्षेत्रीय और वैश्विक समूह और भारत से संबंधित और/अथवा भारत के हितों को प्रभावित करने वाले करार।) 

संदर्भ

हाल ही में,चीन के विदेश मंत्री द्वारा प्रशांत महासागर के 8 द्वीपीय देशों की यात्रा की गई।साथ ही, फिजी की सह अध्यक्षता में चीन ने द्वितीय ‘चीन-प्रशांत द्वीप देशों’ के विदेश मंत्रियों की बैठक की सह-मेजबानी भी की।

हालिया बैठक केनिहितार्थ

  • चीन ने प्रशांत द्वीपीय देशों (PICs) से आर्थिक कूटनीति के साथ ही सुरक्षा सहयोग पर वार्ताको तेज किया है। इस संदर्भ में चीन द्वारा अप्रैल 2022 में सोलोमन द्वीप समूह के साथ एक विवादास्पद सुरक्षा समझौते पर हस्ताक्षर किया जाना महत्त्वपूर्ण है, जिसने क्षेत्रीय चिंताओं को उजागर कर दिया है। इस समझौते के बाद से अमेरिका ने इस क्षेत्र में अपनी राजनयिक प्राथमिकता पर फिर से विचार करना शुरू कर दिया है।
  • हालिया बैठक में प्रस्तुत किये गए दस्तावेजों में से एक ‘चीन-पी.आई.सी. सामान्य विकास दृष्टि’ है जो राजनीतिक, सुरक्षा, आर्थिक और रणनीतिक क्षेत्रों में सहयोग के बारे में एक व्यापक प्रस्ताव देती है, जबकि दूसरा समझौता ‘चीन-पी.आई.सी. सामान्य विकास पर पंचवर्षीय कार्य योजना (2022-2026)’ है जो चिन्हित क्षेत्रों में सहयोगकी रूपरेखा तैयार करती है।
  • सामूहिक रूप से पी.आई.सी. चीन के व्यापक और महत्त्वाकांक्षी प्रस्तावों से सहमत नहीं थे। अतः चीन मसौदे पर आम सहमति प्राप्त करने में विफल रहा। 

चीन की बढ़ती महत्त्वाकांक्षा

  • प्रशांत महासागर के इन द्वीपीय देशों से चीन के समुद्री हित जुड़े हुए हैं। ये द्वीप चीन की 'प्रथम द्वीप श्रृंखला' (First Island Chain) से परे स्थित हैं, जो चीन के समुद्री विस्तार के लिये अति महत्त्वपूर्ण है।
  • प्रशांत द्वीपीय देश भू-रणनीतिक रूप से उस स्थान पर स्थित हैं जिसे चीन अपने 'सुदूर समुद्र' के रूप में संदर्भित करता है, जिसके नियंत्रण से चीन एक प्रभावी नौसेना शक्ति बन जाएगा जो महाशक्ति बनने के लिये एक आवश्यक शर्त है।
  • पी.आई.सी.की अपार समुद्री समृद्धि और क्षेत्र में क्वाड देशों के बढ़ते प्रभाव ने चीन की महत्त्वाकांक्षा को बढ़ा दिया है। इसके अतिरिक्त ताइवान को प्रशांत द्वीपीय देशों से अलग-थलग रखना भी चीन की कूटनीति में शामिल है।
  • चीन अपनी आर्थिक उदारता के माध्यम से 14 में से 10 देशों से राजनयिक मान्यता प्राप्त करने में सफल रहा है।केवल चार पी.आई.सी. - तुवालु, पलाऊ, मार्शल द्वीप और नौरूवर्तमान में ताइवान को मान्यता देते हैं।

पी.आई.सी. का रणनीतिक महत्त्व

  • ये द्वीप क्षेत्रफल में बहुत छोटे हैं और प्रशांत महासागर के भूमध्यरेखीय क्षेत्र में फैले हुए हैं। अतः इनके पास दुनिया के कुछ सबसे बड़े विशिष्ट आर्थिक क्षेत्र (EEZs) हैं।
  • ये द्वीप आर्थिक रूप से अति महत्त्वपूर्ण है, क्योंकि यहाँ मत्स्य पालन, ऊर्जा, खनिज और अन्य समुद्री संसाधनों के विशाल भंडारों की विद्यमानता है।
  • ये देश साझा आर्थिक एवं सुरक्षा चिंताओं से बंधे हुए है तथा संयुक्त राष्ट्र में वोटों की संख्या के कारण प्रमुख वैश्विक शक्तियों के लिये संभावित वोट बैंक के रूप में कार्य करते हैं। यहीं कारण है कि प्रशांत द्वीपीय देशों में चीन के बढ़ते हस्तक्षेप ने क्षेत्रीय चिंताओं को बढ़ा दिया है।

क्या है पी.आई.सी.

  • पी.आई.सी. 14 देशों का एक समूह है जो एशिया, ऑस्ट्रेलिया और अमेरिका के बीच प्रशांत महासागर के उष्णकटिबंधीय क्षेत्र में स्थित हैं।
  • इनमें कुक द्वीप समूह, फिजी, किरिबाती, रिपब्लिक ऑफ मार्शल आइलैंड्स, नौरू, नीयू, पलाऊ, पापुआ न्यू गिनी,सोलोमन द्वीपसमूह, टोंगा, फेडरेटेड स्टेट्स ऑफ माइक्रोनेशिया(FSM), तुवालु और वानुअतु शामिल हैं।
  • इन द्वीपों को भौतिक और मानव भूगोल के आधार पर तीन भागों- माइक्रोनेशिया, मेलानेशिया और पोलिनेशिया में विभाजित किया गया है।
« »
  • SUN
  • MON
  • TUE
  • WED
  • THU
  • FRI
  • SAT
Have any Query?

Our support team will be happy to assist you!

OR
X