रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन द्वारा K-6 हाइपरसोनिक बैलिस्टिक मिसाइल के लिए समुद्री परीक्षण की तैयारी की जा रही है।
K-6 हाइपरसोनिक बैलिस्टिक मिसाइल के बारे में
- विकास : रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन (DRDO) द्वारा
- प्रकार : पनडुब्बी से प्रक्षेपित अंतर-महाद्वीपीय बैलिस्टिक मिसाइल (SLBM)
- विकास प्रारंभ : फरवरी 2017 में हैदराबाद स्थित DRDO की एडवांस्ड नेवल सिस्टम्स लैबोरेटरी में
- उद्देश्य : भारत की समुद्री परमाणु शक्ति और रणनीतिक प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाना
तकनीकी विशेषताएँ
- रेंज : लगभग 8,000 किमी.
- गति : मैक 7.5 (लगभग 9,200 किमी/घंटा), ध्वनि की गति से साढ़े सात गुना तेज
- आयाम:
- लंबाई : 12 मीटर से अधिक
- व्यास : 2 मीटर से अधिक
- पेलोड : 2-3 टन, परमाणु एवं पारंपरिक दोनों प्रकार के वारहेड ले जाने में सक्षम
- MIRV तकनीक : मल्टीपल इंडिपेंडेंटली टारगेटेड री-एंट्री व्हीकल (MIRV), एक मिसाइल से कई लक्ष्यों पर हमला संभव
- स्टील्थ क्षमता : दुश्मन के रडार एवं मिसाइल डिफेंस सिस्टम को चकमा देने में सक्षम
- ईंधन : तीन-चरणीय, ठोस-ईंधन आधारित मिसाइल
- परीक्षण स्थिति : समुद्री परीक्षण की तैयारी, 2025 में संभावित
- आवश्यकता : अरिहंत-श्रेणी की पनडुब्बियों की सीमित मिसाइल रेंज (K-15: 750 किमी, K-4: 3,500 किमी, K-5: 5,000-6,000 किमी) के कारण K-6 का विकास शुरू
- परीक्षण का महत्व: सफल परीक्षण भारत को अमेरिका, रूस, चीन, फ्रांस, और यूके जैसे देशों के विशिष्ट क्लब में शामिल करेगा
रणनीतिक महत्व
- पनडुब्बी एकीकरण: S-5 श्रेणी की परमाणु पनडुब्बियों के लिए डिज़ाइन, जो अरिहंत-श्रेणी से बड़ी और अधिक शक्तिशाली हैं
- क्षेत्रीय कवरेज: पूरे एशिया, यूरोप, और अफ्रीका के कुछ हिस्सों को निशाना बनाने की क्षमता
- प्रतिरोधक क्षमता: पाकिस्तान और चीन जैसे देशों के खिलाफ प्रभावी रणनीतिक जवाब
- आत्मनिर्भर भारत: स्वदेशी तकनीक पर जोर, भारत की रक्षा आत्मनिर्भरता को बढ़ावा
- परमाणु त्रिकोण: K-6 भारत के समुद्री परमाणु त्रिकोण (जमीन, हवा, समुद्र) को मजबूत करेगा
तुलनात्मक विश्लेषण
K-सीरीज की अन्य मिसाइलें:
- K-15: 750 किमी. रेंज
- K-4: 3,500 किमी. रेंज
- K-5: 5,000-6,000 किमी. रेंज
- K-6: 8,000 किमी. रेंज, अधिक उन्नत व घातक
ब्रह्मोस मिसाइल से तुलना:
- ब्रह्मोस : सुपरसोनिक क्रूज मिसाइल (मैक 2.8-3.5), रेंज 290-800 किमी.
- K-6 : हाइपरसोनिक, लंबी रेंज और MIRV क्षमता के साथ अधिक शक्तिशाली
वैश्विक तुलना
केवल अमेरिका, रूस, चीन, फ्रांस एवं यू.के. के पास ऐसी मिसाइलें हैं
चुनौतियाँ
- तकनीकी जटिलता: हाइपरसोनिक गति और MIRV तकनीक का विकास अत्यंत जटिल
- परीक्षण में देरी: विकास 2017 में शुरू, 10 वर्षों में पूर्ण होने का लक्ष्य, लेकिन समयसीमा अनिश्चित
- विरोधी रडार सिस्टम: हालांकि K-6 को चकमा देने के लिए डिज़ाइन किया गया है, उन्नत एंटी-मिसाइल सिस्टम एक चुनौती हो सकते हैं
- लागत: उच्च विकास और परीक्षण लागत, विशेष रूप से S-5 पनडुब्बियों के साथ एकीकरण