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2-जी स्पेक्ट्रम घोटाले के निर्णय के स्पष्टीकरण की मांग

संदर्भ 

केंद्र सरकार ने सर्वोच्च न्यायालय के 2-जी स्पेक्ट्रम घोटाले के फैसले पर 'स्पष्टीकरण' की मांग की है। 

2-जी स्पेक्ट्रम घोटाला

  • 2-जी स्पेक्ट्रम आवंटन घोटाला वर्ष 2008 में हुआ था जब तत्कालीन सरकार ने विशिष्ट दूरसंचार ऑपरेटरों को ‘पहले आओ-पहले पाओ’ के आधार पर 122 2-जी लाइसेंस की बिक्री की थी। 
  • अप्रैल 2011 में दायर अपनी चार्जशीट में केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो (Central Bureau of Investigation : CBI) ने आवंटन प्रक्रिया में विसंगतियों के परिणामस्वरूप सरकारी खजाने को 30,984 करोड़ रुपये का नुकसान होने का आरोप लगाया था।
  • सेंटर फॉर पब्लिक इंटरेस्ट लिटिगेशन और सुब्रमण्यम स्वामी ने वर्ष 2008 में टेलीकॉम लाइसेंस देने में 70,000 करोड़ के घोटाले का आरोप लगाते हुए सर्वोच्च न्यायालय में याचिका दायर की थी। 

सर्वोच्च न्यायालय का निर्णय 

  • फरवरी 2012 में सर्वोच्च न्यायालय की एक खंडपीठ ने आवंटित लाइसेंस रद्द करते हुए तर्क दिया कि दुर्लभ प्राकृतिक संसाधनों के आवंटन के लिए ‘पहले आओ, पहले पाओ’ आधार का दुरुपयोग हो सकता है।
  • दुर्लभ प्राकृतिक संसाधन माने जाने वाले स्पेक्ट्रम को शीर्ष न्यायालय ने नीलामी की निष्पक्ष एवं पारदर्शी  प्रक्रिया के माध्यम से आवंटित करने का आदेश दिया था। 
  • इस निर्णय में सर्वोच्च न्यायालय ने इस बात पर बल दिया कि यह सुनिश्चित करने का ज़िम्मा राज्य पर है कि नीलामी की ‘गैर-भेदभावपूर्ण पद्धति’ को व्यापक प्रचार देकर अपनाया जाए ताकि सभी पात्र व्यक्ति इस प्रक्रिया में भाग ले सकें।

केंद्र सरकार का तर्क   

  • सर्वोच्च न्यायालय द्वारा 2-जी स्पेक्ट्रम घोटाले के फैसले में 122 दूरसंचार लाइसेंस रद्द करने के एक दशक से अधिक समय बाद केंद्र सरकार ने प्रतिस्पर्धी नीलामी के बजाय प्रशासनिक प्रक्रियाओं के माध्यम से स्पेक्ट्रम के ‘निश्चित वर्ग’ को आवंटित करने के लिए एक आवेदन दायर किया है।
  • प्रशासनिक आवंटन का अर्थ होगा कि ऑपरेटरों के चयन की प्रक्रिया तय करने में सरकार का अंतिम अधिकार होगा।
  • केंद्र सरकार के अनुसार स्पेक्ट्रम का आवंटन वाणिज्यिक दूरसंचार सेवाओं के साथ ही सुरक्षा एवं आपदा तैयारी जैसे संप्रभु और सार्वजनिक हित कार्यों के निर्वहन के लिए भी आवश्यक है।
  • केंद्र सरकार द्वारा याचिका में निम्नलिखित मांग की गई है
    • उचित स्पष्टीकरण जारी करें कि सरकार प्रशासनिक प्रक्रिया के माध्यम से स्पेक्ट्रम के असाइनमेंट पर विचार कर सकती है यदि ऐसा कानून के अनुसार उचित प्रक्रिया के माध्यम से निर्धारित किया जाता है। 
      • यदि ऐसा असाइनमेंट सरकारी कार्यों की पूर्ति या सार्वजनिक हित की आवश्यकता के लिए है। 
      • यदि ऐसे असाइनमेंट में तकनीकी या आर्थिक कारणों से नीलामी प्रक्रिया  को प्राथमिकता नहीं दी जा सकती है।
  • केंद्र सरकार ने फरवरी 2012 के फैसले के संबंध में राष्ट्रपति के संदर्भ पर निर्णय लेते समय संविधान पीठ द्वारा की गई टिप्पणियों का भी उल्लेख किया है। 
    • इसमें संवैधानिक पीठ ने टिपण्णी की थी कि फैसले में निर्धारित नीलामी पद्धति को स्पेक्ट्रम को छोड़कर प्राकृतिक संसाधनों के हस्तांतरण के लिए ‘संवैधानिक आदेश’ नहीं माना जाना चाहिए।

दूरसंचार अधिनियम-2023 के तहत प्रावधान 

  • यह अधिनियम पहली अनुसूची में सूचीबद्ध संस्थाओं के लिए नीलामी के अलावा प्रशासनिक प्रक्रियाओं के माध्यम से दूरसंचार के लिए स्पेक्ट्रम आवंटित करने का अधिकार देता है। 
    • इनमें राष्ट्रीय सुरक्षा, रक्षा एवं कानून प्रवर्तन के साथ-साथ स्पेस एक्स और भारती एयरटेल समर्थित वनवेब जैसे सैटेलाइट द्वारा ग्लोबल मोबाइल पर्सनल कम्युनिकेशन में लगी संस्थाएं भी शामिल हैं।
  • इसके तहत सरकार स्पेक्ट्रम का वह हिस्सा भी सौंप सकती है जो पहले से ही एक या एक से अधिक अतिरिक्त संस्थाओं को सौंपा जा चुका है जिन्हें द्वितीयक असाइनमेंट के रूप में जाना जाता है। 
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