आंध्र प्रदेश के कुरनूल जिले के होलागुंडा मंडल में प्राचीन देवरागट्टू बन्नी उत्सव के दौरान हिंसा भड़क उठी।
देवरागट्टू बन्नी उत्सव के बारे में

- देवरागट्टू बन्नी उत्सव विजयनगर साम्राज्य के समय से प्रचलित है। यह उत्सव 800 फुट ऊँची पहाड़ी पर बने श्री माला मल्लेश्वर स्वामी मंदिर के वार्षिक समारोह का एक अभिन्न हिस्सा है।
- पौराणिक कथा के अनुसार, प्राचीन काल में मणि और मल्लासुर नामक दो क्रूर राक्षस देवरगट्टू पहाड़ियों में निवास करते थे। ये दोनों राक्षस वहाँ तपस्या कर रहे संतों को अमानवीय यातनाएँ देते थे। राक्षसों के इस अत्याचार से परेशान होकर संतों ने उनसे मुक्ति पाने के लिए भगवान परमेश्वर और देवी पार्वती की आराधना की।
- माना जाता है कि संतों की प्रार्थना सुनकर, भगवान ने विजयादशमी की रात पहाड़ी की चोटी पर एक पत्थर पर अपने ‘मूल विराट’ रूप में कूर्मावतार (कछुए का अवतार) के रूप में प्रकट होकर दोनों राक्षसों का वध किया।
- राक्षसों ने ‘रक्षापद’ नामक स्थान पर मृत्यु के समय ईश्वर से यह प्रार्थना की कि उन्हें प्रतिवर्ष नरबलि दी जाए जिसको अस्वीकार कर दिया गया। इसके बजाय राक्षसों को विजयादशमी की रात्रि में ‘रक्षापद’ क्षेत्र में उन्हें एक मुट्ठी रक्त अर्पित करने का आश्वासन दिया गया।
बन्नी उत्सव का अनुष्ठान
- बन्नी उत्सव के दौरान श्री माला मल्लेश्वर स्वामी और पार्वती देवी की पूजा की जाती है। इस अवसर पर ग्रामीण देवताओं की मूर्तियों को लेकर पहाड़ी से नीचे दौड़ते हैं।
- जब व्यक्तियों का एक समूह देवताओं को ‘अश्ववाहनम’ पर ले जाता है, तो हज़ारों लोग जलती हुई मशालों और धातु के छल्लों वाली लंबी छड़ियों के साथ ढोल की थाप पर नृत्य करते हुए और करतब दिखाते हुए जुलूस निकालते हैं।
- रायलसीमा, कर्नाटक और अन्य स्थानों से लाखों भक्त अश्ववाहन को रोकने के लिए लाठियाँ चलाते हैं। उनका विश्वास है कि यदि वे मूर्तियों को कुछ देर के लिए रोक पाते हैं, तो गाँव में समृद्धि आती है।