New
The Biggest Summer Sale UPTO 75% Off, Offer Valid Till : 31 May 2025 New Batch for GS Foundation (P+M) - Delhi & Prayagraj, Starting from 2nd Week of June. The Biggest Summer Sale UPTO 75% Off, Offer Valid Till : 31 May 2025 New Batch for GS Foundation (P+M) - Delhi & Prayagraj, Starting from 2nd Week of June.

फ़ेक न्यूज़ का कृत्रिम रूप

(सामान्य अध्ययन, प्रश्नपत्र- 2 : शासन व्यवस्था एवं शासन प्रणाली)

संदर्भ

केन्द्र सरकार ने कोर्ट में कोरोना वायरस और इससे जुड़े मुद्दों से निपटने के लिये उठाए कदमों की जानकारी देते हुए हलफनामा दाखिल किया था। इसे अभी तक नियंत्रित करने का प्रयास किया जा रहा है, लेकिन इस समय इस चुनौती से निपटने में फ़ेक न्यूज़ सबसे बड़ी बाधा हैं।

क्या है फ़ेक न्यूज़?

  • एक घटना को आधिकारिक रूप से एक रिपोर्ट के रूप में प्रस्तुत किया जाना जो वास्तव में कभी हुई ही नहीं, फ़ेक न्यूज़ कहलाती है।
  • परिभाषा के अनुसार, समाचार राय नहीं है, जो गलत हो सकता है, लेकिन यह "फ़ेक" नहीं हो सकता। समाचार तथ्यों की रिपोर्ट है। फ़ेक न्यूज़ उन तथ्यों की एक रिपोर्ट है जो गलत है और जिन्हें ‘समाचार’ के रूप में प्रस्तुत किया जा रहा है।

फ़ेक न्यूज़ के प्रभाव

  • फ़ेक न्यूज़ एक खतरा है, न केवल इसलिये क्योंकि यह आमतौर पर छलने और गलत जानकारी देने के इरादे से बनाया जाता है, बल्कि इसलिये भी क्योंकि यह लोगों को इन गलत सूचनाओं पर कार्य करने के लिये प्रेरित कर सकता है। इसके गंभीर परिणाम हो सकते हैं, खासकर जहाँ मोबाइल और सोशल मीडिया की पहुँच शिक्षा और जागरूकता से अधिक होती है।
  • इसलिए, एक राय जिससे आप असहमत हैं, उसे फ़ेक न्यूज़ के रूप में ब्रांड नहीं किया जा सकता है क्योंकि यह सिर्फ एक राय है।

क्यों बनाई जाती है फ़ेक न्यूज़?

  • फ़ेक न्यूज़ का प्रयोग किसी पर टिप्पणी करने या विरोधी दृष्टिकोण का वर्णन करने के लिये किया जाता है।
  • फ़ेक न्यूज़ किसी भी आलोचना के लिये प्रयोग की जाती है।
  • फ़ेक न्यूज़ के रूप में आलोचना को प्रोत्साहित करके सरकारें इस पर सहमत होती हैं कि ये फ़ेक न्यूज़ है।

यदि यह फ़ेक न्यूज़ है तो क्या इसकी प्रतिक्रिया नहीं होनी चाहिए।

फ़ेक न्यूज़ की प्रतिक्रिया आवश्यक

  • फ़ेक न्यूज़ आज एक बड़ा खतरा हैं। उदाहरण के लिए, लॉकडाउन की प्रारंभिक घोषणा के बाद, प्रवासी श्रमिकों के पलायन को देखकर सरकार की आलोचना की गई और इसके अनेक कारण भी बताए गए जैसे-
    • लॉकडाउन से पहले एक समन्वित दृष्टिकोण का अभाव।
    • लॉकडाउन के दौरान प्रवासी श्रमिकों को क्या करना चाहिये, इस बारे में जनता के साथ संवाद करने में विफलता।
    • उनके भोजन,आश्रय या वेतन के लिये अग्रिम प्रावधानों की कमी आदि।
  • कोरोना वायरस के संक्रमण को रोकने के लिये लॉकडाउन लागू किया गया। इस कारण ग़रीब व मज़दूर वर्ग सबसे अधिक प्रभावित हुए और इन लोगों की इस दयनीय स्थिति के लिये सरकार की काफी आलोचना भी हुई।
  • हालाँकि सरकार का कहना है कि इसका मुख्य कारण अव्यवस्थित लॉकडाउन नहीं बल्कि कई फ़ेक न्यूज़ थे जिसमें यह कहा गया कि ये लॉकडाउन 3 महीने तक रहेगा और ऐसी स्थिति का आभास कर प्रवासी श्रमिकों ने पलायन प्रारम्भ कर दिया जिसके कारण प्रवासी श्रमिकों की स्थिति दयनीय एवं अनियंत्रित हो गई। इस चुनौती से निपटने के मामले में फ़ेक न्यूज़ एकमात्र बाधक बनी हैं।
  • वित्त मंत्री द्वारा तीन महीने के लिये राहत उपायों की घोषणा से यह अटकलें तेज हो गई थीं कि 21 दिन के लॉकडाउन को 30 जून तक के लिये बढ़ाया जा सकता है? क्या सरकार लॉकडाउन का विस्तार नहीं कर रही है और क्या इसकी अंतिम अवधि अभी भी अनिश्चित है? क्या लॉकडाउन का विस्तार स्थिति के आकलन पर निर्भर करेगा? तो क्या सरकार खुद इस ख़बर का स्रोत थी जिसे अब फ़ेक न्यूज़ कहा जा रहा है?

अतः स्रोत की विश्वसनीयता को देखते हुए भ्रामक बयान या सरकारी संदेश में स्पष्टता की कमी और भी खतरनाक है।

  • इस तरह की फ़ेक न्यूज़ से मजदूरों में डर बढ़ा और इसी की वजह से इन्हें अपने गांव की ओर लौटने के लिये मजबूर होना पड़ा, यही नहीं इस दौरान उन्हें अनकही पीड़ा का भी सामना करना पड़ा, यहाँ तक कि इस प्रक्रिया के दौरान कुछ को अपना जीवन भी खोना पड़ा। ऐसे में फ़ेक न्यूज़ के इस खतरे को अनदेखा करना सम्भव नहीं है।

क्या कहना है सर्वोच्च न्यायालय का?

  • मीडिया को महामारी की घटनाओं के आधिकारिक संस्करण को ले जाने का निर्देश दिया गया, जिसे सरकार को दैनिक आधार पर प्रकाशित करना है।
  • सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र और राज्य सरकारों की ओर से कोरोना वायरस के बढ़ते संक्रमण को रोकने के लिये उठाए गए कदमों पर संतोष व्यक्त किया है।
  • हालांकि, सोशल मीडिया, इलेक्ट्रॉनिक और प्रिंट मीडिया में इसको लेकर फैलाई गई फ़ेक न्यूज़ पर कोर्ट ने गंभीर चिंता जताई और कहा कि अलग-अलग माध्यमों से फैलाई गई फ़ेक न्यूज़ की वजह से प्रवासी मजदूरों का बड़ी संख्या में शहरों से अपने गांव की ओर उनका पलायन हुआ।
  • सर्वोच्च न्यायालय ने फ़ेक न्यूज़ फैलाने के जुर्म में जेल और जुर्माने का है प्रावधान भी किया है जिसमें आपदा प्रबंधन अधिनियम, 2005 की धारा 54 का ज़िक्र किया है।
  • इसके अंतर्गत, किसी व्यक्ति के फ़ेक न्यूज़ फैलाने के जुर्म में एक साल की जेल और जुर्माने का प्रावधान है।
  • ऐसे मामलों में भारतीय दंड संहिता (आई.पी.सी.) की धारा 188 के तहत सजा दी जा सकती है।

आगे की राह

  • फ़ेक न्यूज़ की आलोचना को दरकिनार कर के केंद्र और राज्य सरकारों को बेहतर समन्वय स्थापित करना चाहिये, और स्पष्ट रणनीति एवं संचार स्थापित करना चाहिये।
  • COVID-19 उपायों के सम्बन्ध में विदेशी सरकारों द्वारा पूर्व में की गई समान घोषणाओं में कमियों से सबक लेना चाहिये क्योंकि फ़ेक न्यूज़ के मंत्र का जप करने से ये जटिलताएँ दूर नहीं हो सकतीं।
« »
  • SUN
  • MON
  • TUE
  • WED
  • THU
  • FRI
  • SAT
Have any Query?

Our support team will be happy to assist you!

OR