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नए सिरे से परिसीमन आयोग  का गठन

प्रारंभिक परीक्षा- परिसीमन आयोग, अनु. 330, अनु. 332
मुख्य परीक्षा- सामान्य अध्ययन, पेपर-2 

संदर्भ-

  • उच्चतम न्यायालय ने 23 नवंबर,2023 को केंद्र को निर्देश दिया कि वह संविधान के तहत अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के रूप में निर्दिष्ट समुदायों का आनुपातिक प्रतिनिधित्व सुनिश्चित करने के लिए एक नया परिसीमन आयोग गठित करे। 

मुख्य बिंदु-

  • सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि कोर्ट के लिये यह निर्देश देना कि आरक्षण को बढ़ाया जाए तथा संसद को अनुसूचित जनजातियों सहित सभी अन्य समुदायों के लिये अनुपातिक प्रतिनिधित्व देने संबंधी कानून बनाना चाहिए, विधायी क्षेत्र में दखल देना होगा। 
  • शीर्ष अदालत एक गैर सरकारी संगठन ‘पब्लिक इंटरेस्ट कमेटी फॉर शेड्यूलिंग स्पेसिफिक एरिया’ (PICSSA) द्वारा दायर याचिका पर सुनवाई कर रही थी, जिसमें तर्क दिया गया था कि एसटी श्रेणी से संबंधित लिम्बु और तमांग समुदायों को पश्चिम बंगाल और सिक्किम में आनुपातिक प्रतिनिधित्व से वंचित कर दिया गया है। 
  • याचिका पर सुनवाई करते हुए मुख्य न्यायाधीश डी. वाई. चंद्रचूड़. न्यायमूर्ति जे. बी. पारदीवाला और न्यायमूर्ति मनोज मिश्रा की पीठ ने यह निर्देश जारी किए।
  • शीर्ष अदालत ने कहा कि केंद्र को लिम्बु और तमांग आदिवासी समुदायों का आनुपातिक प्रतिनिधित्व सुनिश्चित करने के लिए परिसीमन आयोग के पुनर्गठन पर विचारशील दृष्टिकोण अपनाना चाहिए।
  • आनुपातिक प्रतिनिधित्व के लिए इन समुदायों की मांग का एक संवैधानिक आधार है, जो अनुच्छेद 330 और 332 में वर्णित है।
  • कोर्ट ने कहा, हालांकि हम जानते हैं कि हम संसद को कानून बनाने के लिए निर्देशित नहीं कर सकते हैं, हमारा विचार है कि जिन्हें अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के रूप में नामित किया गया है, उनके न्याय को सुनिश्चित करने के लिए परिसीमन आयोग का पुनर्गठन किया जाना चाहिए और भारत संघ को इस पर विचार करना चाहिए।
  • शीर्ष अदालत के पास यह निर्धारित करने के लिए न्यायिक समीक्षा की शक्ति है कि संसद द्वारा अधिनियमित कोई प्रावधान संवैधानिक है या नहीं।
  • पीठ ने स्पष्ट किया कि उसके फैसले को "संसद या राज्य विधानसभाओं के चुनावों में हस्तक्षेप के रूप में नहीं देखा जाना चाहिए क्योंकि चुनाव एक व्यापक जनादेश है और उन्हें समय पर पूरा किया जाना चाहिए।“
  • पश्चिम बंगाल विधानसभा में आदिवासी समुदायों के आनुपातिक प्रतिनिधित्व पर सुनवाई करते हुए पीठ ने कहा कि उसे परिसीमन अधिनियम, 2002 के तहत शक्ति का उपयोग करने की आवश्यकता है।
  • यह कानून राज्य विधानसभाओं में सीटों के आवंटन, विधानसभा सीटों की कुल संख्या और विधान सभा वाले प्रत्येक राज्य और केंद्र शासित प्रदेश के विभाजन के पुन: समायोजन का प्रावधान करता है।
  • पीठ ने कहा, पश्चिम बंगाल राज्य के संबंध में आनुपातिक प्रतिनिधित्व के सिद्धांत को समायोजित करने के लिए अनुसूचित जनजातियों के लिए राज्य विधानसभा में अतिरिक्त सीटें उपलब्ध कराई जानी हैं।
  • उपर्युक्त परिस्थिति केंद्र को परिसीमन अधिनियम, 2002 के तहत अधिकार देती है कि संविधान के अनुच्छेद 332 और 333 के तहत प्रावधानों को विधिवत लागू किया गया है या नहीं।

याचिकाकर्ता की दलील-

  • एनजीओ के वकील के अनुसार, सिक्किम और पश्चिम बंगाल में एसटी आबादी में वृद्धि हुई है और वृद्धि के अनुपात में उनके लिए सीटें आरक्षित नहीं करना उनके संवैधानिक अधिकारों का उल्लंघन है।
  • सिक्किम में लिम्बु और तमांग समुदायों की आबादी 2001 में 20.6 प्रतिशत थी और 2011 में बढ़कर 33.8 प्रतिशत हो गई है। 
  • पश्चिम बंगाल के दार्जिलिंग क्षेत्र में एस.टी. जनसंख्या 2001 में 12.69 प्रतिशत से बढ़कर 2011 में 21.5 प्रतिशत हो गई।
  • जनहित याचिका में केंद्र, चुनाव आयोग और दोनों राज्यों को एसटी आयोग को आनुपातिक प्रतिनिधित्व के लिए कदम उठाने के निर्देश देने की मांग की गई है, जैसा कि संविधान के अनुच्छेद 14 (कानून के समक्ष समानता) के उल्लंघन को रोकने के लिए अनुच्छेद 330 (लोकसभा में एससी और एसटी के लिए सीटों का आरक्षण) और 332(राज्यों की विधानसभाओं में एससी और एसटी के लिए सीटों का आरक्षण) के तहत गारंटी दी गई है। 
  • याचिका में कहा गया है कि 6 मार्च 2012 को पश्चिम बंगाल में स्थापित जनजाति सलाहकार परिषद में दार्जिलिंग जिले के तीन पहाड़ी क्षेत्र उप-मंडलों से कोई निर्वाचित एसटी सदस्य नहीं है।
  • 2016 के राज्य विधानसभा चुनाव में कोई आरक्षित एसटी सीट नहीं थी और इसलिए 2011 की जनगणना के अनुसार संविधान के अनुच्छेद 170 और 332 का कार्यान्वयन नहीं हुआ। 

परिसीमन-

  • परिसीमन का शाब्दिक अर्थ है किसी देश या प्रांत में विधायी निकाय वाले क्षेत्रीय निर्वाचन क्षेत्रों की सीमा तय करने की प्रक्रिया। 

परिसीमन आयोग-

  • परिसीमन का काम एक उच्चाधिकार प्राप्त निकाय को सौंपा जाता है। ऐसे निकाय को परिसीमन आयोग या सीमा आयोग के रूप में जाना जाता है। 
  • परिसीमन आयोग भारत में एक उच्चाधिकार प्राप्त निकाय है जिसके आदेशों को कानून के तहत जारी किया जाता है और इन्हें किसी भी न्यायालय में चुनौती नहीं दी जा सकती। 
  • ये आदेश भारत के राष्ट्रपति द्वारा निर्दिष्ट तारीख से लागू होंगे। 
  • इसके आदेशों की प्रतियां संबंधित लोक सभा और राज्य विधानसभा के सदन के समक्ष रखी जाती हैं लेकिन उनमें उनके द्वारा कोई संशोधन करने की अनुमति नहीं है।
  • भारत में ऐसे परिसीमन आयोगों का गठन 4 बार किया गया है-
    1. 1952 में परिसीमन आयोग अधिनियम1952के अधीन
    2. 1963 में परिसीमन आयोग अधिनियम1962 के अधीन
    3. 1973 में परिसीमन अधिनियम1972
    4. 2002में परिसीमन अधिनियम2002के अधीन। 

प्रारंभिक परीक्षा के लिए प्रश्न-

प्रश्न- निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिए। 

  1. अनुच्छेद 330  में लोकसभा में एससी और एसटी के लिए सीटों के आरक्षण के संबंध में प्रावधान है।
  2. अनुच्छेद 332 में राज्यों की विधानसभाओं में एससी और एसटी के लिए सीटों के आरक्षण के संबंध में प्रावधान है।

नीचे दिए गए कूट की सहायता से सही उत्तर का चयन कीजिए।

(a) केवल 1

(b) केवल 2

(c) 1 और 2 दोनों

(d) न तो 1 और न ही 2

उत्तर- (c)

मुख्य परीक्षा के लिए प्रश्न-

प्रश्न- केंद्र सरकार को आदिवासी समुदायों का आनुपातिक प्रतिनिधित्व सुनिश्चित करने के लिए परिसीमन आयोग के पुनर्गठन पर विचारशील दृष्टिकोण अपनाना चाहिए। विवेचना कीजिए।

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