| GS paper -III : energy and environment |
भारत सरकार ने 4 जनवरी 2023 को “नेशनल ग्रीन हाइड्रोजन मिशन (NGHM)” प्रारंभ किया, जिसे नवीन एवं नवीकरणीय ऊर्जा मंत्रालय (MNRE) द्वारा लागू किया जा रहा है। यह मिशन भारत को ग्रीन हाइड्रोजन उत्पादन, उपयोग और निर्यात का वैश्विक केंद्र बनाने की दिशा में एक रणनीतिक पहल है।

समग्र अवधि:
- चरण I (2022–23 से 2025–26)
- चरण II (2026–27 से 2029–30)
कुल अनुमानित व्यय: ₹19,744 करोड़
लक्ष्य:
- वर्ष 2030 तक 5 मिलियन मीट्रिक टन (MMT) ग्रीन हाइड्रोजन उत्पादन क्षमता।
- लगभग 125 GW नवीकरणीय ऊर्जा क्षमता का समावेश।
- 50 मिलियन टन CO₂ उत्सर्जन में कमी और लगभग 6 लाख प्रत्यक्ष/अप्रत्यक्ष रोजगार सृजन।
ग्रीन हाइड्रोजन (GH₂) क्या है ?
ग्रीन हाइड्रोजन वह हाइड्रोजन है जो जल (H₂O) के इलेक्ट्रोलिसिस द्वारा सौर, पवन या जल विद्युत जैसी नवीकरणीय ऊर्जा से उत्पन्न बिजली का उपयोग करके निर्मित होती है। इस प्रक्रिया में जल के अणु को हाइड्रोजन (H₂) और ऑक्सीजन (O₂) में विभाजित किया जाता है। बायोमास गैसीकरण द्वारा भी हाइड्रोजन का उत्पादन संभव है।
प्रमुख उद्देश्य
- भारत को ग्रीन हाइड्रोजन और उसके घटकों (जैसे ग्रीन अमोनिया) के उत्पादन, उपयोग और निर्यात का वैश्विक केंद्र बनाना।
- घरेलू मांग निर्माण (उर्वरक, रिफाइनरी, इस्पात, परिवहन आदि क्षेत्रों में)।
- ऊर्जा आत्मनिर्भरता और नेट-ज़ीरो लक्ष्य (2070) की प्राप्ति।
- जीवाश्म ईंधन आयात पर निर्भरता घटाना तथा औद्योगिक क्षेत्रों का डिकार्बोनाइजेशन।
मिशन के प्रमुख घटक
- SIGHT Programme (Strategic Interventions for Green Hydrogen Transition)
- इलेक्ट्रोलाइज़र विनिर्माण को प्रोत्साहन।
- ग्रीन हाइड्रोजन उत्पादन को वित्तीय सहायता व PLI मॉडल से समर्थन।
- ग्रीन हाइड्रोजन हब्स का विकास
- ऐसे औद्योगिक/भौगोलिक क्षेत्रों का चयन जहाँ नवीकरणीय ऊर्जा, जल और अवसंरचना की उपलब्धता हो।
- नीतिगत व नियामक सुधार
- ग्रीन हाइड्रोजन उत्पादकों को नवीकरणीय बिजली की ओपन एक्सेस, ट्रांसमिशन चार्ज में छूट और ग्रीन टैक्सोनॉमी लाभ।
- संस्थानिक ढाँचा और R&D
- हाइड्रोजन मूल्य श्रृंखला (production–storage–transport–use) के लिए राष्ट्रीय परीक्षण प्रयोगशालाएँ और मानकीकरण केंद्र स्थापित किए जा रहे हैं।
उपयोग के प्रमुख क्षेत्र
- उद्योग: इस्पात, उर्वरक, रिफाइनरी।
- परिवहन: FCEVs (Fuel Cell Electric Vehicles), रेल, शिपिंग, विमानन।
- ऊर्जा: ग्रीन अमोनिया, पावर जनरेशन, गैस ब्लेंडिंग।
ग्रीन हाइड्रोजन “Hard-to-abate sectors” (जैसे इस्पात व उर्वरक उद्योग) के डीकार्बोनाइजेशन में निर्णायक भूमिका निभाएगा।
प्रमुख चुनौतियाँ
- उच्च लागत:
- वर्तमान उत्पादन लागत प्रति किलोग्राम US$ 4–7, जबकि “ग्रे हाइड्रोजन” लगभग US$ 1.5–2.0/kg में बनती है।
- भंडारण एवं परिवहन:
- हाइड्रोजन अत्यधिक ज्वलनशील है; इसे उच्च दाब (700 bar) या क्रायोजेनिक (-253°C) तापमान पर संग्रहीत करना पड़ता है।
- संसाधन दबाव:
- प्रति किलोग्राम हाइड्रोजन उत्पादन हेतु लगभग 9 लीटर जल की आवश्यकता होती है।
- जल-तनाव वाले क्षेत्रों में यह चुनौतीपूर्ण हो सकता है।
- मानक और नियमन की कमी:
- वैश्विक स्तर पर सुरक्षा, गुणवत्ता, और कार्बन-गहनता के मानकों में एकरूपता का अभाव।
- कुशल मानव संसाधन व तकनीकी क्षमता की कमी।
आगे की राह
- लागत में कमी और वित्तीय प्रोत्साहन:
- विएबिलिटी गैप फंडिंग, ग्रीन बॉन्ड्स, सब्सिडी और टैक्स इंसेंटिव्स के माध्यम से निवेश आकर्षित करना।
- अनुसंधान एवं नवाचार:
- इलेक्ट्रोलाइज़र दक्षता में सुधार, ग्रीन अमोनिया निर्यात इंफ्रास्ट्रक्चर का विकास।
- राज्यस्तरीय नीतियों का एकीकरण:
- गुजरात, राजस्थान, तमिलनाडु, कर्नाटक आदि में ग्रीन हाइड्रोजन हब्स को प्राथमिकता।
- अंतरराष्ट्रीय सहयोग:
- भारत “International Hydrogen Alliance” एवं “Mission Innovation” जैसे मंचों में सक्रिय भागीदार है।
- सुरक्षा और मानकीकरण:
- BIS और IEA के साथ साझेदारी में हाइड्रोजन हैंडलिंग के मानक तय किए जा रहे हैं।
निष्कर्ष
- ग्रीन हाइड्रोजन भारत की ऊर्जा आत्मनिर्भरता, औद्योगिक प्रतिस्पर्धा, और जलवायु प्रतिबद्धताओं की आधारशिला बनने जा रहा है।
- यदि भारत उत्पादन लागत घटाने, तकनीकी स्वदेशीकरण और वैश्विक साझेदारी के साथ इस मिशन को प्रभावी रूप से लागू करता है,तो वह न केवल अपनी ऊर्जा आवश्यकताओं की पूर्ति करेगा, बल्कि वैश्विक हाइड्रोजन अर्थव्यवस्था (Global Hydrogen Economy) में अग्रणी स्थान प्राप्त करेगा।