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भीलों का गवरी महोत्सव

चर्चा में क्यों ?

  • राजस्थान के मेवाड़ क्षेत्र में मनाया जाने वाला गवरी उत्सव भील समुदाय की सांस्कृतिक आत्मा का जीवंत प्रतीक है। 
  • यह 40-दिवसीय उत्सव देवी गोरखिया माता के सम्मान में मनाया जाता है और इसमें नृत्य-नाटक, गीत, हास्य, और आध्यात्मिक अनुष्ठान शामिल होते हैं।
  • 2025 में पहली बार, इसे इंडिया इंटरनेशनल सेंटर आर्ट गैलरी में एक फोटो प्रदर्शनी के माध्यम से राष्ट्रीय स्तर पर प्रदर्शित किया गया, जिससे यह पर्व देशभर के दर्शकों की नजरों में आया।

उत्पत्ति और आयोजन का समय

  • गवरी उत्सव प्रतिवर्ष रक्षाबंधन की पूर्णिमा के बाद शुरू होता है।
  • यह देवी पार्वती (भीलों द्वारा बहन रूप में पूजित) के सम्मान में मनाया जाता है।
  • एक महीने से अधिक तक, भील मंडलियाँ गांव-गांव जाकर नाट्य-प्रदर्शन करती हैं।

धार्मिक और सामाजिक महत्व

आध्यात्मिक श्रद्धा

  • गवरी देवी गोरखिया माता को समर्पित है, जिन्हें रक्षक और आध्यात्मिक मार्गदर्शक माना जाता है।

जनजातीय पहचान की पुष्टि

  • यह उत्सव भीलों की विश्वदृष्टि, विश्वास, और भाषा को जीवित रखता है।

सामुदायिक एकता

  • गांवों के लोग मिलकर भाग लेते हैं, जिससे सामाजिक समरसता और सहभागिता बढ़ती है।

प्रदर्शन की विशेषताएं: व्यंग्य, सामाजिक टिप्पणी और परंपरा

पैरोडी और व्यंग्य का उपयोग

  • गवरी में राजा, देवता और जाति व्यवस्था पर तीखा व्यंग्य होता है।
  • हास्य और गीतों के माध्यम से सामाजिक संदेश दिए जाते हैं।

लिंग-भूमिकाओं का उलटाव

  • सभी पात्र पुरुष निभाते हैं, यहाँ तक कि महिला भूमिकाएं भी पुरुष निभाते हैं, जो समाज में लिंग पहचान पर प्रश्न खड़ा करता है।

भील कलाकारों का उच्च दर्जा

  • गवरी काल के दौरान इन कलाकारों को ईश्वर तुल्य सम्मान दिया जाता है।

गवरी नाटक: विषय और संदेश

प्रकृति के साथ सह-अस्तित्व

  • 'बड़लिया हिंदवा' जैसे नाटकों में वन्य जीवन और पर्यावरण संतुलन की शिक्षा दी जाती है।

ऐतिहासिक संघर्ष की झलक

  • 'भीलूराणा' जैसे प्रदर्शन, मुगलों और ब्रिटिशों के खिलाफ भील प्रतिरोध को दर्शाते हैं।
  • प्रत्येक नाटक का समापन देवी को प्रणाम और प्राकृतिक व सामाजिक संतुलन बनाए रखने की चेतावनी के साथ होता है।

गवरी: संस्कृति और मौखिक परंपरा का संरक्षण

गवरी न केवल एक त्योहार है, बल्कि एक सांस्कृतिक धरोहर है।

  • भील भाषा और लोककथाओं को सहेजता है।
  • नवीन पीढ़ियों तक ऐतिहासिक ज्ञान को पहुंचाता है।
  • सामुदायिक गौरव और आत्मसम्मान को पोषित करता है।

राष्ट्रीय मंच पर पहचान: 2025 की प्रदर्शनी

  • 2025 में दिल्ली स्थित इंडिया इंटरनेशनल सेंटर में आयोजित गवरी की फोटो प्रदर्शनी ने इस आदिवासी परंपरा को राष्ट्रीय मंच प्रदान किया।
  • इसकी वेशभूषा, अनुष्ठान, और नाटक राष्ट्रीय दर्शकों के लिए दुर्लभ सांस्कृतिक अनुभव बने।
  • इस पहल ने आधुनिकीकरण के दौर में जनजातीय विरासत के संरक्षण की दिशा में महत्वपूर्ण कदम बढ़ाया।

प्रश्न :-गवरी उत्सव किस समुदाय द्वारा मनाया जाता है ?

(a) संथाल

(b) गोंड

(c) भील

(d) बोडो

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