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 ग्रीन क्रॉसहेयर : पर्यावरण की चिंता या रोकने का बहाना 

प्रारंभिक परीक्षा: कार्बन सीमा समायोजन तंत्र (CBAM)।
मुख्य परीक्षा : सामान्य अध्ययन प्रश्न पत्र3 -  पर्यावरण संरक्षण।

संदर्भ 

  • हाल ही में, यूरोपीय संघ (EU) 1 अक्टूबर, 2023 से कार्बन सीमा समायोजन तंत्र(CBAM) को लागू करने वाला है। 

प्रमुख पक्ष 

कार्बन सीमा समायोजन तंत्र (CBAM)

  • यह यूरोपीय संघ (ईयू) द्वारा यूरोपीय संघ में प्रवेश करने वाले कार्बन सघन सामानों के उत्पादन के दौरान उत्सर्जित कार्बन पर उचित मूल्य लगाने और गैर-यूरोपीय संघ के देशों में स्वच्छ औद्योगिक उत्पादन को प्रोत्साहित करने के लिए एक तंत्र है।
  • वर्ष 2021 में, यूरोपीय संघ ने कार्बन सीमा समायोजन तंत्र (CBAM) का प्रस्ताव रखा, जिसके अंतर्गत 2026 से सीमेंट और स्टील जैसी कार्बन-गहन वस्तुओं के यूरोपीय संघ में निर्यात पर पर कर लगाया जायेगा।
  • कार्बन सीमा समायोजन तंत्र पहले से ही विश्व के कुछ क्षेत्रों में मौजूद हैं, जैसे कि कैलिफोर्निया, जहां बिजली के कुछ आयातों पर समायोजन लागू किया जाता है।

कार्बन सीमा कर

  • यह किसी उत्पाद के उत्पादन की प्रक्रिया के दौरान उत्पन्न कार्बन उत्सर्जन की मात्रा के आधार पर उस उत्पाद के आयात पर लगने वाला एक शुल्क है।
  • कार्बन पर शुल्क के रूप में, यह उत्सर्जन को हतोत्साहित करता है, और व्यापार से संबंधित उपाय के रूप में, यह उत्पादन और निर्यात को प्रभावित करता है।
  • इसे व्यापारिक भागीदारों द्वारा अनुचित रूप से देखे जाने की संभावना है, क्योंकि इसमें जोखिम है, कि यह एक संरक्षणवादी उपकरण बन जाता है, जो स्थानीय उद्योगों को तथाकथित ' हरित संरक्षणवाद' में विदेशी प्रतिस्पर्धा से बचाता है।

EU का तर्क 

  • CBAM यह सुनिश्चित करेगा कि कार्बन-गहन आयात द्वारा जलवायु उद्देश्यों की अनदेखी नहीं की जाती है।
  • यह अन्य निर्यातक देशों में स्वच्छ उत्पादन को बढ़ावा देगा।

कार्यप्रणाली

  • योजना के अनुसार, यूरोपीय संघ के आयातकों को उस कार्बन मूल्य के अनुरूप कार्बन प्रमाण पत्र खरीदना होगा, जो यूरोपीय संघ में भुगतान किया गया होता, यदि उत्पाद  स्थानीय रूप से उत्पादित किया गया होता।
  • यूरोपीय संघ के कार्बन क्रेडिट बाजार में नीलामी की कीमतों के अनुसार प्रमाणपत्रों की कीमत की गणना की जाएगी। 
  • आवश्यक प्रमाणपत्रों की मात्रा वार्षिक रूप से उत्पाद की मात्रा और यूरोपीय संघ में आयातित उन सामानों में एम्बेडेड उत्सर्जन द्वारा परिभाषित की जाएगी।

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महत्त्व 

  • इसका उद्देश्य 2030 तक यूरोपीय संघ के समग्र ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन को 1990 के स्तर से 55% तक कम करने में मदद करना है।
  • यह 'प्रदूषक भुगतान करता है' के सिद्धांत पर कार्य करता है, कार्बन टैक्स अनिवार्य रूप से एक पिगोवियन टैक्स होगा, जो सीमांत सामाजिक लागतों और अतिरिक्त उत्सर्जन के लाभों को संतुलित करता है।
  • यह उपभोक्ताओं और उत्पादकों को अधिक ऊर्जा-कुशल स्रोतों और उत्पादों की ओर स्थानांतरित करने के लिए एक प्रोत्साहन के रूप में कार्य कर सकता है।
  • इसका उद्देश्य दुनिया भर में हरित निर्माण को 'प्रोत्साहित' करना और यूरोपीय उद्योगों को बाहरी प्रतिस्पर्धियों से बचाना है, जो कम लागत पर उत्पादों का निर्माण कर सकते हैं, क्योंकि निर्माण प्रक्रियाओं के दौरान उनके कार्बन उत्सर्जन के लिए उनसे शुल्क नहीं लिया जाता है।
  • कार्बन बॉर्डर टैक्स भारत सहित उभरती हुई अर्थव्यवस्थाओं को वस्तुओं के निर्माण के लिए स्वच्छ (गैर-जीवाश्म ईंधन-आधारित) प्रथाओं को अपनाने के लिए मजबूर करने का एक अप्रत्यक्ष प्रयास है।

चिंतायें 

  • यह स्पष्ट नहीं है, कि यूरोपीय संघ किसी आयातित उत्पाद के उत्सर्जन का आकलन कैसे करेगा।
  • ऐसे कई छोटे व्यवसाय हैं, जिन्हें अपने उत्सर्जन की मात्रा निर्धारित करने में कठिनाई का सामना करना पड़ेगा।
  • निर्यात करने वाले देशों में जलवायु नियमों का पालन करने में कंपनियां पहले से ही जिन लागतों का सामना कर रही हैं, उन्हें कैसे समायोजित किया जाएगा। 
  • कार्बन टैक्स तंत्र, स्वच्छ प्रौद्योगिकियों को अपनाने को प्रेरित कर सकता है, लेकिन नई तकनीकों और वित्त के लिए पर्याप्त सहायता के बिना, यह विकासशील देशों पर कर लगाने जैसा होगा।
  • इसके अतिरिक्त, संभवत यह कर उन क्षेत्रों और उद्योगों को हतोत्साहित कर सकता है, जो पहले से ही स्वच्छ प्रौद्योगिकियों को अपना रहे है।
  • टैक्स एक बड़े ग्रीनहाउस गैस पदचिह्न वाली कंपनियों के लिए गंभीर निकट-अवधि की चुनौतियाँ पैदा करेगा।
  • इस नए टैक्स से मोजाम्बिक, जांबिया, सिएरा लियोन और द गाम्बिया में इस्पात और अल्युमीनियम उद्योग विशेष रूप से प्रभावित होंगे।
  • कम विकसित देशों (एलडीसी) से आयात यूरोपीय संघ के सभी आयातों का सिर्फ 0.1 प्रतिशत है,किंतु अधिक टैक्स लगाने के गंभीर परिणाम हो सकते है।
    • उदाहरण के तौर पर मोजाम्बिक में, जहाँ 70 फीसद आबादी गरीबी रेखा से नीचे रहती है, देश के आधे से अधिक स्टील और अल्युमीनियम उत्पाद का निर्यात यूरोपीय संघ को किया जाता है।
  • यदि कच्चे तेल की कीमत 30-40 डॉलर प्रति बैरल पर बनी रहती है, तो CO2 उत्सर्जन के प्रति मीट्रिक टन 30 डॉलर का शुल्क विदेशी उत्पादकों के लिए लाभ को लगभग 20% तक कम कर सकता है।

भारत पर प्रभाव

  • यूरोपीय संघ, भारत का तीसरा सबसे बड़ा व्यापारिक भागीदार है, इसका भारत के कुल वैश्विक व्यापार में 11.1% हिस्सा है।
  • वाणिज्य मंत्रालय के आंकड़ों के अनुसार, 2020-21 में यूरोपीय संघ को भारत का निर्यात 41.36 बिलियन डॉलर का था।
  • यूरोपीय संघ में भारतीय निर्मित वस्तुओं की कीमतों में वृद्धि करके, यह कर भारतीय वस्तुओं को खरीदारों के लिए कम आकर्षक बनाकर मांग को कम कर सकता है।
  • यह लौह अयस्क और इस्पात जैसे भारत के सबसे बड़े निर्यात के लिए एक महत्वपूर्ण खतरा पैदा करेगा।
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