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भारी धातुओं की विषाक्तता

(प्रारंभिक परीक्षा : पर्यावरणीय पारिस्थितिकी एवं सामान्य विज्ञान)

संदर्भ 

भारत से 400 से अधिक निर्यात गुणवत्ता वाले उत्पादों को यूरोपीय संघ ने 2019 से 2024 के बीच दूषित पदार्थों से युक्त होने के कारण चिह्नित किया गया। इन दूषित पदार्थों में कई भारी धातुएं शामिल हैं।

भारी धातुएँ

  • भारी धातुओं को पानी की तुलना में अपेक्षाकृत उच्च घनत्व वाले धातु तत्वों के रूप में परिभाषित किया गया है। भारी धातुओं को जैविक क्षरण द्वारा नष्ट नहीं किया जा सकता है।
  • ये धातुएँ भू-पर्पटी में प्राकृतिक रूप से पाई जाती हैं किंतु औद्योगिक प्रक्रियाओं, खनन एवं जीवाश्म ईंधन के दहन जैसी मानवीय गतिविधियों ने पर्यावरण में इनका उत्सर्जन बढ़ा दिया है।

जीवों पर भारी धातुओं का प्रभाव 

  • सांद्रता एवं धातु की विशिष्टता के आधार पर भारी धातुएँ प्राणियों के लिए आवश्यक अथवा विषाक्त हो सकती हैं।
  • आवश्यक भारी धातुएँ : तांबा, जस्ता एवं लोहा जैसी भारी धातुएँ आवश्यक सूक्ष्म पोषक तत्व हैं। जैव रासायनिक एवं शारीरिक कार्यों के लिए सूक्ष्म मात्रा में इनकी आवश्यकता होती है।
    • उदाहरण के लिए, हीमोग्लोबिन में आयरन ऑक्सीजन परिवहन के लिए और एंजाइमेटिक प्रतिक्रियाओं के लिए जिंक महत्वपूर्ण है।
  • विषाक्त भारी धातुएँ : सीसा, पारा, कैडमियम, आर्सेनिक एवं क्रोमियम जैसी भारी धातुएँ कम सांद्रता में भी जीवों के लिए विषाक्त हो सकती हैं। ये कई प्रकार की स्वास्थ्य समस्याएं पैदा कर सकती हैं, जैसे :
    • कैंसर, तंत्रिका संबंधी क्षति, किडनी एवं लीवर में समस्या, प्रजनन संबंधी समस्याएँ, बच्चों में विकास संबंधी समस्याएं आदि।

प्रमुख भारी धातुओं की विषाक्तता

सीसा (Lead)

  • दहन इंजनों के सुचारू संचालन के लिए एंटी-नॉक एजेंट के रूप में टेट्राएथिल लेड (TEL) को पेट्रोल में मिलाया जाता है।
    • वाहनों से निकलने वाले धूएँ के साथ सीसा वायुमंडल में प्रवेश करता है।
  • हालाँकि, सीसा रहित पेट्रोल के उपयोग को बढ़ावा देकर पेट्रोल में सीसा को चरणबद्ध तरीके से समाप्त किया जा रहा है।
  • कई औद्योगिक प्रक्रियाओं में भी सीसे का उपयोग किया जाता है जो अंततः प्रदूषक के रूप में उत्सर्जित किया जाता है।
  • गैर-उपयोगी बैटरियों के कबाड़ में सीसा की पर्याप्त मात्रा होती है। इसका उचित निस्तारण न होने से यह पानी एवं भोजन में मिल सकता है और विषाक्तता का कारण बन सकता है।
    • सीसा छोटे बच्चों एवं शिशुओं में अपरिवर्तनीय व्यवहार संबंधी गड़बड़ी, तंत्रिका संबंधी क्षति और अन्य विकासात्मक समस्याओं का कारण बन सकता है। यह फेफड़ों व गुर्दे के कैंसर का एक प्रमुख कारक है।

पारा (Mercury)

  • जापान में 1960 के दशक में बड़े पैमाने पर पारा विषाक्तता (मिनमाटा रोग) देखी गई थी। यह मिथाइल मरकरी से दूषित मिनामाटा खाड़ी की मछलियों का खाद्य के रूप में प्रयोग करने से फैली थी।
  • पारा शरीर की कोशिकाओं को नष्ट करके अंगों को नुकसान पहुंचाता है, जिससे उनकी कार्यप्रणाली ख़राब हो जाती है।
  • पारा वाष्प का श्वसन इसके अंतर्ग्रहण से अधिक खतरनाक है।
    • लंबे समय तक इसके संपर्क में रहने से मुंह एवं त्वचा में घाव व तंत्रिका संबंधी समस्याएं हो जाती हैं।

आर्सेनिक (Arsenic)

  • आर्सेनिक अपने अकार्बनिक रूप में अत्यधिक विषैला होता है।
  • दूषित पानी पीने, भोजन तैयार करने और खाद्य फसलों की सिंचाई में दूषित पानी का उपयोग करने, औद्योगिक प्रक्रियाओं एवं तंबाकू के धूम्रपान से लोग अकार्बनिक आर्सेनिक के उच्च स्तर के संपर्क में आते हैं।
  • मुख्य रूप से पेयजल एवं भोजन के माध्यम से अकार्बनिक आर्सेनिक का दीर्घकालिक संपर्क क्रोनिक आर्सेनिक विषाक्तता का कारण बन सकता है।
    • त्वचा पर घाव एवं त्वचा कैंसर इसके सबसे विशिष्ट प्रभाव हैं।
  • उर्वरक संयंत्रों से निकलने वाले तरल अपशिष्टों में आर्सेनिक की मात्रा अधिक होती है और यह भूजल के आर्सेनिक संदूषण का मुख्य कारण है।
  • क्रोनिक आर्सेनिक विषाक्तता मेलेनोसिस एवं केराटोसिस का कारण बनती है।

कैडमियम (Cadmium)

  • खनन, विशेष रूप से जस्ता एवं धातुकर्म, इलेक्ट्रोप्लेटिंग उद्योग पर्यावरण में कैडमियम उत्सर्जन के लिए जिम्मेदार हैं।
  • यह श्वास के द्वारा या खाद्य पदार्थों (विशेषकर मछली सहित जलीय स्रोतों से) के माध्यम से मानव शरीर में प्रवेश कर सकता है।
  • इससे उच्च रक्तचाप, लीवर सिरोसिस, हड्डियों की कमजोरी, गुर्दे की क्षति एवं फेफड़ों के कैंसर की समस्या हो सकती है।
  • इटाई-इटाई रोग जिंक स्मेल्टर से नदी में प्रवाहित होने वाले अपशिष्ट के कारण पानी एवं चावल में कैडमियम संदूषण के कारण हुआ था। इस रोग को सर्वप्रथम वर्ष 1965 में जापान में रिपोर्ट किया गया था।

अन्य भारी धातुएँ

  • जिंक, क्रोमियम, एंटीमनी एवं टिन जैसी धातुएँ खाना पकाने के सस्ते बर्तनों से भोजन में प्रवेश करती हैं।
  • टिन के डिब्बे में संग्रहीत संरक्षित खाद्य पदार्थ भी टिन द्वारा संदूषण का कारण बनते हैं। 
  • जिंक त्वचा में जलन उत्पन्न करने वाला पदार्थ है और फुफ्फुसीय तंत्र को प्रभावित करता है।
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