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कितना खतरनाक है कोविड का डेल्टा प्लस वेरिएंट?

(प्रारंभिक परीक्षा- राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय महत्त्व की सामयिक घटनाएँ, सामान्य विज्ञान)
(मुख्य परीक्षा, सामान्य अध्यययन प्रश्नपत्र- 2 व 3 : स्वास्थ्य, आपदा प्रबंधन)

संदर्भ 

भारत के साथ-साथ दुनिया भर के वैज्ञानिक 'डेल्टा प्लस' (Delta Plus) वेरिएंट को लेकर चिंतित हैं। यह कोरोना वायरस के ‘डेल्टा वेरिएंट’ (प्रकार) का एक उभरता हुआ रूप है। यह वेरिएंट वर्तमान में स्वीकृत उपचार पद्धतियों के माध्यम से शरीर में बनने वाली ‘एंटीबॉडी’ को बेअसर कर सकता है, अर्थात कोविड के विरुद्ध शरीर में विकसित प्रतिरक्षा तंत्र इससे लड़ने में असमर्थ हो सकता है। यही इस वेरिएंट से संबंधित सबसे बड़ी चिंता है।  

क्या है डेल्टा प्लस वेरिएंट?

  • ‘डेल्टा प्लस वेरिएंट’ का औपचारिक नाम ‘AY.1 या B.1.617.2.1’ है। यह भारत में पहली बार पहचाने गए ‘डेल्टा वेरिएंट’ (B.1.617.2) का ही एक प्रकार है। 
  • यह वेरिएंट ‘K417N’ नामक एक अतिरिक्त उत्परिवर्तन (Mutation- म्यूटेशन) का परिणाम है, जिसे इससे पूर्व ‘बीटा वेरिएंट’ (पहली बार दक्षिण अफ्रीका में पाया गया) और ‘गामा वेरिएंट’ (पहली बार ब्राजील में पाया गया) में देखा जा चुका है। इन वेरिएंट्स को अत्यधिक संक्रामक (Infectious) माना जाता है और यह टीकों के प्रभाव को भी कम कर सकता है।
  • मई और जून में पाँच भारतीय प्रयोगशालाओं ने ‘ग्लोबल इनिशिएटिव ऑन शेयरिंग ऑल इन्फ्लुएंजा डेटा’ (GISAID) को इस परिवर्तित वेरिएंट पर डाटा प्रस्तुत किया। भारत में  अब तक अनुक्रमित (Sequenced) लगभग 28,000 कोरोना वायरस जीनोम में से सात कथित तौर पर AY.1 वंश (Lineage) के हैं। विश्व स्तर पर 143 जीनोम को अब तक AY.1 के रूप में चिन्हित किया गया है। 
  • इन्हें भारत के अलावा नेपाल, पुर्तगाल, स्विट्ज़रलैंड, पोलैंड, जापान व रूस के साथ-साथ तुर्की, यूनाइटेड किंगडम, फ्रांस, अमेरिका और कनाडा से रिपोर्ट किया गया है।

चिंता का कारण

  • डेल्टा वेरिएंट को भारत में अब तक कोरोना वायरस का सर्वाधिक प्रचलित प्रकार माना जा रहा है। फार्मा कंपनियों द्वारा टीकों का निर्माण करने के लिये प्रयोग किये जाने वाले स्ट्रेन की तुलना में इस वेरिएंट में महत्त्वपूर्ण अंतर हैं। अत: इस वेरिएंट के खिलाफ मौजूदा टीकों की प्रभावशीलता को जांचने की आवश्यकता है।
  • यूनाइटेड किंगडम, दक्षिण अफ्रीका और ब्राजील में हुए परीक्षणों से पता चला है कि मौजूदा टीके डेल्टा जैसे वेरिएंट का मुकाबला करते समय कम एंटीबॉडी निर्मित करते हैं। यह डेल्टा वेरिएंट भारत में महामारी प्रबंधन के लिये नई चुनौतियां पैदा कर सकता है।

वैक्सीन (टीकों) की प्रभावशीलता 

  • ‘आई.सी.एम.आर.–राष्ट्रीय विषाणुविज्ञान संस्थान’ और ‘सी.एस.आई.आर.-कोशिकीय एवं आण्विक जीवविज्ञान केंद्र’ (हैदराबाद) ने डेल्टा वेरिएंट के खिलाफ कोविशील्ड और कोवैक्सीन के असर का निर्धारण करने के लिये प्रयोगशाला परीक्षण किये हैं।
  • परिणाम बताते हैं कि इस वैरिएंट के खिलाफ इन टीकों से अपेक्षाकृत कम एंटीबॉडी निर्मित हो रहे हैं। हालाँकि, प्रतिरक्षा (Immunity) की मज़बूती के लिये केवल एंटीबॉडी का स्तर ही ज़िम्मेदार नहीं हैं। 
  • राहत की बात यह है कि AY.1 के कारण किसी बड़े प्रकोप ​​के अभाव और तीव्र रोग संचरण के बहुत कम सबूत मिलने के कारण विश्व स्वास्थ्य संगठन ने अभी तक इसे ‘चिंताजनक वेरिएंट’ (Variant of Concern) के रूप में वर्गीकृत नहीं किया है। विदित है कि अल्फा, बीटा, डेल्टा और गामा वेरिएंट को ‘वेरिएंट ऑफ कन्सर्न’ घोषित किया जा चुका है। 
  • प्रारंभिक रिपोर्टों के अनुसार, AY.1 दो ‘उप-वंशों’ (Sub-Lineages) में बदल रहा है, जिसका एक क्लस्टर (समूह) कैलिफोर्निया में मिला है, जबकि दूसरे बड़े क्लस्टर में नेपाल, भारत और यू.के. सहित आठ अन्य देश शामिल हैं।

कितनी मददगार हैं मौजूदा दवाएँ?

  • AY.1 के साथ एक अतिरिक्त चिंता K417N उत्परिवर्तन की उपस्थिति है। सी.एस.आई.आर.-इंस्टीट्यूट ऑफ जीनोमिक्स एंड इंटीग्रेटिव बायोलॉजी के एक डाटाबेस के अनुसार, नई विकसित मोनोक्लोनल एंटीबॉडी ट्रीटमेंट ड्रग- ‘कैसीरीविमैब’ (Casirivimab) और ‘इमदेविमाब’ (Imdevimab) इस उत्परिवर्तन के प्रति अधिक प्रभावी नहीं रही हैं। इस दवा का प्रयोग हल्के से मध्यम कोविड-19 से पीड़ित रोगियों के उपचार में किया जाता है।
  • भारत में इस दवा को हाल ही में ‘केंद्रीय औषधि मानक नियंत्रण संगठन’ ने अनुमोदित किया है। इस दवा की एक रोगी को दी जाने वाली खुराक की कीमत (600 मिलीग्राम कैसीरीविमैब और 600 मिलीग्राम इमदेविमाब की संयुक्त  खुराक/कॉकटेल) 59,750 होगी।
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