(प्रारंभिक परीक्षा: समसामयिक घटनाक्रम) (मुख्य परीक्षा, सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र- 2: संघ एवं राज्यों के कार्य तथा उत्तरदायित्व, सरकारी नीतियों और विभिन्न क्षेत्रों में विकास के लिये हस्तक्षेप व उनके अभिकल्पन एवं कार्यान्वयन के कारण उत्पन्न विषय) |
संदर्भ
भारत में नागरिकता एक संवेदनशील और महत्वपूर्ण मुद्दा है, जो देश की संप्रभुता व सुरक्षा से जुड़ा है। हाल ही में, बॉम्बे उच्च न्यायालय ने एक मामले में कहा कि आधार कार्ड, पैन कार्ड या वोटर आईडी जैसे दस्तावेज नागरिकता का प्रमाण नहीं हैं।
भारत में नागरिकता के प्रमाण के बारे में
- भारत में नागरिकता का प्रमाण उन दस्तावेजों से साबित होता है जो स्पष्ट रूप से व्यक्ति के जन्म, वंश, पंजीकरण या नेचुरलाइजेशन (प्राकृतिकीकरण) को दर्शाते हैं।
- ये दस्तावेज नागरिकता अधिनियम, 1955 के तहत निर्धारित मानदंडों को पूरा करते हैं।
- आधार कार्ड, पैन कार्ड और वोटर आईडी जैसे दस्तावेज केवल पहचान एवं सेवाओं के लिए हैं, न कि नागरिकता के लिए।
नागरिकता प्रमाणपत्रों की सूची
- जन्म प्रमाणपत्र : भारत में जन्म से व्यक्ति नागरिक होगा, यदि:-
- (क) 26 जनवरी, 1950 को/उसके पश्चात्, किंतु 1 जुलाई, 1987 से पूर्व जन्म;
- (ख) 1 जुलाई, 1987 को या उसके पश्चात्, किंतु नागरिकता (संशोधन) अधिनियम, 2003 के प्रारंभ से पूर्व और जिसके माता-पिता में से कोई एक उसके जन्म के समय भारत का नागरिक है;
- (ग) नागरिकता (संशोधन) अधिनियम, 2003 के प्रारंभ के समय या उसके पश्चात्, जहाँ-
- उसके माता-पिता दोनों भारत के नागरिक हैं; या
- जिसके माता-पिता में से एक भारत का नागरिक है और दूसरा उसके जन्म के समय अवैध प्रवासी नहीं है।
- पासपोर्ट : भारतीय पासपोर्ट नागरिकता का सबसे मजबूत प्रमाण है।
- डोमिसाइल सर्टिफिकेट (निवास प्रमाणपत्र) : राज्य सरकार द्वारा जारी यह प्रमाणपत्र भारत में स्थायी निवास को दर्शाता है।
- नागरिकता प्रमाणपत्र : विदेशी मूल के व्यक्तियों के लिए, जो पंजीकरण या नेचुरलाइजेशन के माध्यम से नागरिकता प्राप्त करते हैं।
संबंधित कानून
- नागरिकता अधिनियम, 1955 : यह भारत में नागरिकता प्राप्त करने, समाप्ति एवं सत्यापन के लिए मुख्य कानून है। यह जन्म, वंश, पंजीकरण एवं नेचुरलाइजेशन के आधार पर नागरिकता को परिभाषित करता है।
- पासपोर्ट (भारत में प्रवेश) अधिनियम, 1950 : यह बिना वैध पासपोर्ट के भारत में प्रवेश को प्रतिबंधित करता है।
- विदेशी अधिनियम, 1946 और विदेशी आदेश, 1948 : ये अवैध प्रवासियों के प्रवेश, निवास एवं सजा को नियंत्रित करते हैं।
- भारतीय न्याय संहिता (BNS), 2023 : इसमें धारा 335, 336(3) एवं 340 जैसे प्रावधान अवैध गतिविधियों और जाली दस्तावेजों से संबंधित हैं।
हालिया बॉम्बे उच्च न्यायलय का निर्णय
- 12 अगस्त, 2025 को बॉम्बे उच्च न्यायालय ने बाबू अब्दुल रुफ सरदार की जमानत याचिका खारिज कर दिया, जिन पर अवैध रूप से भारत में प्रवेश और जाली दस्तावेजों का उपयोग करने का आरोप है।
- न्यायालय ने कहा कि आधार, पैन या वोटर आईडी जैसे दस्तावेज अपने आप में नागरिकता का प्रमाण नहीं हैं क्योंकि ये केवल पहचान एवं सेवाओं के लिए हैं।
- न्यायालय ने माना कि नागरिकता का दावा नागरिकता अधिनियम, 1955 के तहत सख्ती से जांचा जाना चाहिए और आरोपी पर संदेह होने पर उसे प्रमाण देना होगा।
- न्यायालय ने राष्ट्रीय सुरक्षा, चल रही जांच और भागने के जोखिम का हवाला देते हुए जमानत अस्वीकार की किंतु एक वर्ष में मुकदमा पूरा न होने पर दोबारा आवेदन की अनुमति दी।
सरकार का दृष्टिकोण
- केंद्र सरकार का कहना है कि आधार, पैन एवं वोटर आईडी जैसे दस्तावेज केवल पहचान व सेवाओं के लिए हैं, न कि नागरिकता के लिए।
- सरकार ने बार-बार स्पष्ट किया है कि नागरिकता अधिनियम, 1955 ही नागरिकता का निर्धारण करता है।
- इस मामले में अतिरिक्त लोक अभियोजक मेघा एस. बजोरिया ने तर्क दिया कि जाली दस्तावेजों का उपयोग और संभावित अवैध आप्रवासन नेटवर्क की जाँच के कारण जमानत नहीं दी जानी चाहिए।
- सरकार सख्त प्रवास नीतियों और दस्तावेज सत्यापन पर जोर दे रही है ताकि अवैध प्रवास एवं धोखाधड़ी को रोका जा सके।
चुनौतियाँ
- दस्तावेजों की जालसाजी : जाली आधार, पैन एव वोटर आईडी जैसे दस्तावेजों का उपयोग अवैध प्रवासियों द्वारा किया जा रहा है, जिससे सत्यापन मुश्किल हो रहा है।
- सत्यापन में देरी : UIDAI और अन्य एजेंसियों द्वारा दस्तावेजों की जांच में समय लगता है, जो कानूनी प्रक्रिया को जटिल बनाता है।
- सामाजिक और राजनीतिक संवेदनशीलता : नागरिकता से जुड़े मुद्दे सामाजिक तनाव और राजनीतिक विवाद पैदा कर सकते हैं।
- प्रशासनिक कमियाँ : ग्रामीण क्षेत्रों में जन्म प्रमाणपत्र और अन्य दस्तावेज अनुपलब्ध होने से कई लोगों के लिए नागरिकता साबित करना मुश्किल हो जाता है।
आगे की राह
- सख्त सत्यापन प्रक्रिया : आधार और अन्य दस्तावेजों के लिए सत्यापन प्रक्रिया को तेज व पारदर्शी करना होगा।
- जागरूकता अभियान : लोगों को यह समझाना जरूरी है कि आधार, पैन एवं वोटर आईडी नागरिकता के प्रमाण नहीं हैं।
- डिजिटल डाटाबेस : नागरिकता से संबंधित दस्तावेजों का एक केंद्रीकृत डिजिटल डाटाबेस बनाया जाए, जिससे सत्यापन आसान हो।
- कानूनी सुधार : नागरिकता अधिनियम में अधिक स्पष्टता लाने के लिए संशोधन किए जा सकते हैं ताकि दुरुपयोग रोका जा सके।
- प्रशिक्षण एवं संसाधन : जाँच एजेंसियों को जाली दस्तावेजों की पहचान और अवैध प्रवास से निपटने के लिए बेहतर प्रशिक्षण व संसाधन प्रदान किए जाएँ।
निष्कर्ष
बॉम्बे उच्च न्यायालय का फैसला नागरिकता के सवाल पर एक महत्वपूर्ण कदम है, जो यह स्पष्ट करता है कि केवल पहचान पत्र नागरिकता का प्रमाण नहीं हैं। सरकार और समाज को मिलकर ऐसी प्रणाली विकसित करनी होगी जो नागरिकता सत्यापन को सरल व प्रभावी बनाए। यह सुनिश्चित करना होगा कि वास्तविक नागरिकों को परेशानी न हो और अवैध गतिविधियों पर सख्ती से रोक लगे, ताकि देश की सुरक्षा एवं संप्रभुता अक्षुण्ण बनी रहे।