भारत में वेस्टर्न ट्रैगोपैन की संख्या को स्थिर करने के लिए कैप्टिव प्रजनन कार्यक्रम सहायक सिद्ध हो रहे हैं किंतु बढ़ते मानवीय हस्तक्षेप एवं पर्यावास के लगातार विखंडन से इस दुर्लभ पक्षी का अस्तित्व अभी भी खतरे में है।
अंतर्राष्ट्रीय प्रकृति संरक्षण संघ (IUCN) के संरक्षणवादियों का अनुमान है कि केवल 3,000-9,500 वयस्क ट्रैगोपैन ही बचे हैं और वे सभी एक ही उप-आबादी से संबंधित हैं। इनमें से लगभग एक-चौथाई पश्चिमी हिमालय एवं पाकिस्तान के उत्तरी भागों में पाए जाते हैं।
वेस्टर्न ट्रैगोपैन: हिमालय का दुर्लभ एवं सुंदर पक्षी
वेस्टर्न ट्रैगोपैन को ‘वेस्टर्न हॉर्न्ड ट्रैगोपैन’ भी कहा जाता है जो मौजूदा तीतर (Pheasants) प्रजातियों में सबसे दुर्लभ मानी जाती है। सुंदर पंखों एवं बड़े आकार के कारण इसे स्थानीय लोग ‘जुजुराना’ या ‘पक्षियों का राजा’ कहते हैं।
यह दुनिया की सबसे खूबसूरत एवं दुर्लभ तीतर प्रजातियों में शामिल है। स्वभाव से बेहद संकोची और स्थल पर निवास करने वाला यह पक्षी प्रायः सुबह व शाम घनी झाड़ियों में शांतिपूर्वक चलता है।
यह हिमाचल प्रदेश का राजकीय पक्षी है। यह तीतर उत्तर-पश्चिमी हिमालय के एक सीमित हिस्से में पाया जाता है जिसमें उत्तरी पाकिस्तान के हजारा क्षेत्र से लेकर जम्मू एवं कश्मीर, हिमाचल प्रदेश व गढ़वाल के पश्चिमी भाग तक शामिल हैं।
ग्रेट हिमालयन नेशनल पार्क (GHNP) के ऊपरी वन क्षेत्र में इसकी दुनिया की सबसे बड़ी ज्ञात आबादी मौजूद है।
पर्यावास एवं व्यवहार
वेस्टर्न ट्रैगोपैन को घने जंगलों के निचले हिस्सों में उगने वाले बौने या रिंगल बांस का पर्यावास विशेष रूप से पसंद है।
इसका आहार मुख्यतः पत्तियाँ, टहनियाँ एवं बीज होते हैं किंतु यह कीड़ों और अन्य अकशेरुकी जीवों को भी खाता है। यह प्रजाति मई से जून के बीच प्रजनन करती है।
मुख्य खतरे
प्राकृतिक आवास में निरंतर कमी होना और उसका विखंडन
शिकार का दबाव
मानवजनित व्यवधान, जैसे- पशुओं की अत्यधिक चराई, औषधीय जड़ी-बूटियों सहित वन उत्पादों का संग्रह और मानव गतिविधियों का विस्तार